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Inferiority Bias: खुद पर शक और डर की दीवार के पीछे छिपा असली सच

Inferiority Bias:

Inferiority Bias: असुरक्षा का भाव अक्सर चुपचाप मन की किसी तह में जन्म लेता है, लेकिन असर में इतना तेज होता है कि इंसान का पूरा व्यवहार बदल देता है। कुछ लोग बाहर से जितने मजबूत, आत्मविश्वासी और साहसी दिखाई देते हैं, भीतर उतनी ही गहरी आशंकाओं और डर की दीवारों में कैद होते हैं।

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यही असुरक्षा उन्हें ऐसे रास्तों पर धकेल देती है, जहां वे खुद को बड़ा दिखाने के लिए दूसरों को छोटा साबित करने लगते हैं। वे निर्दोष लोगों पर उंगली उठाते हैं, उनकी छवि खराब करते हैं और एक झूठी श्रेष्ठता गढ़ने की कोशिश करते हैं -क्योंकि अपने भीतर की कमजोरी को स्वीकार करना उनके लिए सबसे बड़ा डर होता है।

Inferiority Bias: लोग बिना समझें बना लेते हैं धारणा

समस्या यह भी है कि समाज अक्सर ऐसे लोगों के लिए आसान रास्ता तैयार कर देता है। लोग किसी की बुराई सुनने में रुचि लेते हैं, और बिना सोचे-समझे किसी के खिलाफ धारणा बना लेते हैं। यही सामाजिक समर्थन किसी असुरक्षित व्यक्ति के लिए हथियार बन जाता है, जिससे वह किसी सक्षम इंसान को भी तुच्छ साबित कर अपनी हीनता को ढंकने की कोशिश करता है।

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Inferiority Bias: बचपन में लगातार आलोचना कमी की बड़ी वजह 

पर असल वजहें कहीं गहरे छिपी होती हैं – जैसे बचपन में आत्मविश्वास न मिलना, लगातार आलोचना, या वह माहौल जिसमें क्षमताओं का सम्मान न सिखाया गया हो। जिन लोगों का आत्मविश्वास मजबूत नींव पर खड़ा होता है, वे दूसरों की खूबियों में भी रोशनी देखते हैं। वे न किसी को कमतर बताते हैं, न ही नाहक नुकसान पहुंचाने की प्रवृत्ति रखते हैं।

लेकिन जिनके भीतर असुरक्षा जड़ पकड़ लेती है, उनमें नकारात्मकता, जलन, उदासी और आत्म-घृणा जैसे भाव हावी हो जाते हैं। वे अपने अधूरेपन को छिपाने के लिए दूसरों की छवि खराब करने, उन्हें कमजोर साबित करने और अपमानित करने की कोशिश करते हैं। ऐसे लोग धीरे-धीरे अपनी बची-खुची योग्यता भी खोते जाते हैं और खुद के लिए ही नुकसान का कारण बनते हैं।

हम अपने आसपास ऐसे कई उदाहरण देखते हैं, जहां कोई व्यक्ति निर्दोष इंसान को निशाना बनाकर उसके खिलाफ झूठी धारणाएं बनाता है – पर सच्चाई यह है कि ऐसा करके वह अपनी ही कमतरी को उजागर कर रहा होता है। दुनिया में कोई भी सर्वश्रेष्ठ नहीं है। सीखने, समझने और सुधारने की गुंजाइश हमेशा बनी रहती है।

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किसी की वास्तविक कमजोरी बताना उसकी मदद हो सकती है, लेकिन पूर्वाग्रह से, नुकसान पहुंचाने की नीयत से या श्रेष्ठता साबित करने के उद्देश्य से ऐसा करना अपने व्यक्तित्व को चोट पहुंचाना है। विवेकवान मनुष्य वही है जो अपनी योग्यता का सम्मान करे, दूसरों की क्षमताओं को स्वीकार करे और अपनी कमियों को सुधारने का साहस रखे, न कि हीनताबोध के डर से दूसरों को गिराने की कोशिश करे।

दुनिया भर में हुए कई सर्वे बताते हैं कि असुरक्षा भाव या खुद को कमतर महसूस करना आज एक बहुत आम समस्या बन गई है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) और अन्य अंतरराष्ट्रीय रिपोर्टों के अनुसार, दुनिया के करीब 35–40% लोग कभी न कभी यह महसूस करते हैं कि वे दूसरों जितने अच्छे नहीं हैं या उनसे कोई गलती हो जाएगी।

Gallup के एक ग्लोबल सर्वे में पाया गया कि पिछले कुछ सालों में नौकरी की चिंता, कमाई का दबाव और सोशल मीडिया पर तुलना की वजह से लोगों में असुरक्षा भाव लगभग 25% बढ़ गया है। कई लम्बे शोध यह भी बताते हैं कि जब व्यक्ति खुद पर भरोसा कम महसूस करता है, तो उसमें चिंता, अकेलापन और डर जैसे भाव बढ़ जाते हैं।

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कुल मिलाकर, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर माना जाता है कि असुरक्षा भाव अब सिर्फ एक व्यक्तिगत समस्या नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में बढ़ती मानसिक परेशानी बन चुका है। इससे निजात बहुत जरूरी है।

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