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Senior Citizens Safety in India: परिवार से समाज तक हर तरफ बुजुर्ग बेबस

Senior Citizens Safety in India: एक छोटी सी मदद किसी बुजुर्ग की पूरी दुनिया बदल सकती है।

Senior Citizens Safety in India: कहते हैं किसी भी देश की तरक्‍की का असली पैमाना यही है कि वहां बुजुर्ग कितनी इज़्ज़त और सुरक्षा के साथ जी रहे हैं। लेकिन अफसोस, भारत में हालात उलटे दिशा में जा रहे हैं। संसाधनों के बंटवारे से लेकर परिवार के व्यवहार तक, हर जगह बुजुर्ग खुद को किनारे खड़ा पाते हैं। समाज के बदलते मूल्य और टूटते रिश्ते उनकी जिंदगी को और कठिन बना रहे हैं।

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हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस सूर्यकांत ने भी चेताया था कि हम धीरे-धीरे उस पुरानी दुनिया को खो रहे हैं जिसने हमारे समाज को मानवीय बनाया था। आने वाले 20–25 साल में तो स्थिति और गंभीर होने वाली है—क्योंकि तब देश में हर पांच में से एक व्यक्ति बुजुर्गों की श्रेणी में होगा। ऐसे में अगर सुरक्षा और सम्मान नहीं मिला तो उनकी जिंदगी और भी मुश्किल हो जाएगी।

Senior Citizens Safety in India: तेजी से बढ़ती बुजुर्ग आबादी, लेकिन सुरक्षा कम होती जा रही

भारत जनसांख्यिकीय बदलाव के दौर से गुजर रहा है। अभी देश में लगभग 10 करोड़ बुजुर्ग हैं, लेकिन 2050 तक यह संख्या 34 करोड़ के करीब पहुंच जाएगी।

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इसके बावजूद हालात यह हैं कि:

  • घरों में ही उपेक्षा और हिंसा बढ़ रही है

  • आर्थिक अपराधों में बुजुर्ग सबसे आसान शिकार बनते जा रहे हैं

  • ऑनलाइन दुनिया उनके लिए नया खतरा बनकर उभरी है

जस्टिस सूर्यकांत ने साफ कहा—पीढ़ियों के बीच दूरी बढ़ रही है, और यह सामाजिक ताने-बाने के लिए बेहद खतरनाक है।

Senior Citizens Safety in India: डिजिटल दुनिया: सुविधा से ज्यादा खतरा

जैसे-जैसे ऑनलाइन सिस्टम बढ़ा, बुजुर्गों के लिए मुश्किलें भी बढ़ीं।
अनजान लिंक, फर्जी कॉल, ओटीपी के नाम पर ठगी… ऐसी घटनाएं रोज सामने आ रही हैं।

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जस्टिस सूर्यकांत का कहना है कि बुजुर्ग:

  • डिजिटल धोखाधड़ी

  • परिवार द्वारा छोड़े जाने

  • और अनगिनत मुकदमों में उलझे रहने

इन तीनों से जूझ रहे हैं।

कानून तो है, लेकिन लागू करने में समन्वय की कमी है। अगर पुलिस, विधिक सेवा प्राधिकरण और सामाजिक न्याय मंत्रालय मिलकर काम करें, तो बहुत सी परेशानियां मुकदमे बनने से पहले ही हल की जा सकती हैं।

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पुरानी दुनिया का टूटना: बदलाव जो डराता है

कभी भारत में बुजुर्ग घर के अभिभावक माने जाते थे। उनके अनुभव और आशीर्वाद से घर चलता था। आज तस्वीर बिल्कुल बदल चुकी है—

  • शहरीकरण ने संयुक्त परिवार को तोड़ दिया

  • नौकरियां युवाओं को घरों से दूर ले गईं

  • माता-पिता अकेलेपन में धकेले जाने लगे

सुप्रीम कोर्ट में हाल ही में एक मामला आया जिसमें एक बुजुर्ग विधवा 50 साल तक अपने अधिकारों के लिए लड़ती रहीं। कोर्ट ने उनकी संपत्ति वापस दिलाई, लेकिन यह तथ्य डराता है कि किसी बुजुर्ग को इतनी लंबी लड़ाई क्यों लड़नी पड़े?

वृद्धाश्रमों की सच्चाई: अकेली जिंदगी, भरा मन

आज कई वृद्धाश्रमों में डॉक्टर, इंजीनियर, प्रोफेसर जैसे पढ़े-लिखे बुजुर्ग मिल जाएंगे।
उनके बच्चे विदेश में हैं या उन्होंने इज्जत-सम्मान से ज्यादा करियर को चुना।
कई बुजुर्ग तो अपनी संपत्ति तक बच्चों को सौंप चुके थे, लेकिन बाद में वे उपेक्षा के शिकार हो गए।

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कानून मौजूद हैं—जैसे MWPSC Act—लेकिन बहुत से माता-पिता अपने बच्चों पर केस नहीं करना चाहते। यही भावनात्मक मजबूरी उन्हें और कमजोर कर देती है।

