‘पानी जीवन का आधार है’, ‘पानी जीवन धारा है’ और ‘पानी के बिना इंसानी दुनिया का अस्तित्व बेमानी है’ जैसे शब्द हम बचपन से सुन रहे हैं, लेकिन जो शब्द नहीं सुन रहे हैं वह यह कि पानी की बर्बादी हम ही कर रहे हैं, दूसरे ग्रह के लोग नहीं। कैसी विडंबना है कि धरती का सत्तर फीसदी हिस्सा पानी से लबालब है, तब भी दुनिया पानी के लिए तरस रही है। हमारे देश की राजधानी की हालत यह है कि दिल्ली और पड़ोसी हरियाणा में पानी के लिए संघर्ष की स्थिति शुरू हो गई है। दिल्ली का आरोप है कि हरियाणा उसके हिस्से का पानी रोक ले रहा है। कावेरी जल को लेकर कर्नाटक और तमिलनाडु में वर्षों से विवाद चल रहा है। इन सबके अलावा कहीं सूखे से लोग तबाह हैं तो कहीं बाढ़ ने सबको लील लिया।
माना जाता है कि धरती पर पानी की कुल मात्रा लगभग 13,100 लाख क्यूबिक किलोमीटर है। इस पानी की करीब 97 फीसदी हिस्सा समुद्र में खारे पानी के रूप में और 390 लाख क्यूबिक किलोमीटर यानी करीब तीन फीसदी हिस्सा साफ या स्वच्छ पानी के रूप में धरती पर अनेक रूपों में मौजूद है।
देश के भूजल भंडारों में संचित पानी की कुल मात्रा 396 लाख हेक्टेयर मीटर है। भूजल के भंडारों में एकत्रित होने वाला पानी और जमीन के रकबे के आंकड़ों के सह-संबंधों के आधार पर कहा जा सकता है कि भारत का औसत भूजल भंडार लगभग 11 सेंटीमीटर है। सतही और भूजल के औसत आंकड़ों का योग करने से भारत के इकाई क्षेत्र में औसतन हर साल लगभग 62 सेंटीमीटर पानी उपलब्ध है। ये आंकड़े सिद्ध करते हैं कि संसार के किसी भी देश की तुलना में भारत में सबसे ज्यादा पानी मौजूद है, लेकिन पानी की बर्बादी में भी हम दुनिया में आगे हैं।
भारतीय प्रायद्वीप की नदियों में साल भर में बहने वाले पानी की औसत गहराई 51 सेंटीमीटर है। भारत की नदियों में बहने वाला यह औसत बहाव पूरे यूरोप (0.26 मीटर), एशिया (0.17 मीटर), उत्तर अमेरिका (0.13 मीटर), दक्षिण अमेरिका (0.45 मीटर), अफ्रीका (0.20 मीटर) और आस्ट्रेलिया महाद्वीप (0.08 मीटर) की नदियों में साल भर में बहने वाले पानी के बहाव की औसत गहराई से अधिक है।
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इंसान ने जब से अपना समाज बनाया और सामाजिक प्राणी बनकर रहना शुरू किया, तभी से उसे हर तरफ प्राकृतिक संपदा से भरपूर दृश्य दिखा। प्रकृति ने उसे जंगल दिया, स्थल दिया, नदियां, तालाब, बाउली और समंदर दिया, ग्लेशियर, हिम रेखा, झील, रेगिस्तान, पर्वत-पहाड़ दिया, खनिज-लवण, पेड़-पौधों से भरपूर हरियाली दी, असंख्य प्रकार के जीव-जन्तुओं से भरा जीव जगत दिया, अनाज दिया, फल-फूल दिया, जाड़ा, गर्मी, वर्षा ऋतुएं, पर्व, परंपरा, उत्सव, और सबसे बड़ी बात कि जीवन की आवश्यकताओं की हर पूर्ति का साधन दिया, लेकिन जड़, जंगल, जमीन की संपन्नता के बाद भी हम प्रकृति को चुनौती देते हुए खुद की श्रेष्ठता को साबित करने लगे। ऐसा करते-करते दुनिया को बेहिसाब प्रदूषण से भरकर चौतरफा कंकरीट के जंगल जैसे शहर खड़े कर दिए तथा चांद और मंगल पर कदम रखने का दंभ भरने लगे। कुदरती हरियाली खत्म हो रही है। हालात यह है कि जीने के लिए ऑक्सीजन भी खरीदना शुरू कर दिए। पानी तो हम पहले से ही बोतल में खरीदने लगे हैं।
इन सबके बावजूद भारत के यूपी और एमपी के बीच बुंदेलखंड क्षेत्र में पानी को बचाने के लिए कुछ लोगों ने अनोखा प्रयास किया और आज हालात यह है कि बांदा और उसके आसपास के इलाके जहां सालभर गर्म पत्थर की तरह जमीन जलती रहती थी, वहां गांव-गांव नदियां बह रही हैं। वर्तमान में मध्य भारत का सूखाग्रस्त बुंदेलखंड ऐसा क्षेत्र है, जहां सूखे के दौरान सरकारों ने मालगाड़ी के जरिये पीने का पानी भिजवाया था। आज वह ऐसा स्थान बन गया है, जहां जल संसाधनों की प्रचुरता है, छोटी-बड़ी लगभग 35 नदियां हैं। इनमें पांच बड़ी और 30 प्रदेश स्तर की हैं। छोटे-बड़े लगभग 125 बांध हैं। 27000 तालाब विद्यमान हैं। 52000 कुएं, 300 नाले, 150 बावड़ियां और चंदेल, बुंदेल राजाओं द्वारा स्थापित लगभग 51 परंपरागत और प्राकृतिक जल संसाधन और अनुसंधान केंद्र हैं।
Sanjay Dubey is Graduated from the University of Allahabad and Post Graduated from SHUATS in Mass Communication. He has served long in Print as well as Digital Media. He is a Researcher, Academician, and very passionate about Content and Features Writing on National, International, and Social Issues. Currently, he is working as a Digital Journalist in Jansatta.com (The Indian Express Group) at Noida in India. Sanjay is the Director of the Center for Media Analysis and Research Group (CMARG) and also a Convenor for the Apni Lekhan Mandali.