भारत में वामपंथ: कल हमने इस सीरिज की पहली कड़ी में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (CPI) की कहानी जानी थी। आज दूसरी कड़ी में बात करेंगे भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) – CPI(M) की, जो CPI से अलग होकर बनी और लंबे समय तक भारत की सबसे प्रभावशाली वामपंथी ताकत रही। CPI(M) की शुरुआत 1964 में CPI के भीतर वैचारिक मतभेदों से हुई थी। एक धड़ा सोवियत संघ की लाइन पर चलना चाहता था, जबकि दूसरा धड़ा चीन और क्रांतिकारी रास्ते के करीब था।
यही मतभेद पार्टी विभाजन का कारण बने और CPI(M) अस्तित्व में आई। इस कड़ी में हम समझेंगे कि CPI(M) क्यों बनी, इसकी विचारधारा क्या है, किस तरह यह पश्चिम बंगाल, केरल और त्रिपुरा में मजबूत हुई, इसके आंदोलन और संघर्ष कौन–कौन से रहे, और आज इस पार्टी की स्थिति कैसी है।
Part 2
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी), जिसे संक्षेप में CPI(M) कहा जाता है, भारत की सबसे बड़ी वामपंथी राजनीतिक पार्टी है। इसे भारत की छह राष्ट्रीय पार्टियों में गिना जाता है। यह पार्टी मार्क्सवाद–लेनिनवाद की विचारधारा पर आधारित है और मजदूरों, किसानों तथा गरीब तबकों की राजनीति करने का दावा करती है। वामपंथ का महत्वपूर्ण अंग सीपीएम की स्थापना की भी अपनी एक अलग कहानी है।
भारत में वामपंथ: स्थापना और उद्भव
1964 में स्थापना – भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (CPI) से वैचारिक मतभेदों के चलते CPI(M) बनी।
मतभेद- एक धड़ा सोवियत संघ की लाइन और संसदीय लोकतंत्र के पक्ष में था।
– दूसरा धड़ा क्रांतिकारी रास्ते और चीन की विचारधारा से प्रभावित था।
संगठनात्मक ढांचा
सर्वोच्च निकाय: अखिल भारतीय पार्टी कांग्रेस (हर 3 साल में नीतियां तय होती हैं)।
इसके बीच: केंद्रीय समिति।
शीर्ष निर्णय निकाय: पॉलित ब्यूरो (Polit Bureau)।
प्रमुख जनसंगठन:
1- मजदूर: CITU (1970)
2- किसान: AIKS
3- छात्र: SFI
राज्यों में स्थिति
पश्चिम बंगाल
1977–2011 तक लगातार सत्ता (34 वर्ष, दुनिया की सबसे लंबी लोकतांत्रिक कम्युनिस्ट सरकार)।
ज्योति बसु (1977–2000) – सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री।
भूमि सुधार और ऑपरेशन बर्गा – किसानों को जमींदारों से अधिकार दिलाना।
2011 में तृणमूल कांग्रेस के हाथ सत्ता चली गई।
केरल
CPI(M) यहां बेहद प्रभावशाली।
सत्ता का अदल–बदल CPI(M) नीत LDF और कांग्रेस नीत UDF के बीच।
वर्तमान (2021 से) – पिनाराई विजयन की CPI(M) सरकार।
त्रिपुरा
1977–2018 तक लगातार सत्ता में (माणिक सरकार की ईमानदार छवि मशहूर)।
2018 में बीजेपी ने CPI(M) को हराया।
अन्य राज्य
तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र, बिहार आदि में सीमित प्रभाव।
प्रमुख आंदोलन और संघर्ष
तेलंगाना आंदोलन (1946–51) – CPI दौर में, लेकिन CPI(M) की क्रांतिकारी छवि बनी।
नक्सलबाड़ी आंदोलन (1967) – CPI(M) के कट्टरपंथी धड़े का विद्रोह, बाद में माओवादी धारा बनी।
भूमि सुधार आंदोलन – खासकर पश्चिम बंगाल व केरल में।
मजदूर–किसान संघर्ष – हड़तालों और आंदोलनों में लगातार सक्रिय।
CPI(M) के प्रमुख नेता
ई.एम.एस. नंबूदिरिपाद – संस्थापक नेता, केरल के पहले कम्युनिस्ट मुख्यमंत्री।
बी.टी. रणदिवे, पुणो सिंह, पी. सुंदरैया, ए.के. गोपालन – शुरुआती दौर के वैचारिक स्तंभ।
ज्योति बसु – लंबे समय तक पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री।
बुद्धदेव भट्टाचार्य – बंगाल में उत्तराधिकारी नेतृत्व।
हरकिशन सिंह सुरजीत – संगठनात्मक मजबूती और राष्ट्रीय राजनीति में अहम भूमिका।
प्रकाश करात – महासचिव (2005–2015)।
सीताराम येचुरी – हाल के वर्षों का सबसे बड़ा चेहरा (2024 में निधन)।
वैचारिक आधार
CPI(M) का आधार: मार्क्सवाद–लेनिनवाद।
मान्यता: भारत में अब भी जनवादी क्रांति अधूरी है।
लक्ष्य:
साम्राज्यवाद, सामंतवाद और पूंजीपतियों का प्रभुत्व खत्म करना।
मजदूर–किसान सरकार की स्थापना।
समाजवाद और साम्यवाद की ओर बढ़ना।
तरीका: संसदीय लोकतंत्र + जन संघर्ष (सिर्फ हथियारबंद क्रांति नहीं)।
चुनावी प्रदर्शन
2004 – तीसरी सबसे बड़ी पार्टी, यूपीए-1 को बाहर से समर्थन।
2008 – परमाणु समझौते पर समर्थन वापसी।
2014 और 2019 – कमजोर प्रदर्शन।
भारत में वामपंथ का मौजूदा हालात
केरल – CPI(M) आज भी केरल में एक मजबूत शक्ति है और वहां की सरकार चला रही है।
पश्चिम बंगाल व त्रिपुरा –पार्टी का आधार काफी कमजोर हो गया है।
राष्ट्रीय राजनीति – CPI(M) का असर घटा है, लेकिन मजदूर–किसान आंदोलनों और जनसंघर्षों में इसकी भूमिका बनी हुई है।
CMARG (Citizen Media And Real Ground) is a research-driven media platform that focuses on real issues, timely debates, and citizen-centric narratives. Our stories come from the ground, not from the studio — that’s why we believe: “Where the Ground Speaks, Not the Studios.” We cover a wide range of topics including environment, governance, education, economy, and spirituality, always with a public-first perspective. CMARG also encourages young minds to research, write, and explore bold new ideas in journalism.
