जनेऊ से शंख तक: उत्तर प्रदेश के बांदा नगर के वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. शरद चतुर्वेदी ने अपनी गहन शोध यात्रा का परिणाम एक महत्वपूर्ण पुस्तक के रूप में प्रस्तुत किया है। इस पुस्तक का नाम है — “सनातन संस्कृति एवं अध्यात्म में वैज्ञानिक अनुसंधान”। जैसा कि शीर्षक से ही स्पष्ट होता है, यह पुस्तक किसी धार्मिक भावना को बढ़ावा देने के लिए नहीं लिखी गई है, बल्कि इसमें प्राचीन सनातन संस्कृति और अध्यात्म में छिपे वैज्ञानिक तथ्यों की खोज की गई है। यह पुस्तक डॉ. चतुर्वेदी के अपने शोध पत्रों, प्रकाशित और अप्रकाशित लेखों तथा कई ग्रंथों से लिए गए निष्कर्षों का संकलन है। इस लेख में इसका पूरी समीक्षा (Book Review) की गई है।
इस पुस्तक में विज्ञान, गणित, चिकित्सा, अंतरिक्ष, जल विज्ञान और सांस्कृतिक विषयों पर ऋषियों के शोध और अन्वेषणों को प्रस्तुत किया गया है। यह पुस्तक उन वैज्ञानिक तथ्यों को उजागर करती है जो समय के साथ छिप गए थे और लोगों के बीच गलतफहमियों के कारण उपेक्षित हो गए। यह पुस्तक युवाओं को विशेष रूप से समर्पित है और इसे पढ़ना रोचक भी है और संग्रहणीय भी।
जनेऊ से शंख तक: यज्ञोपवीत धारण करने और स्वास्थ्य के बीच संबंध
डॉ. चतुर्वेदी ने अपनी पुस्तक के पहले अध्याय में ‘यज्ञोपवीत’ यानी जनेऊ पर लिखा है। उन्होंने विभिन्न ग्रंथों के माध्यम से यह साबित करने की कोशिश की है कि यज्ञोपवीत धारण करना न केवल एक धार्मिक परंपरा है बल्कि इसके पीछे वैज्ञानिक कारण भी हैं। उनका कहना है कि यज्ञोपवीत एक ऐसा साधन है जो शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाए रखता है। आयुर्वेद, एक्यूप्रेशर और एलोपैथी जैसी चिकित्सा पद्धतियों से इसके लाभ की पुष्टि होती है। यह उपकरण बाहर से शरीर पर धारण किया जाता है, इसके लिए किसी दवा की जरूरत नहीं होती और इसका कोई नुकसान भी नहीं है।
जनेऊ से शंख तक: आज की तनावभरी जिंदगी में बेहद सुकून देती है यह पुस्तक
डॉ. चतुर्वेदी कहते हैं कि आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में मानसिक तनाव, रक्तचाप और हृदय रोग तेजी से बढ़ रहे हैं। ऐसे में जनेऊ जैसा सरल और सस्ता उपाय अत्यंत उपयोगी हो सकता है। उनका मानना है कि आधुनिकता की होड़ में हम अपनी परंपराओं को भूलते जा रहे हैं, जबकि हमारे पूर्वजों ने इन्हें बहुत सोच-समझकर बनाया था। वह इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि मानसिक तनाव और उच्च रक्तचाप से बचने के लिए यज्ञोपवीत जैसा उपाय सर्वोत्तम और सुरक्षित है।
जनेऊ से शंख तक: डॉ. चतुर्वेदी ने शंख का वैज्ञानिक महत्व बताया है
दूसरे अध्याय में डॉ. चतुर्वेदी ने शंख पर प्रकाश डाला है। शंख को आमतौर पर धार्मिक प्रतीक के रूप में जाना जाता है, लेकिन उनका कहना है कि शंख का वैज्ञानिक महत्व भी है। आयुर्वेद में शंख भस्म और शंख द्रव का उपयोग उदर रोगों में होता है। इसमें कैल्शियम, फास्फोरस और गंधक जैसे खनिज पाए जाते हैं जो हड्डियों और त्वचा के लिए लाभकारी हैं। शंख की ध्वनि मस्तिष्क की नसों को सक्रिय करती है, जिससे स्मरण शक्ति तेज होती है। साथ ही शंख बजाने से फेफड़े मजबूत होते हैं और शरीर में वायु के प्रवाह की क्षमता बढ़ती है।
जनेऊ से शंख तक: संजीवनी से जीवन दान कैसे मिलता है, इसे भी जानिए
