Decreasing Ground Water Level in Cities: पानी का संकट दुनिया भर में गहराता जा रहा है। भारत भी इससे अछूता नहीं है। आधिकारिक रिपोर्ट के मुताबिक पृथ्वी पर कुल उपलब्ध पानी का 97.5 फीसदी हिस्सा समुद्री है, बाकी 2.5 फीसदी हिस्सा मीठा जल है, लेकिन इसका भी काफी मात्रा प्रदूषित है, जो पीने योग्य नहीं है। एक अनुमान के अनुसार कुल जल का केवल एक फीसदी हिस्सा ही पीने योग्य है, जो दुनिया की आबादी के लिहाज से बहुत कम है। ऐसे में जल संकट भयावह होता जा रहा है।
भारत सरकार का जल शक्ति मंत्रालय, जल प्रबंधन और संरक्षण (Water Management and Conservation), खास तौर पर वर्षा जल संरक्षण के लिए कदम उठा रहा है, और इस दिशा में कई तरह के प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन अब भी परिणाम अपेक्षा के अनुरूप नहीं है। जल शक्ति मंत्रालय को लोगों को पेयजल उपलब्ध कराने सहित पानी के दूसरे मुद्दों से निपटने की जिम्मेदारी दी गई है। इसके लिए विभाग ने कई महत्वाकांक्षी योजनाएं बनाई है, इसमें सबसे प्रमुख 2024 तक भारत के हर घर में पाइप से पानी के कनेक्शन (Piped Water Connection in Every House) उपलब्ध कराने की योजना है।
दो सौ से ज्यादा नदियां, फिर भी बड़ी आबादी बिना पानी के कर रही जीवनयापन
भारत के लिए यह मुद्दा इसलिए भी चिंताजनक है, क्योंकि चीन के बाद दुनिया में सबसे अधिक लोग भारत में ही रहते हैं। भौगोलिक स्थिति ऐसी है कि भारत तीन ओर से जल से घिरा होने और देश में कुल दो सौ से ज्यादा नदियों के होने के बावजूद एक बड़ी आबादी अब भी बिना पानी की है और बड़ी मशक्कत के बाद रोजाना उपयोग के लिए पानी की थोड़ी मात्रा की व्यवस्था कर पाती है। देश में पानी का दूसरा प्रमुख स्रोत भूजल (Ground Water) है। भूजल, वह जल होता है जो चट्टानों और मिट्टी से रिस जाता है और जमीन के नीचे जमा हो जाता है।
यह भी कम आश्चर्य की बात नहीं है कि भारत में नदियों, तालाबों और भूजल के माध्यम से पानी की उपलब्धता 2,300 अरब घनमीटर (2,300 Billion Cubic Meters) से ज्यादा है और यहां सालाना औसत वर्षा 100 सेमी से भी अधिक है, जिससे 4,000 अरब घनमीटर पानी मिलता है, वहां पानी का इतना अकाल है? इसकी वजह यह है कि बारिश के पानी में से 47 फीसदी हिस्सा यानी 1,869 अरब घन मीटर पानी नदियों में चला जाता है।
इसमें से 1,132 अरब घनमीटर पानी उपयोग में लाया जा सकता है, लेकिन हमारे यहां जल प्रबंधन (Water Management) की उचित व्यवस्था नहीं होने और लोगों में इसके प्रति जागरूकता के अभाव में काफी पानी बेकार बह जाता है। अगर हम इसे बचा सकते तो पानी का संकट (Water Crisis) काफी हद तक कम हो सकता है।
रेन वॉटर हॉर्वेस्टिंग डिवाइस लगवाने के लिए हाईकोर्ट के आदेश पर अमल नहीं
