बुंदेलखंड: सूखी धरती पर जखनी गांव ने गढ़ी नई कहानी

जल में ही सारी सिद्धियां हैं, जल में ही शक्ति है, जल में समृद्धि है। बांदा जिले का जखनी गांव जो कभी गरीबी, भुखमरी, अपराधीकरण, विवादों के लिए पूरे बुंदेलखंड में चर्चित था, वहां आज समृद्धि की नई बहार देखने को मिल रही है। इसके पीछे जल और भूजल स्तर का प्रभाव है। दरअसल पहले जब यहां पानी की कमी थी तो लोगों के पास काम धंधे नहीं थे। संसाधन नहीं होने से रोजगार की कमी थी। बेरोजगार लोग या तो गांवों से पलायन करके रोजगार के लिए दूसरे शहरों की ओर जा रहे थे, या फिर यहीं पर रहकर अपराधों में लिप्त हो गए थे। इसकी वजह से तीन दशक पहले तक जिले के 25% से अधिक लोग किसी न किसी विवाद या मुकदमे में वांछित रहे हैं।

water conservation, save water
यूपी के बांदा जिले में खेत में मेड़, मेड़ पर पेड़ तकनीकी से बढ़े भूजलस्तर से लहलहाती फसल, पेड़ों पर फल और खेत में सब्जी के साथ किसान।

आज जखनी गांव के नेतृत्व में जब वर्षा जल की बूंदों को खेत में मेड़, मेड़ पर पेड़ की परंपरागत तकनीकी से रोककर गांव का जलस्तर बढ़ाया गया तो न केवल गांव में समृद्धि आई, बल्कि पूरा बांदा जिला ही उत्कर्ष की नई कहानी लिखने लगा। गांव के जलस्तर में वृद्धि होते ही खेतों में फसलें लहलहाईं, गांवों में हरियाली दिखी, पशुओं को पानी उपलब्ध हुआ तो दूध का उत्पादन बढ़ा, सब्जियां, दलहन, तिलहन और धान, गेहूं का उत्पादन बढ़ा। इससे जिले के गांवों में लोगों का जीवन स्तर सुधरा तो व्यापार बढ़ा और लोग बेरोजगार से रोजगार की ओर बढ़े। जो लोग नौकरी और कामधंधे के सिलसिले में सैकड़ों कोस दूर दूसरे शहरों में चले गए थे, वे फिर अपने गांवों की ओर रुख किए और गांव में रोजगार करने लगे। इसका परिणाम यह हुआ कि पिछले एक दशक से जिले में कोई बड़ा अपराध नहीं हुआ। अब गांव में डकैती होने, चोरी होने और महिलाओं के साथ अप्रिय घटनाओं की सूचना नहीं मिल रही है।

गांव में विकास की दिखी बहार
गांव में शिक्षा के मंदिर खुले तो बीमारों के लिए अस्पतालों की व्यवस्था हुई। सामाजिक सौहार्द की नई मिसाल हिंदू मुस्लिम भाईचारा भी बढ़ा। हर व्यक्ति, नौजवान, किसान, मजदूर अपने-अपने काम में मस्त है। शिकवा-शिकायत का दौर खत्म हुआ। यह साबित हुआ कि जल में शक्ति है, जल ही सिद्धि है और जल ही समृद्धि की दाता है। खेत में मेड़, मेड़ पर पेड़ की परंपरागत तकनीकी से वर्षा बूंदों को रोककर जलस्तर बढ़ाने की कवायद ने यह साबित कर दिया कि जल में कितनी ताकत है। इसकी वजह से जलग्राम जखनी एक नया शोधकेंद्र साबित हो रहा है।

बदलाव से जल विशेषज्ञ भी हैरान
बांदा का एक छोटा सा गांव जखनी ने ऐसा कमाल दिखाया कि दुनिया के तमाम वैज्ञानिक और जल विशेषज्ञ हैरान हैं। जिस जलस्तर को बढ़ाने के लिए सरकार अरबों रुपए हर वर्ष खर्च कर रही थी, उसे जखनी गांव के लोगों ने बिना किसी अनुदान और तकनीकी के सामुदायिक और सहभागिता की भावना के साथ काम करके स्वयं ही बढ़ा लिया। जखनी गांव के जलदूत उमा शंकर पांडेय बताते हैं कि उनके पास सिर्फ एक ही तकनीकी है, जो उनके पुरखे वर्षों से करते चले आ रहे हैं, वह तकनीकी है खेत में मेड़, मेड़ पर पेड़ की परंपरागत तकनीकी। इस तकनीकी का ही कमाल है कि आज न केवल जखनी बल्कि पूरा बांदा जिला सम्मान, सरोकार और समृद्धि की नई इबारत लिख रहा है। प्रदेश सरकार की रिकॉर्ड में जो जिला पहले अपराध में नंबर वन था, वह अब विकास और उन्नति का रास्ता दिखा रहा है। यह सब लोगों को जखनी आकर देखना चाहिए।