संजीवनी विद्या अध्याय में डॉ. चतुर्वेदी बताते हैं कि संजीवनी केवल कोई जड़ी-बूटी नहीं है, बल्कि यह एक संपूर्ण विद्या है जिसमें चार प्रमुख अंग हैं — मृत संजीवनी, विशल्य करणी, सवर्ण करणी और संधान करणी। यह चारों अंग शरीर की मूर्छा, घाव, टूटी हड्डियों और ऊर्जा की पुनः स्थापना से संबंधित हैं। दुर्गा सप्तशती में इस विद्या का उल्लेख मिलता है, और तंत्र शास्त्र के अनुसार इसे विधिपूर्वक सिद्ध करने से मृत जैसे रोगी को भी जीवनदान मिल सकता है।
“जल है जीवन का आधार” शीर्षक के अंतर्गत डॉ. चतुर्वेदी ने जल के महत्व पर विस्तार से लिखा है। उन्होंने धार्मिक, पौराणिक, सामाजिक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से जल का विश्लेषण किया है। उन्होंने जल विज्ञान, जल चक्र, जल प्रदूषण और उसके कारण, जल प्रदूषण से होने वाले दुष्प्रभाव और जल संरक्षण के उपायों पर भी चर्चा की है। इसी क्रम में उन्होंने बांदा के जखनी गांव और उमाशंकर पांडे का उल्लेख किया है, जिन्होंने “खेत में मेड़ और मेड़ पर पेड़” योजना से गांव को जल संरक्षण का आदर्श बना दिया। उमाशंकर पांडे को पद्मश्री से भी सम्मानित किया गया।
जनेऊ से शंख तक: भारत को नक्षत्रों और राशियों का ज्ञान सबसे पहले था
काल गणना अध्याय में डॉ. चतुर्वेदी ने बताया है कि भारत को नक्षत्रों और राशियों का ज्ञान सबसे पहले था। उन्होंने विश्व के लगभग 20 विद्वानों के मत का अध्ययन कर यह निष्कर्ष निकाला कि भारतीय गणित और ज्योतिष की परंपरा अत्यंत वैज्ञानिक और त्रुटिहीन रही है। भारतीय खगोलशास्त्रियों ने बहुत पहले ही समय की गणना के ऐसे सूत्र खोज लिए थे जो आज भी प्रासंगिक हैं।
जनेऊ से शंख तक: वेदांत, यहूदी, ईसाई, इस्लाम, जैन और बौद्ध धर्मों पर भी प्रकाश डाला
“सृष्टि की उत्पत्ति और लय” शीर्षक में डॉ. चतुर्वेदी ने ऋग्वेद, भागवत, वेदांत, यहूदी, ईसाई, इस्लाम, जैन और बौद्ध धर्मों की मान्यताओं के साथ-साथ वैज्ञानिक सिद्धांतों का तुलनात्मक अध्ययन किया है। उन्होंने बिग बैंग सिद्धांत को भी विस्तार से समझाया है, जिसे सबसे अधिक वैज्ञानिक समर्थन मिला है। इसके अनुसार, ब्रह्मांड का आरंभ एक अत्यंत सघन बिंदु से हुआ, जो फिर फैलना शुरू हुआ और ब्रह्मांड का निर्माण हुआ।
जनेऊ से शंख तक: एडविन हबल, स्टीफन हॉकिंग, फ्रेड हॉयल, आइंस्टीन, अलेक्जेंडर फ्रेडमैन
डॉ. चतुर्वेदी ने एडविन हबल, स्टीफन हॉकिंग, फ्रेड हॉयल, अल्बर्ट आइंस्टीन, अलेक्जेंडर फ्रेडमैन जैसे वैज्ञानिकों के मत भी पुस्तक में सम्मिलित किए हैं। उन्होंने यह भी बताया कि बिग बैंग केवल ब्रह्मांड के विकास की प्रक्रिया को समझाता है, न कि इसकी उत्पत्ति के कारण को। सृष्टि के अंत की संभावनाओं पर भी पुस्तक में चर्चा की गई है। वैज्ञानिकों के अनुसार या तो सूर्य बहुत गर्म हो जाएगा और पृथ्वी पर जीवन समाप्त हो जाएगा, या फिर ब्रह्मांड एक भयंकर विस्फोट में खत्म होगा, या अत्यधिक ठंड के कारण सब कुछ जम जाएगा। ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण जल प्रलय की आशंका भी जताई गई है।
रामचरितमानस पर डॉ. चतुर्वेदी का विश्लेषण बताता है कि गोस्वामी तुलसीदास ने शैव, वैष्णव और शाक्त परंपराओं को जोड़कर समाज में समरसता स्थापित की थी। उन्होंने दो अलग-अलग मुद्रण की मानस प्रतियों में पाठांतर का विश्लेषण भी प्रस्तुत किया है। डॉ. चतुर्वेदी का मानना है कि तुलसीदास ने अपनी लेखनी से समाज को संगठित किया, न कि विभाजित।