2016 में दिल्ली हाईकोर्ट ने एक केस की सुनवाई करते हुए महत्वपूर्ण फैसला सुनाया था। कोर्ट ने कहा था कि मकान हो या सोसाइटी, सभी के लिए बारिश के पानी का संचय करने वाला उपकरण (Rain Water Harvesting Device) लगवाना अनिवार्य होगा। ऐसा नहीं करने वालों से पानी की अधिक कीमत वसूली जाएगी। हाईकोर्ट का यह भी निर्देश था कि 500 वर्गमीटर या इससे अधिक बड़े प्लाटों पर बने मकानों में बारिश के पानी का संचय करने वाला उपकरण (Rain Water Harvesting Device) हर हाल में लगवाना अनिवार्य होगा। हालांकि अफसरों की हीलाहवाली में इस फैसले पर कितना अमल हुआ यह सबके सामने है।
पानी की कमी वाले दुनिया के टॉप-20 में भारत के चार शहर
इस बीच नेशनल इंस्टीट्यूशन फॉर ट्रांसफॉर्मिंग इंडिया आयोग (NITI- Aayog) के संयुक्त जल प्रबंधन सूचकांक (Combined Water Management Index-CWMI) के अनुसार देश के 21 शहर शून्य भूजल स्तर (Zero Level Ground Water) पर पहुंच रहे हैं। इसका मतलब है कि इन शहरों में पीने के लिए भी पानी नहीं होगा। इसमें मुख्य रूप से चेन्नई, दिल्ली, बंगलुरु और हैदराबाद शामिल है। अगर इसको नहीं रोका गया तो इन शहरों में रह रहे करीब साढ़े दस करोड़ लोगों को पीने के पानी का अकाल (Water Famine) झेलना होगा। यह एक बड़ी त्रासदी होगी। यह हालात सिर्फ भारत का नहीं है। पीने के पानी की कमी से दुनिया के 400 शहर जूझ रहे हैं। हालांकि इसमें से भी शीर्ष 20 में 4 शहर भारत के हैं। इनमें चेन्नई पहले, कोलकाता दूसरे, मुंबई 11वें और दिल्ली 15वें स्थान पर है।
दुनिया भर में सबसे ज्यादा भूजल का प्रयोग करने वाले दस देशों में आठ एशिया के हैं और दो देश उत्तरी अमेरिका के हैं। यानी धरती के 75 फीसदी भूजल का प्रयोग यही दस देश कर रहे हैं। इसमें भारत सबसे ऊपर है। भारत में खेती की सिंचाई (Farm Irrigation) के लिए 89 फीसदी भूजल का उपयोग किया जाता है।
जलापूर्ति और जल वितरण व्यवस्थित नहीं होना बड़ी वजह
भारत में जलापूर्ति और जल वितरण व्यवस्थित नहीं होने से क्षेत्रीय स्तर पर भी काफी असमानता (Inequity at the Regional Level)है। देश के अलग-अलग शहरों में प्रति व्यक्ति जल की आवश्यकता और उपलब्धता (Requirement and Availability of Water) भी अलग-अलग है। इसी तरह खपत के मामले में भी बड़ी असमानता (Disparity in Consumption) दिखती है। भारत सरकार ने शहरों में रहने वाले लोगों के लिए प्रति व्यक्ति प्रति दिन 135 लीटर पानी की जरूरत तय की है, जबकि ग्रामीण इलाकों के लिए यह सिर्फ 55 लीटर पानी प्रति व्यक्ति प्रति दिन है।
WHO ने कहा 25 लीटर पानी पर्याप्त, दिल्ली में 272 लीटर पानी की हो रही खपत
हालांकि विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) का अलग ही मानना है। डब्ल्यूएचओ के मुताबिक प्रति व्यक्ति प्रति दिन 25 लीटर पानी ही काफी है। इसके उलट दिल्ली में प्रति व्यक्ति प्रति दिन 272 लीटर पानी की खपत होती है। प्रति व्यक्ति प्रति दिन पानी की खपत के मामले में यह दुनिया में सबसे ज्यादा है। राजधानी दिल्ली में पानी की इतनी ज्यादा खपत के पीछे लोगों की अनियमित जीवन शैली (Irregular Lifestyle) प्रमुख वजह है।
