National Legal Day: राष्ट्रीय विधिक सेवा दिवस के अवसर पर ब्रिटिश लिंगुआ में आयोजित सेमिनार “एक्सेस टू जस्टिस फॉर ऑल: लीगल लिटरेसी एंड कम्युनिकेशन स्किल्स फॉर टुडे’स यूथ” में वक्ताओं ने युवाओं में कानूनी साक्षरता और संवाद कौशल को लोकतंत्र की नींव बताया। इस कार्यक्रम का आयोजन ब्रिटिश लिंगुआ और मिथिलालोक फाउंडेशन ने संयुक्त रूप से किया।
मुख्य वक्ता के रूप में संबोधित करते हुए प्रख्यात लेखक, बाल-सुरक्षा कार्यकर्ता और प्रद्युम्न फाउंडेशन के अध्यक्ष डॉ. बीरबल झा ने कहा कि न्याय केवल कानून की जानकारी से नहीं, बल्कि आचरण में निष्पक्षता और संवाद में संवेदनशीलता से स्थापित होता है। उन्होंने कहा, “जब बराबरी हमारी भाषा बनती है, तभी न्याय जीवंत होता है।”
डॉ. झा ने युवाओं में कानूनी जागरूकता की कमी को लोकतंत्र के लिए गंभीर चुनौती बताते हुए कहा कि न्याय तक पहुंच का पहला कदम ज्ञान से शुरू होता है। उनके शब्दों में, “कानूनी साक्षरता युवा पीढ़ी को स्पष्ट सोच, साहस और गरिमा के साथ आगे बढ़ने की शक्ति देती है।”
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उन्होंने कहा कि अधिकारों की भाषा को समझना युवाओं में आत्मसम्मान और आत्मविश्वास दोनों को मजबूत करता है। “कानूनी साक्षरता न्याय की ओर पहला कदम है, और जहां संवाद कौशल मजबूत होता है, वहीं न्याय की नींव भी सुदृढ़ होती है,” उन्होंने जोड़ा।
डॉ. झा ने चेतावनी दी कि अधिकारों की अनभिज्ञता लोकतंत्र की जड़ों को कमजोर करती है। उन्होंने कहा, “जागरूक युवा ही लोकतंत्र को सशक्त बनाते हैं। कानूनी साक्षरता यह सुनिश्चित करती है कि कोई भी आवाज़ अनसुनी न रह जाए।”
कानूनी ज्ञान को उन्होंने “सशक्त नागरिकता की प्राणवायु” बताते हुए कहा कि हर युवा को प्रभावी संवाद सीखना चाहिए, क्योंकि “कानून को जानने और अपना हक मांगने के बीच पुल संवाद ही है।”
युवाओं से सामाजिक जिम्मेदारी और भागीदारी की अपील करते हुए डॉ. झा ने कहा, “न्याय के लिए प्रतिबद्ध समाज वही है, जहां युवा कानून को समझते हैं और परिवर्तन की प्रक्रिया में सक्रिय भूमिका निभाते हैं।”
उन्होंने कहा कि कानूनी साक्षरता युवाओं के हाथों में ऐसी मशाल है, जो न केवल उनका रास्ता रोशन करती है, बल्कि समाज के अन्य लोगों के लिए भी दिशा दिखाती है।
सेमिनार के समापन में डॉ. झा ने कहा, “यदि हमें समानता पर आधारित भारत बनाना है, तो कानूनी रूप से साक्षर और संवाद-कुशल युवाओं की पीढ़ी तैयार करनी होगी। युवाओं को सशक्त कीजिए — न्याय अपने आप मजबूत हो जाएगा।”
कार्यक्रम में बड़ी संख्या में छात्र, शिक्षक और सामाजिक कार्यकर्ता शामिल हुए। सभी ने इस बात पर सहमति जताई कि संविधान, अधिकारों और संवाद कौशल की समझ आज के युवाओं की सबसे बड़ी जरूरत है।
National Legal Day: क्यों मनाते हैं राष्ट्रीय विधिक सेवा दिवस?
हर वर्ष 9 नवंबर को राष्ट्रीय विधिक सेवा दिवस मनाया जाता है, जिसका उद्देश्य समाज के हर वर्ग तक न्याय की समान पहुंच सुनिश्चित करना है। यह दिवस विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 की याद में मनाया जाता है, जो 9 नवंबर 1995 को पूरे देश में लागू हुआ था। इस अधिनियम का मूल उद्देश्य था— आर्थिक रूप से कमजोर, वंचित और पिछड़े वर्गों को मुफ्त कानूनी सहायता (Free Legal Aid) उपलब्ध कराना ताकि वे भी न्याय की प्रक्रिया में बराबरी से भाग ले सकें।
इस दिन देशभर में सेमिनार, कानूनी जागरूकता शिविर, निबंध प्रतियोगिता और लोक अदालतें आयोजित की जाती हैं। इन आयोजनों के माध्यम से लोगों को उनके संवैधानिक अधिकारों, कर्तव्यों और कानूनी साक्षरता के महत्व के बारे में बताया जाता है।
राष्ट्रीय विधिक सेवा दिवस हमें यह याद दिलाता है कि न्याय केवल अदालतों तक सीमित नहीं होना चाहिए, बल्कि यह समाज के हर व्यक्ति के जीवन में महसूस किया जाना चाहिए। जब तक हर नागरिक अपने अधिकारों और कानून की जानकारी से सशक्त नहीं होगा, तब तक लोकतंत्र की जड़ें मजबूत नहीं हो सकतीं। यही कारण है कि यह दिवस “न्याय सबके लिए” (Access to Justice for All) की भावना को साकार करने का प्रतीक है।
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