अपराधों का बढ़ता खतरा

एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार:

  • 2023 में बुजुर्गों के खिलाफ 27,886 अपराध दर्ज हुए

  • सबसे ज्यादा मामले साधारण चोट, चोरी और धोखाधड़ी के रहे

  • महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और तमिलनाडु शीर्ष पर

  • दिल्ली में अपराध दर सबसे अधिक

यह साफ है—आंकड़े भले थोड़े कम हुए हों, लेकिन खतरा बना हुआ है।

नई तकनीक में फंसी पुरानी पीढ़ी

नोएडा का दर्दनाक मामला इसका बड़ा उदाहरण है।

78 वर्षीय एक बुजुर्ग को साइबर अपराधियों ने 15 दिन तक डिजिटल कैद में रखा।
उन्हें पुलिस, ट्राई, सीबीआई अधिकारी बनकर डराया गया।
फर्जी वीडियो कॉल, फर्जी कोर्ट आदेश—सब कुछ रचा गया।
डर की वजह से उन्होंने 3.14 करोड़ रुपये एक खाते में ट्रांसफर कर दिए।

यह घटना बताती है कि ऑनलाइन दुनिया बुजुर्गों के लिए कितनी खतरनाक हो सकती है।

बुजुर्ग क्यों बनते हैं आसान निशाना?

विशेषज्ञ तीन वजहें बताते हैं:

  1. डिजिटल जानकारी की कमी

  2. अकेलापन और भावनात्मक कमजोरी

  3. हाथ में जमा पैसे या बचत

आजकल ठगी करने वाले बहुत चालाक होते हैं—
डीपफेक आवाज़, नकली वेबसाइट, सरकारी अफसर बनकर धमकाना…
बुजुर्ग इन नई चालों को पहचान ही नहीं पाते।

कौन-कौन से साइबर अपराध सबसे ज्यादा होते हैं?

  • डिजिटल गिरफ्तारी

  • निवेश ठगी

  • डीपफेक से ठगी

  • फर्जी पुलिस/सरकारी अधिकारी बनकर धमकाना

  • ओटीपी लेकर बैंक खाते खाली करना

इन सबमें दो चीजें काम करती हैं—डर और भरोसा

सुरक्षा के आसान उपाय

  • अनजान लिंक न खोलें

  • किसी भी कॉल/मैसेज पर तुरंत भरोसा न करें

  • ओटीपी कभी साझा न करें

  • डिजिटल भुगतान में किसी जानकार की मदद लें

  • अनचाही फाइलें डाउनलोड न करें

भविष्य की चिंता: बढ़ता भार, कम होती तैयारी

2036 तक भारत में बुजुर्गों की संख्या 23 करोड़ हो जाएगी।
यानि हर सातवां भारतीय बुजुर्ग होगा।

दक्षिण भारतीय राज्य, हिमाचल और पंजाब पहले ही बुजुर्ग राज्यों की सूची में हैं। भविष्य में यह संख्या और बढ़ेगी।

सरकार पेंशन, स्वास्थ्य और आवास जैसी योजनाएं चला रही है, लेकिन ज़मीन पर पहुंच कम लोगों तक है।

कहां चूक रहे हैं हम?

  • बुजुर्गों के लिए अस्पतालों में अलग व्यवस्था नहीं

  • वित्तीय सुरक्षा कम

  • अकेलापन बढ़ता जा रहा है

  • डिजिटल दुनिया से दूरी

  • परिवारों में संवाद खत्म हो रहा है

भारत लैसी (LASI) सर्वे बताता है—

  • 12% आबादी बुजुर्ग है

  • 58% बुजुर्ग महिलाएँ

  • इनमें से 54% विधवाएँ
    यह आँकड़े बताते हैं कि ज़रूरत सिर्फ कानून की नहीं है—देखभाल की है।

समाधान: नई पीढ़ी आगे आए, समाज बदले

कानून अपनी जगह है, पर बदलाव परिवार से शुरू होगा।
युवा अगर आगे आएँ, तो बहुत कुछ सुधर सकता है:

  • ऑनलाइन लेनदेन में मदद

  • अस्पताल जाने में साथ

  • सरकारी योजनाओं की जानकारी

  • सप्ताह में एक बार वृद्धाश्रम जाकर समय देना

एक छोटी सी मदद किसी बुजुर्ग की पूरी दुनिया बदल सकती है।

भारत की बढ़ती बुजुर्ग आबादी सिर्फ आंकड़ा नहीं, एक बड़ा सामाजिक संकेत है।
अगर हम अभी नहीं संभले तो आने वाली पीढ़ियां एक ऐसा समाज देखेंगी जहाँ बुजुर्ग बोझ समझे जाते हैं, सम्मान नहीं।

समाज, सरकार और परिवार—तीनों को मिलकर काम करना होगा, तभी बुजुर्गों को वह जीवन मिल सकेगा जिसके वे हकदार हैं:
इज़्ज़त, सुरक्षा और साथ।

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