AK‑203 rifle: भारतीय सेना को जल्द मिलने जा रही है एक नई ताकत—AK-203 असॉल्ट राइफल। पुराने INSAS राइफल की जगह लेने वाली यह आधुनिक हथियार प्रणाली ‘मेक इन इंडिया’ की बड़ी सफलता मानी जा रही है। भारत-रूस की साझेदारी से तैयार इस राइफल को इतना प्रभावशाली और रणनीतिक रूप से अहम बताया जा रहा है कि इसे ‘ब्रह्मोस मिसाइल का छोटा भाई’ (younger brother of BrahMos) तक कहा जा रहा है। यह तुलना सिर्फ तकनीक की नहीं, बल्कि आत्मनिर्भरता और सामरिक साझेदारी की ताकत को दर्शाने के लिए की जा रही है।
AK‑203 rifle: AK-203 की पहली खेप सेना को सौंपने को तैयार
AK-203 की पहली खेप अगले 2-3 हफ्तों में भारतीय सेना को सौंपी जाएगी। यह राइफल न केवल पुराने INSAS सिस्टम की जगह लेगी, बल्कि सैनिकों को ज्यादा भरोसेमंद, घातक और आधुनिक हथियार भी देगी। इसका 7.62×39 मिमी कैलिबर, खराब मौसम में भी काम करने की क्षमता और बेहतर स्थायित्व इसे मौजूदा राइफलों से काफी आगे खड़ा करता है।
AK‑203 rifle: IRRPL का रिकॉर्ड तोड़ उत्पादन लक्ष्य
उत्तर प्रदेश के अमेठी जिले में स्थित इंडो-रशियन राइफल्स प्राइवेट लिमिटेड (IRRPL) को 5,200 करोड़ रुपये के अनुबंध के तहत कुल 6.01 लाख AK-203 राइफलें तैयार करनी हैं। इस परियोजना की डेडलाइन अक्टूबर 2032 तय की ग, लेकिन कंपनी ने इसे दो साल पहले, यानि दिसंबर 2030 तक ही पूरा करने की योजना बनाई है। अब तक 48,000 राइफलें सेना को सौंप दी गई हैं और इस साल दिसंबर तक 15,000 और राइफलें तैयार हो जाएंगी।
AK‑203 rifle: भारत में उत्पादन, निर्यात की भी तैयारी
AK-203 को पूरी तरह से भारत में तैयार किया जा रहा है। यह सिर्फ सेना को नया हथियार नहीं दे रही, बल्कि भारत की हथियार-निर्माण क्षमताओं को भी वैश्विक स्तर पर स्थापित कर रही है। IRRPL के सीईओ ने हाल ही में बताया कि कंपनी भविष्य में निर्यात की दिशा में भी आगे बढ़ रही है।
AK‑203 rifle: क्या है AK-203 राइफल की खासियत?
AK-203 असॉल्ट राइफल कलाश्निकोव सीरीज़ का नवीनतम वर्जन है, जिसे खासतौर पर LOC और LAC जैसी संवेदनशील सीमाओं पर तैनात जवानों के लिए डिज़ाइन किया गया है।
- इसकी जीवन अवधि 15,000 राउंड है।
- प्रत्येक राइफल 120 निर्माण प्रक्रियाओं, 50 भागों और 180 उप-घटकों से मिलकर बनती है।
- इसे ‘शेर’ नाम से भी जाना जा रहा है, जो जवानों में इसकी लोकप्रियता का संकेत है।
AK‑203 rifle: INSAS को अलविदा, अब बनेगा नया मानक
सेना में INSAS राइफल की जगह AK-203 को लाया जा रहा है। शुरुआती जरूरतों को पूरा करने के लिए 70,000 राइफलें आयात की गई थीं, लेकिन अब देश में ही हर दिन 600 राइफलें बनाने की क्षमता स्थापित कर ली गई है।
2026 से हर महीने 12,000 राइफलें तैयार होंगी, जिससे समय से पहले डिलीवरी संभव हो सकेगी।
AK‑203 rifle: IRRPL: भारत-रूस साझेदारी का नया चेहरा
IRRPL की स्थापना 2019 में भारत और रूस के बीच अंतर-सरकारी समझौते के तहत हुई थी।
- इसमें रूस की ओर से रोसोबोरोनएक्सपोर्ट और कंसर्न कलाश्निकोव,
- और भारत की ओर से एडवांस्ड वेपन्स एंड इक्विपमेंट इंडिया लिमिटेड (AWEIL) तथा म्यूनिशंस इंडिया लिमिटेड (MIL) साझेदार हैं।
यह संयंत्र 8.5 एकड़ में फैला है, और 260 कर्मचारियों को रोजगार दे रहा है, जिसमें रूसी विशेषज्ञ भी शामिल हैं। भविष्य में यह संख्या 537 तक पहुंचाई जाएगी, जिसमें 90% स्थानीय कर्मचारी होंगे।
AK‑203 rifle: 100% स्वदेशीकरण की ओर
तकनीक हस्तांतरण पूरी तरह हो चुका है और अब तक 60 से अधिक पुर्जों का निर्माण भारत में ही शुरू हो गया है।
IRRPL का लक्ष्य है कि 2025 के अंत तक उत्पादन पूरी तरह स्वदेशी हो जाए और 2026 से केवल भारत में बनी राइफलें ही सेना को दी जाएं।
AK‑203 rifle: भारत का आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ता कदम
केवल हल्के हथियारों तक सीमित नहीं, भारत ने चांदीपुर में पृथ्वी-2 और अग्नि-1 मिसाइलों के परीक्षण कर यह दिखा दिया है कि वह रणनीतिक हथियारों के क्षेत्र में भी आत्मनिर्भर बनने की राह पर अग्रसर है।
अब भारत सिर्फ अपनी सेनाओं की जरूरतें पूरी करने वाला देश नहीं रह गया है, बल्कि वह वैश्विक रक्षा निर्यातक के रूप में भी उभरने की तैयारी में है।
AK-203 राइफल सिर्फ एक हथियार नहीं, बल्कि आत्मनिर्भर भारत की सैन्य पहचान बन चुकी है। अमेठी की धरती पर बना यह आधुनिक हथियार, भारत-रूस साझेदारी की मजबूती, स्थानीय उत्पादन की ताकत और भविष्य की युद्ध नीति का प्रतीक है। INSAS की विदाई और ‘शेर’ राइफल की एंट्री के साथ भारत ने अब सीमा पर अपनी ताकत को नए सिरे से परिभाषित करना शुरू कर दिया है।
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