सवाल एक ही है, कौन है मुसलमानों का नेता? बेचैनी में हैं सियासतदां

हिंदुस्तान एक धर्म निरपेक्ष देश हैं। यहां पर सभी धर्मों के लोग रहते रहे हैं। मुस्लिम समाज खुद को अलग महसूस करता है। (फोटो: अमर उजाला)

देश की मुस्लिम आबादी में कौम की हिफाजत को लेकर हर तरफ एक फिक्र कायम है कि वे किधर जाएं। मुसलमानों का असली नेता कौन है, यह खुद मुसलमानों को भी नहीं पता है। सभी दल खुद को मुसलमानों का वोट पाने के लिए उनको अपना बताते रहते हैं, लेकिन जब उनसे कहा जाता है कि वे अपनी पार्टी के किसी मुसलमान को पार्टी अध्यक्ष बनाने या सत्ता में आने पर सरकार का मुखिया बनाने की घोषणा करें तो वे चुप्पी साध लेते हैं।

इससे मुसलमानों को लगता है कि वे ठगे जा रहे हैं। हालांकि उनके पास उन्हीं दलों में से ही किसी एक के साथ जाने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। सबकाे लगता है कि भाजपा को हराने के लिए इन दलों में से किसी एक का साथ देना होगा। सच यह भी है कि वे आपस में ही बंटे हैं।

इस बीच उनको नेतृत्‍व मुहैया कराने के मुख्‍य मुद्दे के साथ उत्‍तर प्रदेश के आगामी विधानसभा चुनाव के मैदान में उतरने जा रही असदुद्दीन ओवैसी की ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्‍तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) ने परम्‍परागत रूप से मुस्लिम वोट हासिल करने वाली पार्टियों में बेचैनी पैदा कर दी है।

ओवैसी ने आरोप लगाया है कि चाहे मुसलमानों के सबसे ज्‍यादा वोट हासिल करने वाली समाजवादी पार्टी (सपा) हो या फिर सामाजिक न्‍याय के लिये दलित-मुस्लिम एकता की बात करने वाली बहुजन समाज पार्टी (बसपा), किसी ने भी मुसलमानों को नेतृत्‍व नहीं दिया। वह इसी आरोप को उत्‍तर प्रदेश में अपने चुनावी अभियान का आधार बना रहे हैं।

उत्‍तर प्रदेश की आबादी में अपेक्षाकृत कम हिस्‍सेदारी रखने वाली जाटव, यादव, राजभर और निषाद समेत विभिन्‍न जातियों का कमोबेश अपना-अपना नेतृत्‍व है, मगर जनसंख्‍या में 19 प्रतिशत से ज्‍यादा भागीदारी रखने वाले मुसलमानों का कोई सर्वमान्‍य नेतृत्‍व नजर नहीं आता। राज्‍य में 82 ऐसी विधानसभा सीटें हैं, जहां पर मुसलमान मतदाता जीत-हार तय करने की स्थिति में हैं, मगर राजनीतिक हिस्‍सेदारी के नाम पर उनकी झोली में कुछ खास नहीं है।

एआईएमआईएम के राष्‍ट्रीय प्रवक्‍ता सैयद आसिम वकार ने रविवार को मीडिया से कहा कि उनकी पार्टी का मुख्‍य लक्ष्‍य मुसलमानों को अपनी कौम की तरक्‍की और बेहतर भविष्‍य के लिये एक राजनीतिक चिंतन करने और नेतृत्व चुनने के लिए जागरुक करना है।

उन्होंने कहा कि मुसलमानों का वोट हासिल करती आयीं ‘‘तथाकथित धर्मनिरपेक्ष पार्टियों’’ ने भी कभी मुस्लिम नेतृत्‍व को उभरने नहीं दिया और सच्‍चर कमेटी की रिपोर्ट से जाहिर हो गया है कि मुसलमानों की हितैषी बनने वाली पार्टियों ने उन्‍हें किस हाल में धकेल दिया है।

