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भारत में वामपंथ: 99 साल की CPI, सबसे पुरानी कम्युनिस्ट पार्टी का सफर

आजादी से पहले तेलंगाना किसान विद्रोह CPI का सबसे बड़ा आंदोलन था।

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भारत में वामपंथ: आज से हम शुरू कर रहे हैं एक नई सीरिज – “भारत के कम्युनिस्ट दल और उनकी विचारधाराएं”। इसमें हम देश के प्रमुख वाम दलों के इतिहास, विचार, आंदोलन और राजनीतिक सक्रियता को सरल भाषा में जानेंगे। शुरुआत होगी भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (CPI) से, जो सबसे पुरानी पार्टी है। इसके बाद CPI(M), CPI(ML) और उसके गुट, फिर आगे CPI(Maoist), RSP, Forward Bloc और SUCI(C) जैसे संगठनों पर चर्चा करेंगे। इस सीरिज को रोज़ पढ़ने से यह स्पष्ट होगा कि ये दल क्यों बने, उनकी सोच क्या है, किन क्षेत्रों में सक्रिय हैं और समाज व राजनीति पर इनका क्या असर है। पहला पार्ट CPI की कहानी पर केंद्रित है – इसके गठन, विचार, आंदोलन और योगदान को आसान भाषा में समझिए। पूरी सीरिज के माध्यम से आप भारतीय लेफ्ट राजनीति की पूरी तस्वीर समझ पाएंगे, मुख्यधारा से लेकर क्रांतिकारी और नक्सली धाराओं तक।

Part 1 

भारतीय राजनीति में लेफ्ट फ्रंट की सबसे पुरानी और ऐतिहासिक धारा है भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (CPI)। इसने आज़ादी के आंदोलन से लेकर किसान–मजदूर संघर्षों और संसद तक अपनी मजबूत मौजूदगी दर्ज कराई। 1925 में स्थापना के बाद से CPI ने न केवल सत्ता की राजनीति में हिस्सा लिया बल्कि सामाजिक न्याय, भूमि सुधार, शिक्षा और श्रमिक अधिकार जैसे मुद्दों को भी केंद्र में रखा। यही वह संगठन है जिसने पहली बार लोकतांत्रिक ढंग से चुनी गई कम्युनिस्ट सरकार बनाई और लेफ्ट विचारधारा को जनआंदोलन से जोड़ा।

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स्थापना और शुरुआती संघर्ष

CPI की स्थापना 26 दिसंबर 1925 को कानपुर में हुई। संस्थापक एम.एन. रॉय माने जाते हैं। शुरुआती दौर में पार्टी पर ब्रिटिश सरकार ने कई बार प्रतिबंध लगाया। मेरठ और कानपुर षड्यंत्र मामले ने इसे जनता के बीच पहचान दिलाई। आज़ादी से पहले CPI का सबसे बड़ा आंदोलन था तेलंगाना किसान विद्रोह (1946-51), जिसमें किसानों ने निजाम और जमींदारों के खिलाफ संघर्ष किया।

विचारधारा और संगठन

CPI की विचारधारा मार्क्सवाद-लेनिनवाद पर आधारित है। इसका लक्ष्य वर्गविहीन समाज और आर्थिक समानता है।

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  • मजदूर विंग: अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस (AITUC)

  • किसान विंग: अखिल भारतीय किसान सभा (AIKS)

  • कृषि मज़दूर विंग: भारतीय खेत मज़दूर यूनियन

  • महिला संगठन: नेशनल फेडरेशन ऑफ़ इंडियन वूमेन (NFIW)

CPI का झंडा लाल रंग का है, जिस पर हंसिया और हथौड़ा अंकित है। पार्टी का मुख्यालय दिल्ली के अजॉय भवन में स्थित है। वर्तमान महासचिव डी. राजा हैं, लोकसभा में नेता के. सुब्बरायन और राज्यसभा में पी. संतोष कुमार हैं।

स्वतंत्र भारत और पहली कम्युनिस्ट सरकार

1952 में CPI पहली लोकसभा की मुख्य विपक्षी पार्टी बनी। 1957 में CPI ने इतिहास रचा, जब ई.एम.एस. नंबूदरीपाद की अगुआई में केरल में पहली लोकतांत्रिक कम्युनिस्ट सरकार बनी। CPI ने श्रमिक आंदोलनों, भूमि सुधार और शिक्षा-स्वास्थ्य जैसे मुद्दों पर बड़े आंदोलन चलाए।

