“कांग्रेस मुक्त देश” की महत्वाकांक्षा को पूरा करने में जुटे ममता, गुलाम और पीके

पिछले कुछ दिनों से देश की राजनीति में बड़ी-बड़ी बातें होती दिख रही हैं। पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) मुंबई की यात्रा के दौरान राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) के नेता शरद पवार (Sharad Pawar) तथा शिवसेना (Shiv Sena) नेता संजय राउत (Sanjay Raut) और आदित्य ठाकरे (Aaditya Thackeray) से मुलाकात की।

इसके अलावा उन्होंने सिविल साेसायटी (Civil Society) के लोगों से भी मिलकर देश के ताजा हालात पर चर्चा की। इस दौरान उन्होंने जो बयान दिए, उससे यह पता चला कि पहले भाजपा के खिलाफ लड़ाई के लिए कांग्रेस को साथ रखना चाहती थीं, लेकिन अब नहीं। उन्होंने यह भी कहा कि राहुल गांधी (Rahul Gandhi) अक्सर विदेश चले जाते हैं। ऐसे में वे राजनीति करने और देश का नेतृत्व करने के योग्य नहीं हैं। उन्होंने यह भी साफ किया कि संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन यानी यूपीए जैसी चीज अब कोई नहीं है, लिहाजा कांग्रेस विपक्ष का नेतृत्व करने वाली पार्टी नहीं रही।

उधर कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ और असंतुष्ट गुट (Dissident Group) के नेता गुलाम नबी आजाद (Ghulam Nabi Azad) ने जम्मू-कश्मीर के पुंछ में कहा कि आज के हालात देखकर नहीं लगता है कि कांग्रेस पार्टी अगले लोकसभा चुनाव 2024 में सरकार बनाने के लिए जरूरी 300 सीटों को जीत सकेगी। उन्होंने यह भी कहा कि अब धारा 370 को बहाल होना नामुमकिन है।

तीसरा बयान चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर का आया। उन्होंने कहा  कांग्रेस का नेतृत्व एक विशेष व्यक्ति का ही दैवीय अधिकार नहीं है। उन्होंने ट्वीट करके कहा, “कांग्रेस जिस विचार और जगह का प्रतिनिधित्व करती है वो एक मजबूत विपक्ष के लिए अहम है, लेकिन कांग्रेस का नेतृत्व एक विशेष व्यक्ति का दैवीय अधिकार नहीं, खासकर जब पार्टी पिछले 10 सालों में अपने 90% चुनावों में हार का सामना कर चुकी है।”

: खास बातें :
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा, कांग्रेस नेता राहुल गांधी अक्सर विदेश चले जाया करते हैं। ऐसे में वे राजनीति करने और देश का नेतृत्व करने के योग्य नहीं हैं।

प्रशांत किशोर ने कहा, “कांग्रेस का नेतृत्व एक विशेष व्यक्ति का दैवीय अधिकार नहीं, खासकर जब पार्टी पिछले 10 सालों में अपने 90% चुनावों में हार का सामना कर चुकी है।”

इन तीनों बयानों से साफ है कि देश में राजनीतिक महत्वाकांक्षा जिस तरह बढ़ रही है, वह देश की सबसे पुरानी और सबसे लंबे समय तक सत्ता में रहने वाली कांग्रेस पार्टी में नाउम्मीदी दिखाती है। लड़ाई भाजपा के खिलाफ शुरू हुई थी, लेकिन विपक्ष का अंतर्विरोध इतना ज्यादा है कि राजनीतिक पंडित अगले 2024 तो छोड़िए 2029 तक भी उसमें एकता की गुंजाइश नहीं देख पा रहे हैं। वजह यह भी है कि हमारे बूढ़े होते अनुभवी नेता तब तक शारीरिक रूप से राजनीति करने के लायक नहीं रहेंगे और जो जवान हैं, वे दूसरे के नेतृत्व में काम ही नहीं करना चाहते हैं।

पश्चिम बंगाल की सीएम और तृणमूल कांग्रेस (Trinmool Congress) की मुखिया ममता बनर्जी अपने सूबे में विधानसभा चुनाव में मिली जीत से इतना उत्साहित हैं कि उन्हें लगता है कि वे संयुक्त विपक्ष की स्वीकार्य नेता के रूप में सबसे योग्य चेहरा हैं। उनकी यह महत्वाकांक्षा देखकर कई नेताओं के चेहरे की हवाइयां उड़ी हुई हैं। इसकी वजह से वह मिल तो रहे हैं, लेकिन फूंक-फूंक कर कदम बढ़ा रहे हैं। इसका संकेत शिवसेना सांसद अरविंद सावंत (Arvind Sawant) ने दिया।

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उन्होंने कहा कि “अगले लोकसभा चुनाव में उद्धव ठाकरे को प्रधानमंत्री पद का चेहरा बनाया जाना चाहिए।” कहा कि “मैं चाहता हूं कि वह देश के पीएम बनें।” ममता बनर्जी ने मुंबई यात्रा के दौरान शिवसेना के नेताओं से मुलाकात जरूर की, लेकिन वहां महाराष्ट्र में महा विकास अघाड़ी (Maha Vikas Aghadi) की जो सरकार है, उसमें शिवसेना, राष्ट्रवादी कांग्रेस के साथ-साथ कांग्रेस पार्टी भी शामिल है। ममता बनर्जी ने कांग्रेस छोड़कर बाकी दोनों दलों से मुलाकात की। इससे साफ है कि उनकी महत्वाकांक्षा काफी ऊंची है।

उधर, गुलाम नबी आजाद जैसे वरिष्ठ नेताओं को कांग्रेस पार्टी ने दरकिनार कर दिया है। पार्टी का एक ही सिद्धांत है कि या तो सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी की छतरी के नीचे रहने की कसम खाइए, नहीं तो पार्टी से दूर हो जाइए। गुलाम नबी आजाद कई बार सार्वजनिक रूप से कह चुके हैं कि पार्टी में नेतृत्व परिवर्तन होना चाहिए। अन्यथा पार्टी का कोई भविष्य नहीं रह जाएगा। इसी बात को प्रशांत किशोर भी समझाने की कोशिश कर रहे हैं। उनका कहना है कि कांग्रेस पार्टी एक परिवार वाली पार्टी बन गई है, जिसमें उस परिवार को चुनौती देना सबसे बड़ा अपराध है।

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