वैज्ञानिकों व भूगर्भ विशेषज्ञों (Scientists and Geologists) का मानना है कि भूमि के रिचार्ज (Recharge of Land) न होने के कारण जमीन की नमी (Ground Moisture) खत्म हो रही। इससे सूखापन बढ़ता जा रहा है। भूगर्भीय हलचल और पानी में जैविक कूड़े (Geological Movement and Organic Litter in the Water)से निकलने वाली मीथेन व दूसरी गैसों (Methane and Other Gases) से भी जमीन की सतह में अचानक गर्मी बढ़ती जा रही है। इससे भी भूजल का स्तर दिन पर दिन काफी नीचे जा रहा है।
भारत में कृषि अब भी स्वरोजगार का एक बड़ा साधन है और एक बड़ी आबादी इसी पर निर्भर है। खेती में ट्यूबवेल से जमीन के नीचे के पानी को निकालकर सिंचाई के लिए उपयोग करने और शहरों में बन रही गगनचुंबी हाउसिंग सोसायटी में बड़े-बड़े मोटरों और सबमर्सिबल पंपों के उपयोग से भूजल स्तर लगातार नीचे जा रहा है। इससे भविष्य में न केवल पीने का पानी, बल्कि सिंचाई के लिए भी भूजल मिलना मुश्किल होने की आशंका बढ़ गई है।
खेतों में चावल, कपास, गेहूं, मक्का, गन्ना और चारे की पैदावार के लिए सबसे ज्यादा भूजल खर्च होता है, लेकिन जिस तरह भूजल स्तर नीचे जा रहा है, उससे इनके उत्पादन और पैदावार पर संकट साफ नजर आ रहा है। इसकी वजह से देश में खाद्यान्न संकट (Food Crisis) तो पैदा होगा ही, उद्योग भी खत्म होने लगेंगे। नतीजा यह होगा कि पलायन, बेरोजगारी और आपसी संघर्ष को बढ़ावा मिलेगा।
भूजल स्तर बढ़ाने के उपाय और उम्मीद
जाने-माने सर्वोदय नेता और सोशल एक्टिविस्ट तथा जल ग्राम जखनी के संस्थापक उमा शंकर पांडेय पिछले बीस वर्षों से जल संरक्षण और प्रबंधन के क्षेत्र में काम कर रहे हैं। उन्होंने बुंदेलखंड जैसे सूखाग्रस्त क्षेत्र में “खेत पर मेड़ मेड़ पर पेड़” की अनोखी तकनीकी से जल संरक्षण का एक बड़ा काम किया है। भारत सरकार के जलशक्ति मंत्रालय की ओर से वर्ष 2019 में उन्हें राष्ट्रीय जल पुरस्कार (NWA) के तहत तत्कालीन उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू की अध्यक्षता में भारत के जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने जलयोद्धा का पुरस्कार प्रदान किया था।
वे बताते हैं, “हमारे देश में भूजल स्तर इसलिए कम हो रहा है कि उसको रिचार्ज करने के लिए प्राकृतिक वर्षा के जल का हम संरक्षण और प्रबंधन (Conservation and Management of Natural Rainwater) नहीं कर रहे हैं। अगर बारिश की बूंदें जहां गिरें, उसको वहीं हम रहने दें तो वह धीरे-धीरे भूमि के नीचे पहुंच जाएगा। इससे भूजल स्तर रिचार्ज होता रहेगा, लेकिन देश में बारिश के पानी का बड़ा हिस्सा या तो नालों में चला जाता है या फिर इधर-उधर बहकर बर्बाद कर दिया जाता है। इससे भूजल स्तर रिचार्ज नहीं हो पाता है।”