उन्होंने कहा कि अब जब ओवैसी मुसलमानों को नेतृत्‍व देने की बात कर रहे हैं तो इस कौम को अपना सियासी गुलाम समझने वाली पार्टियों में खलबली मच गयी है।

समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता अबू आसिम आजमी ने ओवैसी पर निशाना साधते हुए उन्हें ‘वोट कटवा’ करार दिया। आजमी का आरोप है कि चूंकि मुसलमान हमेशा से चुनाव में सपा का साथ देता आया है, इसलिए भाजपा ने आगामी विधानसभा चुनाव में मुस्लिम वोट का बंटवारा कर सपा को नुकसान पहुंचाने के लिए ओवैसी की पार्टी को मैदान में उतारा है।

हालांकि उन्होंने यह भी दावा किया कि मुसलमान भाजपा के इस दांव को अच्छी तरह से समझ चुके हैं और वे किसी बहकावे में नहीं आएंगे।

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उत्तर प्रदेश कांग्रेस के मीडिया संयोजक ललन कुमार ने कहा कि उनकी पार्टी समाज के सभी वर्गों को साथ लेकर चल रही है। जहां तक ओवैसी का सवाल है तो वह सिर्फ चुनाव के वक्त मुसलमानों को याद कर रहे हैं। कांग्रेस को मुसलमानों का भी साथ मिल रहा है और ओवैसी के आने से चुनाव में पार्टी की संभावनाओं पर कोई असर नहीं पड़ेगा।

Photo Credit: Jack Taylor, Getty Images

मुसलमानों को नेतृत्‍व देने की कोशिश पहले भी हो चुकी हैं, लेकिन सवाल यह है कि मुखर हिंदुत्‍ववादी राजनीति के उभार के बाद क्‍या मुसलमान इतने जागरुक हो चुके हैं कि वे अपना सर्वमान्‍य नेतृत्‍व तैयार कर सकें। इस बारे में विशेषज्ञों की राय अलग-अलग है।

राजनीतिक विश्‍लेषक परवेज अहमद ने कहा, ‘‘ओवैसी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नहीं, बल्कि उन पार्टियों के निशाने पर हैं जो अभी तक मुसलमानों को भाजपा का डर दिखाकर उनका वोट हासिल करती रही हैं। उन्होंने कहा कि ये पार्टियां प्रचार कर रही हैं कि ओवैसी उत्तर प्रदेश में मुस्लिम वोट काटकर भाजपा को फायदा पहुंचाने की कोशिश कर रहे हैं।’’

जनगणना 2011 के आंकड़ों के मुताबिक उत्‍तर प्रदेश की आबादी में मुसलमानों की हिस्‍सेदारी 19.26 प्रतिशत है। ऐसा माना जाता है कि राज्‍य की 403 में से 82 विधानसभा क्षेत्रों में मुसलमान मतदाता निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं।

राजनीतिक विश्‍लेषक रशीद किदवाई का मानना था कि ओवैसी को बिहार में कामयाबी इसलिये मिली क्‍योंकि उनके पास कुछ अच्‍छे प्रत्‍याशी आ गये थे, जिनका अपना जनाधार था।

उन्होंने कहा, ‘‘उत्‍तर प्रदेश में ऐसा नहीं लगता कि ओवैसी को कुछ खास कामयाबी मिलेगी, क्‍योंकि उत्‍तर प्रदेश में ज्‍यादातर मुसलमान उसी पार्टी को वोट देते रहे हैं जो भाजपा को हराने में सक्षम हो।’’

गौरतलब है कि एआईएमआईएम ने उत्‍तर प्रदेश की 100 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान किया है। ओवैसी की पार्टी ने 2017 में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में 38 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे थे, लेकिन उसे एक भी सीट नहीं मिली थी। हालांकि बिहार में हुए पिछले विधानसभा चुनाव में उसे सीमांचल की पांच सीटों पर जीत हासिल हुई थी। इससे उनकी पार्टी उत्साहित है और उत्तर प्रदेश में भी कामयाबी के प्रति आश्वस्त नजर आ रही है।

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