By Sanjay Dubey

Sanjay Dubey is Graduated from the University of Allahabad and Post Graduated from SHUATS in Mass Communication. He has served long in Print as well as Digital Media. He is a Researcher, Academician, and very passionate about Content and Features Writing on National, International, and Social Issues. Currently, he is working as a Digital Journalist in Jansatta.com (The Indian Express Group) at Noida in India. Sanjay is the Director of the Center for Media Analysis and Research Group (CMARG) and also a Convenor for the Apni Lekhan Mandali.
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मददगारों की साझेदारी, तब वे संकट में थे, अब हम

जब भारत में हालात सुधर रहे थे, तब हमने इसको और बेहतर करने की न सोचकर अतिआत्मविश्वास में लापरवाही करनी शुरू कर दी। दुष्परिणाम यह हुआ कि अब पानी सिर से ऊपर हो गया और डूबने के सिवाय कुछ नहीं बचा है।

दूर हुए खजूर, पुराण से कुरान तक में है खूबियों की चर्चा

यही एकमात्र पेड़ है, जिसकी पत्तियां कभी झड़ती नहीं हैं। हर ऋतु में एक ही रहती है। आयुर्वेद तथा वैद्यक शास्त्र में विभिन्न उपचार के लिए इसके फलों, पत्तों, जड़ को महत्वपूर्ण माना गया है।

कोविड लहर में डूबे बाजार, सहमे कारोबारी, डरी जनता

अंतरराष्ट्रीय बेंचमार्क ब्रेंट कच्चा तेल 0.57 प्रतिशत की बढ़त के साथ 63.31 रुपये प्रति डॉलर पर कारोबार कर रहा था। अंतरबैंक विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार में रुपये में लगातार छठे कारोबारी सत्र में गिरावट आई।

लोकतंत्र का भरोसा और राजनीतिक महत्वाकांक्षा

सभी दल एक-दूसरे पर जिस तरह गालियाें और अपशब्दों का प्रयोग कर रहे हैं और आचार संहिता का धड़ल्ले से उल्लंघन कर रहे, वह नई पीढ़ी को प्रजातंत्र की सर्वश्रेष्ठता स्वीकारने में हिचक का माहौल उपलब्ध कराने जैसा है।

धरती नापी, सागर छाना, चूम लिया आकाश, अब असहाय

इतिहास खुद को दोहराता है। शायद कोरोना का उद्भव इसीलिए हुआ कि हम अब फिर से पुराने और जंगली अरण्य काल में पहुंच जाएं। जहां न हथियारों का भय रहेगा और न ही पर्यावरण प्रदूषण का खतरा ही होगा।

निकल रहे अमेरिकी सैनिक, दूर हुई अफगानियों की शांति

राष्ट्रपति जो बाइडन ने कहा है, ‘‘सामरिक कारणों से सैनिकों को वापस बुलाना मुश्किल है। अगर हम छोड़कर जाते हैं तो हमें सुरक्षित और व्यवस्थित तरीके से ऐसा करना होगा।’’

धरोहर: जीवन की गाड़ी खींचने वाली बैलगाड़ी हुई दूर

बैलगाड़ी से ही मनुष्य ने एक कोने से दूसरे कोने तक की यात्राएं कीं। राजमहलों, किलों और भवनों को बनाने के लिए निर्माण सामग्री बैलगाड़ी से ही ले जाए गए। लेकिन विरासत के ये अनमोल धरोहर अब विलुप्त होने की कगार पर हैं।

स्वदेशी, स्वराज और स्वावलंबन का दस्तावेज चरखा

जिस हथियार से गांधी जी ने अंग्रेजों से लोहा लिया, देश को एक सूत्र में बांधा, देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत किया, जाति, धर्म का भेद मिटाया, आज वह संग्रहालयों में विरासत की वस्तु बन गया है।

सूखी तपती धरती को पानी से लबालब करने की जिद

खेतों पर मेड़ बना दिए और मेड़ों पर पेड़ लगा दिए। जब बारिश का मौसम आया तो पानी खेतों में ही रुक गया। कुछ ही दिनों में जो पानी बेकार बहकर सूख जाता था, वह अब तालाब और छोटी नदी का रूप ले लिया। 

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