Rise of Zohraan Mamdani: अमेरिका के सबसे प्रभावशाली शहर न्यूयॉर्क ने इतिहास रच दिया है। भारतीय मूल के जोहरान ममदानी ने शहर के मेयर पद पर जीत हासिल कर न सिर्फ एक नया राजनीतिक अध्याय लिखा है, बल्कि भारतीय डायस्पोरा की वैश्विक उपस्थिति को भी एक नई परिभाषा दी है।
न्यूयॉर्क सिटी बोर्ड ऑफ इलेक्शंस के मुताबिक, लगभग 20 लाख मतदाताओं ने इस बार मतदान किया — यह 1969 के बाद का सबसे ऊंचा मतदान प्रतिशत है। ममदानी को 50 प्रतिशत से थोड़ा अधिक वोट मिले, जबकि कुओमो को 41 प्रतिशत और सिल्वा को 8 प्रतिशत मत हासिल हुए।
Rise of Zohraan Mamdani: नेहरू की गूंज के साथ एक नई सुबह
जीत के बाद बुधवार (5 नवंबर 2025) की रात जोहरान ममदानी ने अपने समर्थकों को संबोधित करते हुए कहा,
“इतिहास में ऐसे क्षण बहुत कम आते हैं जब हम पुराने से नए की ओर कदम बढ़ाते हैं।”
यह वाक्य सिर्फ एक राजनीतिक उद्घोषणा नहीं था — यह भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के 1947 के ऐतिहासिक “Tryst with Destiny” भाषण की प्रतिध्वनि थी। ममदानी ने नेहरू को याद करते हुए कहा कि यह परिवर्तन का क्षण सिर्फ एक शहर का नहीं, बल्कि एक युग का संकेत है।
भाषण के समापन पर जब हाल में बॉलिवुड फिल्म धूम का शीर्षक गीत गूंजा और उसके बाद जे-ज़ी व एलिसिया कीज़ का Empire State of Mind बजा, तो पूरा माहौल “नए न्यूयॉर्क” के उत्साह से भर गया — वह न्यूयॉर्क जिसे पहली बार एक भारतीय मूल के नेता ने दिशा दी।
Rise of Zohraan Mamdani: बॉलीवुड की भाषा में राजनीतिक संवाद
जोहरान ममदानी का प्रचार पूरी तरह दक्षिण एशियाई सांस्कृतिक रंगों में डूबा हुआ था। उनकी मां प्रसिद्ध फिल्मकार मीरा नायर हैं और पिता महमूद ममदानी, युगांडा में जन्मे भारतीय मूल के प्रतिष्ठित विद्वान। ममदानी ने इंस्टाग्राम और डिजिटल प्लेटफॉर्म पर हिंदी में कई संदेश रिकॉर्ड किए — जिनमें बॉलीवुड के संवाद और दृश्य बार-बार दिखाई दिए। उनके लिए यह सिर्फ चुनावी रणनीति नहीं, बल्कि अपनी जड़ों से जुड़ाव का प्रतीक था।
वैश्विक राजनीति में भारतवंशियों की मजबूत पकड़
ममदानी की जीत उस व्यापक कहानी का हिस्सा है, जिसमें भारतीय मूल के लोग लगातार वैश्विक सत्ता-संरचनाओं का हिस्सा बनते जा रहे हैं। आज दुनिया के 29 देशों में 260 से अधिक भारतवंशी जनप्रतिनिधि सक्रिय हैं — जिनमें ब्रिटेन, मारीशस, फ्रांस और अमेरिका प्रमुख हैं।
करीब 3.43 करोड़ भारतीय मूल के लोग विदेशों में रहते हैं, जो लोकतंत्र की वैश्विक धारा में भारत की अदृश्य उपस्थिति को रेखांकित करते हैं।
मारीशस में 45 भारतीय मूल के जनप्रतिनिधि हैं, जिनमें प्रधानमंत्री नवीन रामगुलाम भी शामिल हैं। गुयाना में 33, ब्रिटेन में 31, फ्रांस में 24, सूरीनाम में 21, और त्रिनिदाद एवं टोबैगो में 18 भारतीय मूल के सांसद हैं। अमेरिका में भी अब छह भारतवंशी प्रतिनिधि महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।
भारतीय मूल के वैश्विक नेता: नई पीढ़ी का प्रभाव
भारतवंशी नेताओं ने न सिर्फ संसदों में, बल्कि कई देशों के सर्वोच्च पदों पर अपनी छाप छोड़ी है—
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थर्मन शनमुगरत्नम, सिंगापुर के वर्तमान राष्ट्रपति (2023 से), जिन्होंने 70.4% मतों से जीत दर्ज की।
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कमला सुशीला प्रसाद-बिसेसर, त्रिनिदाद की पहली महिला प्रधानमंत्री (2010–2015, और अब 2025 से पुनः पदस्थ)।
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मोहम्मद इरफान अली, गुयाना के दसवें राष्ट्रपति — देश के पहले मुस्लिम भारतीय मूल के नेता।
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वेवल रामकलावन, सेशेल्स के राष्ट्रपति, जिन्होंने अपनी भारतीय विरासत को सार्वजनिक रूप से स्वीकार किया।
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ऋषि सुनक, ब्रिटेन के पहले भारतीय मूल के और 200 वर्षों में सबसे युवा प्रधानमंत्री (2022)।
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थर्मन से पहले, सिंगापुर में देवेन नायर (1981) और एसआर नाथन (1999–2011) भी भारतीय मूल के राष्ट्रपति रह चुके हैं।
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एंटोनियो कोस्टा, पुर्तगाल के पूर्व प्रधानमंत्री (2015–2024), जिनकी जड़ें गोवा से जुड़ी हैं।
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चंद्रिकाप्रसाद संतोखी, सूरीनाम के वर्तमान राष्ट्रपति (2020 से)।
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लियो वराडकर, आयरलैंड के पूर्व प्रधानमंत्री (2017–2020, 2022–2024)।
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प्रविंद कुमार जुगनाथ, मारीशस के पूर्व प्रधानमंत्री (2017–2024)।
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पृथ्वीराजसिंह रूपन, मारीशस के पूर्व राष्ट्रपति (2019–2024)।
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अनंदा आनंद, कनाडा की पहली हिंदू महिला विदेश मंत्री (2025)।
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गोबिंद सिंह देव और एम. कुलसेगरन, मलेशिया के सिख-भारतीय मंत्री।
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विवियन बालकृष्णन और के. शनमुगम, सिंगापुर के लंबे समय से प्रभावशाली कैबिनेट मंत्री।
भारतीय विरासत की वैश्विक कहानी
इन नामों की सूची एक सरल राजनीतिक रिकॉर्ड नहीं है—यह उस “सॉफ्ट पावर” की कहानी है जिसे भारतवंशियों ने संस्कृति, शिक्षा, और लोकतांत्रिक मूल्यों के जरिए बुना है। आज न्यूयॉर्क से लेकर सिंगापुर, लंदन से लेकर त्रिनिदाद तक, भारतीय मूल के नेता न सिर्फ शासन कर रहे हैं बल्कि एक ऐसी वैश्विक भारतीय पहचान गढ़ रहे हैं जो जड़ों से जुड़ी है और भविष्य की ओर देखती है। जोहरान ममदानी की जीत इसी निरंतरता की एक नई कड़ी है — एक ऐसा क्षण जब नेहरू की “पुराने से नए की ओर” वाली परिकल्पना, आज एक विश्व-शहर के दिल में साकार होती दिख रही है।

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