जलयोद्धा उमा शंकर पांडेय ने जखनी मॉडल के बारे में बताया, “पहले बुंदेलखंड के हमारे जिले बांदा, चित्रकूट आदि में पानी की भारी कमी होने और पथरीली भूमि होने से जल संकट था। तब भारत सरकार मालगाड़ी से पीने का पानी भेजा करती थी। इसको देखकर खेतों में मेड़बंदी करके उस पर पेड़ों को रोपे और ‘खेतों पर मेड़, मेड़ों पर पेड़ (Bunds on the Fields, Trees on the Bunds)’ विधि से बारिश के पानी का संचय करना शुरू किया। पहले हमारे इस काम में कुछ लोग हमसे जुड़े, बाद में कुछ और लोगों ने हमारा साथ पकड़ा, कुछ दिनों में पूरा गांव और दूसरे गांवों के लोगों ने भी इसको अपनाया। आज स्थिति यह है कि केंद्रीय भूजल बोर्ड के मुताबिक सूखाग्रस्त क्षेत्र बांदा के जलस्तर में एक मीटर 38 सेमी का इजाफा हुआ है। जिस जलस्तर को बढ़ाने के लिए सरकारें अरबों रुपए खर्च कर रही हैं, उसे हम सब ग्रामवासियों ने बिना किसी सरकारी अनुदान के स्वयं ही कर लिया।”
सूखाग्रस्त बुंदेलखंड में खेतों से निकल रहा ‘सोना’
आज जखनी गांव के नेतृत्व में जब वर्षा जल की बूंदों को खेत में मेड़, मेड़ पर पेड़ की परंपरागत तकनीकी से रोककर गांव का जलस्तर बढ़ाया गया तो न केवल गांव में समृद्धि आई, बल्कि पूरा बांदा जिला ही उत्कर्ष की नई कहानी लिखने लगा। गांव के जलस्तर में वृद्धि होते ही खेतों में फसलें लहलहाईं, गांवों में हरियाली दिखी, पशुओं को पानी उपलब्ध हुआ तो दूध का उत्पादन बढ़ा, सब्जियां, दलहन, तिलहन और धान, गेहूं का उत्पादन बढ़ा। इससे जिले के गांवों में लोगों का जीवन स्तर सुधरा तो व्यापार बढ़ा और लोग बेरोजगार से रोजगार की ओर बढ़े।
केंद्रीय मंत्रियों की टीम और नीति आयोग के जल सलाहकार देखने पहुंचे…
इसकी जानकारी जब शासन स्तर तक पहुंची तो केंद्रीय और राज्य सरकारों के कई मंत्री, सांसद, विधायक इस काम को स्वयं देखने पहुंचे। नीति आयोग भारत सरकार के जल सलाहकार अविनाश मिश्र ने इस प्रयास में काफी मार्गदर्शन किया। उन्होंने कई वर्षों तक मेड़ के ऊपर कौन-कौन सी फसल लगाएं, कौन-कौन पेड़ लगाएं आदि की तकनीकी जानकारी दी। उनके मुताबिक “मेड़बंदी प्रयोग से बुंदेलखंड का भूजल स्तर ऊपर आया है, काफी सुधार हुआ है। मेड़बंदी वर्षा जल संरक्षण की बहुत पुरानी विधि है जो विलुप्त हो रही थी। इसको जखनी ग्रामवासियों ने जीवित कर मानव समाज के लिए एक नया रास्ता सुझाया है।”
पानी को लेकर रोचक तथ्य (Interesting facts about water)
- देश में नदियों, तालाबों और भूजल के माध्यम से पानी की उपलब्धता 2,300 अरब घनमीटर
- सालाना औसत वर्षा 100 सेमी से भी अधिक है, जिससे 4,000 अरब घनमीटर पानी मिलता है
- देश के चार बड़े शहर दुनिया के 400 सबसे कम पानी वाले शहरों में शामिल
- भूजल का सबसे अधिक खपत करने वाले देशों में भारत शीर्ष पर
- अकेले दिल्ली में 272 लीटर पानी की प्रति व्यक्ति प्रतिदिन खपत
- ‘खेतों पर मेड़, मेड़ों पर पेड़’ विधि से वर्षा जल बचाने की पुरानी विधि को मिला पुनर्जीवन
(साभार- जनसत्ता ऑनलाइन)
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