1964 का विभाजन

1960 के दशक में CPI दो हिस्सों में बंट गई।

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  • CPI: मानती थी कि कांग्रेस से सहयोग लेकर लोकतांत्रिक तरीक़े से समाजवाद लाया जा सकता है। यह धड़ा सोवियत संघ के करीब था। प्रमुख नेता एस.ए. डांगे रहे।

  • CPI(M): कांग्रेस को पूंजीवादी पार्टी मानकर उसका विरोध करती थी और चीन की लाइन के करीब थी। इसके नेता थे ई.एम.एस. नंबूदरीपाद, ज्योति बसु और पी. सुन्दरैया। विभाजन के बाद CPI(M) मजबूत हुई जबकि CPI अपेक्षाकृत छोटी रह गई।

सरकारों में भागीदारी

1970 के दशक में CPI ने इंदिरा गांधी का समर्थन किया। 1996-98 में यह संयुक्त मोर्चा सरकार का हिस्सा बनी और देवगौड़ा व गुजराल मंत्रिमंडल में मंत्री पद मिले। कई राज्यों में भी CPI गठबंधन सरकारों में शामिल रही।

क्यों खत्म हुआ राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा

2019 लोकसभा चुनाव में CPI को सिर्फ 2 सीटें मिलीं। लगातार खराब प्रदर्शन के चलते 2023 में चुनाव आयोग ने इसका राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा खत्म कर दिया। हालांकि यह अब भी केरल, तमिलनाडु और त्रिपुरा में राज्य स्तरीय दल के रूप में मान्यता प्राप्त है।

  • केरल: CPI वाम लोकतांत्रिक मोर्चे (LDF) की सरकार में शामिल है, इसके 4 मंत्री राज्य मंत्रिमंडल में हैं।

  • तमिलनाडु: CPI डीएमके गठबंधन का हिस्सा है और सरकार में भाग ले रही है।

  • त्रिपुरा: CPI(M) के साथ गठबंधन में सक्रिय है, हालांकि सत्ता में नहीं है।

  • बिहार व महाराष्ट्र: गठबंधन की राजनीति में मौजूद है, लेकिन सत्ता में सीमित भूमिका है।

स्थापना और शुरुआती संघर्ष

CPI की स्थापना 26 दिसंबर 1925 को कानपुर में हुई। संस्थापक एम.एन. रॉय माने जाते हैं। शुरुआती दौर में पार्टी पर ब्रिटिश सरकार ने कई बार प्रतिबंध लगाया। मेरठ और कानपुर षड्यंत्र मामले ने इसे जनता के बीच पहचान दिलाईआज़ादी से पहले CPI का सबसे बड़ा आंदोलन रहा तेलंगाना किसान विद्रोह (1946-51), जिसमें किसानों ने निजाम और जमींदारों के खिलाफ लड़ाई लड़ी।

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विचारधारा और संगठन

CPI की विचारधारा मार्क्सवाद-लेनिनवाद पर आधारित है। इसका लक्ष्य वर्गविहीन समाज और आर्थिक समानता है।

मजदूर विंग: अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस (AITUC)

किसान विंग: अखिल भारतीय किसान सभा (AIKS)

कृषि मज़दूर विंग: भारतीय खेत मज़दूर यूनियन

महिला संगठन: नेशनल फेडरेशन ऑफ़ इंडियन वूमेन (NFIW)

CPI का झंडा लाल रंग का है, जिस पर हंसिया और हथौड़ा अंकित है। पार्टी का मुख्यालय दिल्ली के अजॉय भवन में स्थित है। वर्तमान महासचिव डी. राजा हैं, लोकसभा में नेता के. सुब्बरायन और राज्यसभा में पी. संतोष कुमार हैं।

स्वतंत्र भारत और पहली कम्युनिस्ट सरकार

1952 में CPI पहली लोकसभा की मुख्य विपक्षी पार्टी बनी। 1957 में CPI ने इतिहास रचा, जब ई.एम.एस. नंबूदरीपाद की अगुआई में केरल में पहली लोकतांत्रिक ढंग से चुनी गई कम्युनिस्ट सरकार बनी। CPI ने श्रमिक आंदोलनों, भूमि सुधार और शिक्षा-स्वास्थ्य जैसे मुद्दों पर जनआंदोलन चलाए।

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