शाम को सुजीत समय से घर आ गया। चाय पीने के बाद वे लोग बाज़ार जाने लगे, चिंकू अपनी दादी (शीतल जी को) बड़े प्यार से बाय बोला। शीतल जी ने भी बड़े प्यार से बेटे बहू से कहा, चिंकू की पसंद का दिलाना सब और हां!! आते वक्त आइसक्रीम भी खिलाकर लाना।
2-3 घण्टे बाद सब लौटे तो सबके हाथ थैलों से लदे हुए थे। चिंकू ने बड़े उत्साह के साथ अपनी दादी को सब समान दिखाया। सुजीत मां से बोला, देखो मां सपना को, पिछले हफ्ते चप्पल ली थी, अभी फिर से ले आई। और ये आपकी लाडली बेटी (शीतल जी की छोटी बेटी) फिर एक ड्रेस ले आई। कोई और कुछ बोलता, इस से पहले शीतल जी बोली, सपना को तो पहले ही दो जोड़ी लेनी थी, लेकिन तब पसंद नही आई, तो आज ले ली। अब वो बाहर आती जाती है, तो उसे चार जोड़ी चप्पल चाहिए ही।
और कुसुम (शीतल जी की बेटी) कॉलेज जाती है, उसे भी ड्रेस चाहिए ही होती है। सपना भी सुजीत पर पलटवार करते बोली-आपने भी तो शर्ट ली है, वो नहीं बताया। अरे!, वो तो अच्छे डिस्काउंट में मिल रही थी, इसलिए।।। आज का शॉपिंग अध्याय यही खत्म हुआ।।सबके लिए सब आया, लेकिन शीतल जी के लिए कुछ नहीं। इसलिए नही की कोई उनकी परवाह नहीं करता, बल्कि इसलिए कि उनके पास कभी किसी चीज़ की कमी होती ही नहीं।
शीतल जी के बहन के बेटे का विवाह तय हो गया। दो महीने बाद विवाह था। सपना, सुजीत, कुसुम सब क्या पहनेंगे, क्या लेंगे की लिस्ट बनाने लगे। अब शादी की हिसाब की चप्पल जूते नहीं हैं। सपना भी बोली-मेरी सब साड़ियां मैंने कई बार पहन रखी है, तो मैं दो साड़ी लूंगी। कुसुम के तो ख़्वाब ही निराले थे। लेकिन सीतल जी की लिस्ट में अभी भी कुछ नहीं था।
सुजीत बोला, मां, इन की लिस्ट तो कभी खत्म ही नहीं होती। अबकी बार आपको दो नई साड़ी लेनी ही पड़ेगी। अरे, सुजीत, मेरे पास बहुत साड़ियां है। और एक तो ठंड की शादी, ऊपर से तो स्वेटर ही पहनना है। और फिर काम में कहां भारी साड़ी संभालती है। तुम लोगों के लिए ले आओ, जो भी तुम्हें चाहिए।
सोते वक्त सुजीत शून्य में विचार कर रहा था। सपना कमरे में आई तो पूछा-क्या हुआ?? कहा खोये हो?
सपना, तुम्हें याद है, आखिरी बार मम्मी ने साड़ी कब खरीदी थी। अअअअअअअ, हां, जब पिछले साल राखी पर सेल लगी थी, तब मम्मी जी ने दो साड़ी ली थी, सिंपल वाली। एक साल!!! सुजाता, पूरा एक साल।।। और इस एक साल में हमने ना जाने कितने कपड़े, जूते खरीदे फिर भी हमारे पास कमी है। सोच रहा हूं, मां के पास ऐसा कौन सा जादू है कि उनकी साड़ी कभी पुरानी नहीं होती।
हालांकि वो सभी रिश्तेदारों के सब आयोजनों में शामिल होती हैं। सभी कार्यक्रमों में अपनी उपस्थिति दर्ज करती हैं, फिर भी उन्हें ना साड़ी चाहिए ना चप्पल जूते। मैंने बचपन से ही मां को कभी अपने लिए अलग से शॉपिंग करते नहीं देखा। कभी नानी साड़ी दे देती है, कभी कहीं से आ जाती है।। बस हमेशा हमारे लिए खरीददारी करती हैं।
सुजाता और सपना ने अगले दिन मां को बाजार ले जाने का प्लान बनाया। बच्चों के जिद्द करने से सीतलजी ने दो साड़ी ले ही ली। लेकिन फिर भी उनकी अलमारी पहले से ही भरी थी।
नेहा सूरज बिन्नानी “शिल्पी”
कांदिवली पूर्व, मुम्बई
9619050255