धरती नापी, सागर छाना, चूम लिया आकाश, अब असहाय

पिछले वर्ष मार्च माह में देशभर में लॉकडॉउन लगा दिया गया था। तब कोरोना वॉयरस का संक्रमण ऐसी महामारी बनकर आया था, जिसके सामने संसार का निर्बाध शासक बना मनुष्य असहाय, विवश, लाचार हो गया। वह जिसका पूरे संसार पर नियंत्रण था, स्वयं सूक्ष्म विषाणु के नियंत्रण में हो गया था। उसकी स्वयं की स्वतंत्रता नष्ट हो गई थी। यह मानव के चिर अहंकार का परिणाम था। आज हम फिर वहीं पहुंचने की कगार पर हैं। शायद प्रकृति के तिरस्कार ने हमें विषाणु का शिकार बना दिया।

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सृष्टि की रचना के बाद सभी जीवों में मानव ही एक ऐसा जीव है, जिसमें सोचने-समझने और नए कार्य करने की क्षमता और गुण है। वह अपने मस्तिष्क का व्यापक प्रयोग करता है। अन्य तरह के जीवों के समूह में रहते हुए सर्वाधिक बुद्धिमान है। मनुष्य ने पूरी धरती का चक्कर लगा लिया, समुद्र की हजारों मील की गहराई (जहां सूर्य की रोशनी नहीं पहुंच सकती और घोर अंधकार है) में तलहटी तक पहुंच कर छान मारा, आकाश की ऊंचाइयों को छू लिया। चंद्रमा और मंगल ग्रह-उपग्रह तक पहुंच बना ली। इसके बावजूद एक मामूली सा विषाणु (Virus) ने उस मानव जाति को इतना असहाय बना दिया कि पूरे संसार की गति रुक गई। विज्ञान के चमत्कार काम नहीं कर रहे हैं। विश्व का सबसे शक्तिशाली और लगभग सभी देशों पर परोक्ष-अपरोक्ष दबाव बनाने का माद्दा रखने (और दम्भ भरने) वाला संयुक्त राज्य अमेरिका आज खुद को इतना लाचार, बेबस और निरीह महसूस कर रहा है, मानों वह टूट सा गया है। कुछ ऐसे ही हालात 19वीं-20वीं सदी में ईस्ट इंडिया कंपनी के उपनिवेशवादी (colonialism) जमाने में पूरे विश्व पर शासन करने वाले इंग्लैंड (जिसे Great Britain कहा गया) और इटली, कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, जापान आदि देशों के भी हैं।
पूरी दुनिया आशंकाओं से खौफजदा है।

विश्व की अर्थव्यवस्थाएं आज भूकंप की मानिंद डोल रही हैं। अब तक जो क्षति हुई हैं, उससे हम लगभग दस वर्ष पीछे चले गए। कंपनियां ठप हैं, उत्पादन और खपत रुक गई हैं, नौकरियां जाने का खतरा साफ दिख रहा है, बेरोजगारी की आशंकाओं से युवा भयभीत हो रहे हैं, रात-दिन लोगों से गुलजार रहने वाला बाज़ार बंद हैं, यातायात थम गईं है, प्रदूषण की मार से घुट रहे शहरों में साफ हवाएं तो बहने लगी हैं, लेकिन सांस लेने के लिए लोगों का बाहर निकलना मना हो गया है। क्या होगा, कोरोना क्या कराएगा, कुछ पता नहीं!

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कोरोना विषाणु (Corona Virus) न तो हथियार है और न ही कोई सेना है, न ही वह सामने आकर दिखता है और न ही वह बोलता है, न ही वह मारता है और न ही वह हमला करता है; लेकिन वह जिसको जकड़ता है, वह स्वयं मौत के मुंह में चला जाता है। उसकी अदृश्य और आभासी मार ने पूरे विश्व को यह अहसास करा दिया है कि पैसा, रुपया और हथियारों की ताकत के आगे एक और शक्ति है, वह है सरलता, संयम, नियम, व्रत, सादगी और निष्कपटता, जिसे मानव आधुनिकता और भौतिकता के अहंकार में भूल गया है।

संसार ने प्रथम विश्व युद्ध और दूसरे विश्व युद्ध की विभीषिका को झेला, हजारों-लाखों लोग मौत के मुंह में समा गए, लेकिन वह हथियारों, अस्त्र-शस्त्रों से लड़ी गई लड़ाइयां थीं, जिनके बारे में लोगों को पहले से पता था कि युद्ध में जानें जाती हैं, संसार व्यापक विनाश का सामना करता है। वह आभासी नहीं, यथार्थ का मुकाबला होता था, उसमें सेनाएं एक-दूसरे से भिड़ती थीं, वह ताकत की कसौटी पर कसा गया युद्ध होता था, जिसका सरंजाम खूनखराबा था। लेकिन कोरोना विषाणु (Corona Virus) ने सबको आपस में दूर-दूर रहने और एक-दूसरे के सामने नहीं आने, खून से हाथ सने होने की बजाय बार-बार हाथ साफ करने, अपने पक्ष के लोगों को पास बुलाने की बजाय सबसे अलग रहने को विवश कर दिया।

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सदियों से यह बताया जाता रहा है कि इतिहास खुद को दोहराता है। शायद कोरोना का उद्भव इसीलिए हुआ कि हम अब फिर से पुराने और जंगली अरण्य काल में पहुंच जाएं। जहां न हथियारों का भय रहेगा और न ही पर्यावरण प्रदूषण का खतरा ही होगा। जहां न तो अमीरी-गरीबी के बीच की खाई होगी और न ही लोभ और लालच का पाप होगा। शायद संसार को ऐसे ही चलना होगा। यही सनातन सत्य है।

cmarg author

Sanjay Dubey is Graduated from the University of Allahabad and Post Graduated from SHUATS in Mass Communication. He has served long in Print as well as Digital Media. He is a Researcher, Academician, and very passionate about Content and Features Writing on National, International, and Social Issues. Currently, he is working as a Digital Journalist in Jansatta.com (The Indian Express Group) at Noida in India. Sanjay is the Director of the Center for Media Analysis and Research Group (CMARG) and also a Convenor for the Apni Lekhan Mandali.

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