देश में अमूमन मंत्री परिषद में फेरबदल करना एक सामान्य प्रक्रिया है। यह प्रधानमंत्री का विशेषाधिकार है वह किसे मंत्री बनाएं और किसे नहीं। यह काम सरकार बनने के बाद कई बार होता है। इसमें कुछ मंत्रियों के विभाग बदले जाते हैं तो कुछ को विभाग से हटाकर संगठन में जगह दी जाती है। कई बार ऐसा भी होता है कि विभाग से उनको वापस बुुला लिया जाता है, लेकिन उन्हें कहीं समायोजित नहीं किया जाता है। हर किसी का समायोजन संभव भी नहीं है, लेकिन इस बार जिस तरह मंत्री परिषद का शुद्धिकरण किया गया है, उससे शायद बचे रह गए मंत्रीगणों के दिलों की धड़कन भी कई बार थम सी गई होगी।
मंत्रियों में तेज तर्रार, मुखर और हर घटना के बाद संसद और संसद के बाहर प्रमुखता से अपनी बात रखने वाले संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय तथा क़ानून एवं न्याय मंत्रालय के पूर्व मुखिया रविशंकर प्रसाद को हटाए जाने की भनक किसी को भी नहीं थी। सत्ता के गलियारों में रोज दस्तक देने वाले तथा अंदर की हर हलचल से वाकिफ रहने वाले भी इस सूचना से हैरान रह गए। मीडिया में चर्चा है कि ट्विटर विवाद ने उनको ले डूबा। बताया जा रहा है कि माइक्रो ब्लॉगिंग साइट ट्विटर भारत में विचारधारा के बजाए अपने बिजनेस मॉडल को बचाने में लगा है। उस पर कथित रूप से भेदभाव का भी आरोप है। सबसे आपत्तिजनक यह है कि वह भारत सरकार के नियमों को मानने से बार-बार बचने की कोशिश कर रहा है। इतना ही नहीं उसने देश के उपराष्ट्रपति और स्वयं संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के मुखिया रविशंकर प्रसाद के ट्विटर एकाउंट को बंद कर दिया। इस मुद्दे पर माना जा रहा है रविशंकर प्रसाद को जिस ठसक और धाक भरे अंदाज और सख्ती के साथ इससे निपटना था, वह नहीं दिखा पाए। इससे यह संदेश गया कि ट्विटर पर किसी का वश नहीं है। इसके चलते उनकी कुर्बानी ली गई।
दूसरी तरफ उनकी जगह आए संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के नए मुखिया अश्विनी वैष्णव अपनी कुर्सी पर बैठते ही ट्विटर को सख्त लहजे में चेतावनी दी है कि कानून से बड़ा कुछ नहीं है। देश में रहना है और काम करना है तो देश के कानून को मानने होंगे। सोशल मीडिया को लेकर बनाए गए नए कानून पिछले 26 मई को प्रभावी हुए थे, लेकिन ट्विटर ने सोशल मीडिया दिशानिर्देशों का अनुपालन नहीं किया। भारत सरकार ने इस बारे में उसे बार-बार आगाह किया, लेकिन वह इसको नजरंदाज करता रहा। नए सूचना तकनीकी नियम में यह प्रावधान है कि 50 लाख से अधिक उपयोगकर्ता वाले सोशल मीडिया मंचों को अन्य जरूरतों के साथ-साथ तीन मुख्य अधिकारियों -मुख्य अनुपालन अधिकारी, नोडल अधिकारी और शिकायत निवारण अधिकारी की नियुक्त करने होंगे। इस पर भारत की सर्वोच्च न्यायालय ने भी चेतावनी जारी की है, लेकिन इसके बावजूद अगर ट्विटर खुद को इससे बड़ा मानने की हिमाकत करता है तो यह घोर आपत्तिजनक और भारत की संप्रभुता के खिलाफ है। उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई होनी चाहिए।
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बताया जा रहा है कि रविशंकर प्रसाद के इतना सख्त नहीं होने से भारत की अंतरराष्ट्रीय छवि प्रभावित हुई। यह भी महत्वपूर्ण बात है कि रविशंकर प्रसाद कानून और न्याय मंत्रालय के भी मुखिया थे। वह खुद वरिष्ठ अधिवक्ता रहे हैं और देश के उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालय में कई बड़े मुद्दों पर बहस करके, दलीलें पेश कर न्यायिक प्रक्रिया में अपनी धाक जमा चुके हैं। ऐसे प्रतिभावान, ऊर्जावान मंत्री माइक्रो ब्लॉगिंग साइट ट्विटर से कैसे नहीं निपट सका। उसे मजबूर क्यों नहीं कर सका कि वह नियमों के प्रभावी होने के दिन से ही माने। कंपनी इतनी मोहलत क्यों पा गई। अब इंतजार है उनके उत्तराधिकारी अश्विनी वैष्णव का विभाग संभालते ही दिखाए गए तेवर के प्रभावी होने का। उन्होंने साफ कहा है कि देश में रहना है तो देश के कानूनों काे मानना ही पड़ेगा। ट्विटर विवाद ने रविशंकर प्रसाद को कुर्सी से जरूर हटा दिया, लेकिन देश में उनके प्रशंसकों की संख्या कम नहीं है और वे हमेशा उनके लिए एक नायक की तरह रहेंगे।
Sanjay Dubey is Graduated from the University of Allahabad and Post Graduated from SHUATS in Mass Communication. He has served long in Print as well as Digital Media. He is a Researcher, Academician, and very passionate about Content and Features Writing on National, International, and Social Issues. Currently, he is working as a Digital Journalist in Jansatta.com (The Indian Express Group) at Noida in India. Sanjay is the Director of the Center for Media Analysis and Research Group (CMARG) and also a Convenor for the Apni Lekhan Mandali.