Longest Emergency: दुनिया भर के लोकतंत्रों में आपातकाल एक ऐसा दुखद क्षण होता है, जब आम जनता के सभी मौलिक अधिकार समाप्त हो जाते हैं और वह केवल सरकार तथा सरकारी अफसरशाही के आदेशों का पालन करने को विवश हो जाती है। आम समझ यही होती है कि सरकार जैसा कहेगी, जनता को वैसा ही करना होगा। इसकी कोई निर्धारित समयसीमा भी नहीं होती। हमारे देश ने भी आपातकाल का दंश झेला है, लेकिन हमारे पड़ोसी देश श्रीलंका ने इसे दुनिया में सबसे लंबे समय तक भुगता है।
श्रीलंका में 25 अगस्त 2011 को 27 वर्षों से लागू आपातकाल को समाप्त किया गया था। यह एक ऐसा आपातकाल था, जिसे विश्व इतिहास का सबसे लंबा आपातकाल माना जाता है। जुलाई 1983 में तत्कालीन राष्ट्रपति रणसिंघे प्रेमदासा (Ranasinghe Premadasa) की सरकार ने देश में आपातकाल लागू किया था। बीच में कुछ दिनों के लिए थोड़ी राहत दी गई थी, लेकिन अधिकतर समय यह निरंतर प्रभावी रहा।
Longest Emergency: क्या थी वजह?
श्रीलंका में इतने लंबे आपातकाल की तत्कालीन वजह जातीय संघर्ष थी। श्रीलंका में सिंहली और तमिल मूल के लोगों के बीच विवाद 1948 में ब्रिटिश हुकूमत से मिली आजादी से पहले से ही चला आ रहा था। अंग्रेजी शासन के दौरान ‘फूट डालो और राज करो’ की नीति ने इस संघर्ष को और अधिक गहराया।
23 जुलाई 1983 की रात को तमिल विद्रोही संगठन ने जाफना के पास सिंहलियों पर हमला कर दिया। शुरुआती घटनाक्रम में श्रीलंका की सेना के 13 जवान मारे गए। इसके बाद देशभर में व्यापक विद्रोह भड़क उठा और राष्ट्रपति प्रेमदासा की सरकार को आपातकाल लागू करने का कठोर कदम उठाना पड़ा।
Longest Emergency: विद्रोह की शुरुआत किसने की थी?
इस विद्रोह की शुरुआत तमिल विद्रोही संगठन लिट्टे (LTTE – Liberation Tigers of Tamil Eelam) ने की थी। आम भाषा में इसे लिट्टे कहा जाता था। ऐसा माना जाता है कि उस समय सरकार में शामिल तमिल समूह यूएनपी (UNP) का भी लिट्टे को समर्थन प्राप्त था। यह संघर्ष कई दिनों तक चला और इसमें घातक हथियारों का भी उपयोग किया गया।
Longest Emergency: देश में शुरू हो गया गृहयुद्ध
हिंसा के खिलाफ हिंसा के रूप में तमिलों के विरोध में सिंहलियों ने भी विद्रोह शुरू कर दिया। राजधानी कोलंबो समेत श्रीलंका के कई इलाकों में भयानक खूनखराबा हुआ। राजधानी से निकलकर यह हिंसा देश के अन्य हिस्सों तक फैल गई। अनुमान है कि सिंहलियों के हमलों में करीब दो हजार से अधिक तमिल मारे गए और सवा लाख से अधिक लोग बेघर हो गए। देश में हालात ऐसे बन गए मानो गृहयुद्ध छिड़ गया हो।
दूसरी ओर, तमिल मानवाधिकार संगठनों का दावा था कि हमलों में 5638 लोग मारे गए, 8000 घर और 5000 दुकानें जला दी गईं, 466 लोग लापता हुए और 670 तमिल महिलाओं के साथ बलात्कार की घटनाएं दर्ज की गईं। साथ ही, ढाई लाख लोगों के विस्थापन की बात भी कही गई। हालांकि, सरकारी आंकड़े इससे काफी कम थे। कई गैरसरकारी संस्थाओं (NGO) ने सरकार के दावों पर सवाल उठाते हुए मृतकों की संख्या को और अधिक बताया था।
Longest Emergency: आपातकाल क्यों लगाना पड़ा?
तमिल-सिंहल जातीय संघर्ष के चलते श्रीलंका की स्थिति इतनी बदतर हो गई थी कि तमिलों को दूसरे देशों में शरण मांगनी पड़ी। देश के विभिन्न हिस्सों में लूटपाट, आगजनी, हत्या और महिलाओं के साथ अत्याचार की घटनाएं लगातार सामने आने लगीं। कर्फ्यू लगाने के बावजूद हिंसा पर नियंत्रण नहीं हो पाया।
स्थिति की गंभीरता को देखते हुए प्रधानमंत्री रणसिंघे प्रेमदासा को राष्ट्रपति जे.आर. जयवर्धने (Junius Richard Jayewardene) से आपातकाल लगाने की सिफारिश करनी पड़ी। यह आपातकाल 27 साल तक चला, और अंततः 25 अगस्त 2011 को समाप्त किया गया।
Longest Emergency: पहले वामपंथी उग्रवादी हिंसा से जूझता रहा है श्रीलंका
भारत के पड़ोसी देश श्रीलंका में लंबे समय से गृहयुद्ध और विद्रोह की घटनाएं होती रही हैं। जुलाई 1983 से पहले श्रीलंका ने 1971 में एक बड़ा विद्रोह देखा था। इसके पीछे वामपंथी उग्रवादी संगठन जनता विमुक्ति पेरामुना (JVP) था। यह विद्रोह शुरुआत में विफल हो गया, फिर भी इसमें 5000 से ज्यादा लोग मारे गए।
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JVP के लड़ाकों, जिन्हें ‘रेड गार्ड’ कहा जाता था, ने देशभर में 76 से अधिक पुलिस थानों पर कब्जा कर लिया था। स्थिति बेहद खराब हो गई थी। इसके बाद संगठन के नेता रोहाना विजेवीरा (Rohana Wijeweera) को गिरफ्तार कर जाफना की जेल में बंद कर दिया गया।
हालांकि, गिरफ्तारी के बाद भी JVP के अन्य लड़ाके चुप नहीं बैठे और 5 अप्रैल 1971 की रात को एक बार फिर विद्रोह शुरू कर दिया। उन्होंने देश के दक्षिण-मध्य क्षेत्र में हमला किया। इस बार सरकार ने पूरी सख्ती दिखाई। करीब दो सप्ताह तक चले इस संघर्ष में सरकार ने देश के सभी क्षेत्रों पर पुनः नियंत्रण पा लिया। इस संघर्ष में लगभग 30,000 विद्रोही लड़ाके मारे गए और विजेवीरा को 20 साल की कठोर कैद की सजा दी गई।
Longest Emergency: श्रीलंका में बीते साल भी लगा आपातकाल
पिछले साल, मई 2022 में श्रीलंका में फिर से आपातकाल लागू किया गया। इस बार वजह थी गंभीर आर्थिक संकट और जनता का असंतोष। उस समय के राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे (Gotabaya Rajapaksa) हालात को संभाल नहीं पाए और देश छोड़कर भाग गए। इसके बाद कार्यवाहक राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे (Ranil Wickremsinghe) ने आपातकाल की घोषणा की। इससे पहले अप्रैल 2022 में भी कुछ दिनों के लिए आपातकाल लागू किया गया था।
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