“ऋषि परंपरा और वैज्ञानिक अन्वेषण” खंड में उन्होंने प्राचीन भारत के ऋषियों की वैज्ञानिक उपलब्धियों पर प्रकाश डाला है। उन्होंने बताया कि गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत की जानकारी भास्कराचार्य ने दी थी और उनके ग्रंथ “सिद्धांत शिरोमणि”, “लघु भास्करीय” और “महाभास्करीय” इसका प्रमाण हैं। अन्य ऋषियों में महर्षि विश्वामित्र, अगस्त्य, भारद्वाज, अश्विनी कुमार, कणाद, बौधायन, पतंजलि, वाराहमिहिर, सुश्रुत और चरक के वैज्ञानिक योगदानों को भी पुस्तक में दर्शाया गया है।
पुस्तक में वैदिक ग्रंथों के अध्ययन के छह खंड हैं, जिनमें रोगों और उनके उपचार के वर्णन हैं। “भारतीय ज्ञान एवं दर्शन” खंड में स्वास्तिक, मानव धर्म, वैमानिक कला, आर्यों के मूल निवास, स्वर्ग की अवधारणा और ‘हिंदू’ शब्द की उत्पत्ति जैसे विषयों पर भी वैज्ञानिक सोच के साथ चर्चा की गई है।
बांदा गौरव खंड में डॉ. चतुर्वेदी ने बताया है कि चारों युगों में बांदा नगर ने अद्भुत साहित्य और वैज्ञानिक कृतित्व प्रदान किए हैं। उन्होंने वैदिक युग के वामदेव, त्रेता युग के वाल्मीकि, द्वापर युग के वेदव्यास और कलियुग के तुलसीदास का उल्लेख किया है। चित्रकूट और कालिंजर जैसे स्थानों का ऐतिहासिक और आध्यात्मिक महत्व भी वर्णित किया गया है। रानी दुर्गावती की वीरता को भी उन्होंने रेखांकित किया है।
जनेऊ से शंख तक: सांस्कृतिक धरोहर पर मुगलों और ब्रिटिश शासकों का रवैया
अपने आत्मकथ्य में डॉ. शरद चतुर्वेदी ने यह दर्द साझा किया है कि मुगल और ब्रिटिश शासकों ने हमारी सांस्कृतिक धरोहर को क्षतिग्रस्त किया, जिससे हम अपने ऋषि वैज्ञानिकों को जान ही नहीं पाए। वह कहते हैं कि स्वतंत्रता के 76 वर्षों बाद भी हमारे पाठ्यक्रमों में उनके नाम शामिल नहीं किए गए हैं। उन्होंने अपने उपनाम ‘चतुर्वेदी’ को सार्थक बनाने के लिए चारों वेदों का वर्षों तक अध्ययन किया और अपने निजी पुस्तकालय में दुर्लभ ग्रंथों का संकलन किया है।
जनेऊ से शंख तक: यह पुस्तक 50 वर्षों की कठिन साधना के बाद लिखी गई है
करीब 80 वर्ष की उम्र में डॉ. शरद चतुर्वेदी ने लगभग 50 वर्षों तक हिंदी, संस्कृत और अंग्रेजी में सैकड़ों ग्रंथों का अध्ययन करके यह शोध कार्य किया है। यह पुस्तक कनाडा से प्रकाशित हुई है और भारत में इसका वितरण वाराणसी स्थित ‘पुस्तक भारती’ कर रही है। पुस्तक की कीमत ₹735 है और यह 220 पृष्ठों की है। डॉ. शरद चतुर्वेदी का यह प्रयास निश्चित रूप से अद्वितीय, शोधपरक और ज्ञानवर्धक है। यह पुस्तक उन सभी लोगों के लिए उपयोगी है जो विज्ञान और अध्यात्म के मेल को समझना चाहते हैं। आपको इस Book Review को पूरी तरह से पढ़ने के बाद आपको समझ में आ गया होगा कि यह पुस्तक कितनी आवश्यक है और पढ़ने योग्य है।
यह महत्वपूर्ण पुस्तक कनाडा से प्रकाशित हुई है। भारत में इसका वितरण “पुस्तक भारती”, 168 नेहियान, वाराणसी द्वारा किया जा रहा है।
मूल्य: 735 रुपये (हार्ड बाउंड, 220 पृष्ठ)
लेखक संपर्क: डॉ. शरद चतुर्वेदी — +91 9838980117
वितरक संपर्क: पुस्तक भारती — +91 7355682455
समीक्षा प्रस्तुति: डॉ. गोपाल गोयल
मुक्तिचक्र, बांदा
Book Review: Book Review: Book Review:
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