जो भुखमरी के शिकार थे, वह अब संपन्न हो गए
जलस्तर बढ़ने से उन्नति और समृद्धि का आलम यह है कि जिन लोगों के कभी एक वक्त के खाने के लिए भोजन नहीं था, आज वे ट्रैक्टर, मोटरसाइकिल, जीप के मालिक हैं। जखनी जैसे छोटे से गांव में 40 से अधिक ट्रैक्टर हैं। हार्वेस्टर मशीन है, आधुनिक तथा परंपरागत दोनों तरह के कृषि यंत्र हैं। कभी इस गांव में 150 बीघे में सामान्य धान तथा 500 बीघे जमीन में मात्र एक बार फसल होती थी वर्तमान समय में 2572 सौ बीघे में बासमती धान तथा ₹25 में रवि और खरीफ की फसल पैदा होती है, सब्जियां पैदा होती हैं। आसपास के कई गांव जखनी मॉडल के तर्ज पर खेती करते हैं। देश की चावल की सबसे बड़ी नरेला मंडी में आज बांदा के बासमती चावल की मांग सबसे ज्यादा है।

सूखे बुंदेलखंड में पैदा कर दी बासमती
नीति आयोग, केंद्रीय भूजल संरक्षण, कृषि विश्वविद्यालय तथा पानी पर काम करने वाले जमीनी अनुसंधानकर्ता इस सफलता पर बगैर प्रचार-प्रसार के शोध कर रहे हैं। इस गांव के प्रयोग को सैकड़ों गांवों में लागू किया जा रहा है। अब जखनी गांव सिद्धि प्रसिद्धि के साथ लोगों के लिए रोल मॉडल बन गया है। इस गांव में सरकार का जल संरक्षण के कल्याण में कुछ भी पैसा खर्च नहीं हुआ है। समाज के समुदाय ने पुरखों की विधि से हाथ में फावड़ा उठाया, मेहनत की, खुद श्रम किया, और सूखे बुंदेलखंड में बासमती पैदा कर दी। यह केवल पैदा ही नहीं हुआ बल्कि विदेशों तक जा रही है।

जखनी मॉडल को मंत्रालय कर रहा प्रचारित
बांदा के बाजारों में सब्जियों की सर्वाधिक मांग जखनी के किसानों द्वारा पैदा की गई सब्जी की है। जिसे हम सूखा बुंदेलखंड कहते हैं, वहां पिछले वर्ष 2000 कुंटल से अधिक प्याज जखनी के किसानों ने पैदा करके उपलब्ध कराया। आसपास के सैकड़ों गांव देश के हजारों गांव परंपरागत समुदाय आधारित जल संरक्षण के गुण जखनी के किसानों से बगैर पैसे के सीख रहे जल शक्ति मंत्रालय भारत सरकार नीति आयोग ग्रामीण विकास मंत्रालय भारत सरकार जखनी के जल ग्राम की विधि को पूरे देश में प्रचारित प्रसारित कर रहा है।

उच्च शिक्षण संस्थानें कर रहे शोध
इसे कहते हैं चुपचाप बगैर प्रचार-प्रसार के काम करते रहिए, देश दुनिया आपके काम की नकल करेगी। जखनी जल ग्राम की इस सफल कहानी के नायक जल योद्धा उमा शंकर पांडे बगैर प्रचार-प्रसार के अपने परंपरागत वर्षा जल अभियान में समुदाय के साथ निरंतर लगे रहते हैं। ना कभी अनुदान की मांग, ना किसी पुरस्कार की चाहत अपने गांव को आदर्श गांव बनाने में देश के सामने जन सहभागिता के साथ रोल मॉडल बनाने में एक अंजान नायक की भांति आज लाखों लोग उनके इस जल संरक्षण मंत्र को खेत पर मेड़ पर पेड़ को अपना रहे हैं। हजारों ग्राम पंचायतें इस पर कार्य कर रही हैं। उच्च शिक्षण संस्थान शोध कर रहे हैं।

cmarg author

Sanjay Dubey is Graduated from the University of Allahabad and Post Graduated from SHUATS in Mass Communication. He has served long in Print as well as Digital Media. He is a Researcher, Academician, and very passionate about Content and Features Writing on National, International, and Social Issues. Currently, he is working as a Digital Journalist in Jansatta.com (The Indian Express Group) at Noida in India. Sanjay is the Director of the Center for Media Analysis and Research Group (CMARG) and also a Convenor for the Apni Lekhan Mandali.

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