देश में हिंदी राष्ट्रभाषा नहीं बन पाने के लिए हिंदुस्तान के लोग ही जिम्मेदार हैं। (Photo Source- PTI – India Today )
हिंदी भाषा का विस्तार राष्ट्रवादियों के लिए संतोष की बात है तो उन लोगों को चुभने का अवसर भी है, जो हर वक्त अंग्रेजी में जीते-जागते हैं। हालांकि यह भी कम चिंता की बात नहीं है कि हिंदी के प्रति जैसी उपेक्षा हिंदुस्तान में है, वैसी किसी अन्य भाषा की उसके अपने मूल देश में नहीं है। यानी हिंदुस्तान में ही हिंदी पराई हो गई है। जबकि दूसरे देशों में इसका सम्मान और अपनाने वालों की तादाद लगातार बढ़ रही है।
एशियाई मूल के अमरिकियों द्वारा बोली जाने वाली शीर्ष पांच भाषाओं में हिंदी भी शामिल है। एक प्रख्यात विशेषज्ञ ने यह जानकारी दी है। ‘एशियन अमेरिकन्स एडवांसिंग जस्टिस’ (एएजेसी) के अध्यक्ष एवं कार्यकारी निदेशक जॉन यांग ने सीनेट, गृह मंत्रालय एवं सरकारी कार्य समिति के सदस्यों को बताया कि अल्पसंख्यक मिथक के व्यापक प्रतिरूप में अक्सर जिन चीजों को छोड़ दिया जाता है वे हैं भाषाई पहुंच के अभाव से उत्पन्न असमानताएं।
उन्होंने कहा कि करीब दो तिहाई एशियाई अमेरिकी आबादी आव्रजक हैं जिनमें से 52 प्रतिशत एशियाई अमेरिकी आव्रजकों के पास सीमित अंग्रेजी दक्षता होती है। यांग ने कहा, “एशियाई अमेरिकी समुदायों के बीच सीमित अंग्रेजी दक्षता (एलईपी) की दर बहुत ज्यादा भिन्न है। एशियाई आव्रजकों द्वारा बोली जाने वाली शीर्ष भाषाओं में चीनी, तेगालोग, वियतनामी, कोरियाई और हिंदी भाषा है।”
उन्होंने सांसदों को बताया कि म्यांमा के आप्रवासियों की एलईपी दर एशियाई अमेरिकियों में सबसे अधिक 79 प्रतिशत है और यह उल्लेखनीय है कि कम एलईपी दरों वाले एशियाई अमेरिकी आप्रवासी समूहों में भी, लगभग एक तिहाई आबादी को अंग्रेजी में संवाद करने में मुश्किलों का सामना करना पड़ता है।”
यांग ने कहा कि अंग्रेजी में सीमित दक्षता वाले एशियाई अमेरिकियों को बाहर रखने वाले भ्रामक सर्वेक्षणों सहित लोकप्रिय भ्रांतियों के बावजूद, एशियाई अमेरिकियों को महामारी के दौरान जबरदस्त वित्तीय कठिनाइयों का सामना करना पड़ा है।
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उन्होंने कहा, “एशियाई-अमेरिकी समुदाय पर विनाशकारी स्वास्थ्य एवं वित्तीय प्रभाव, एशियाई लोगों के खिलाफ घृणा का परिणाम है। हमने एशियाई अमेरिकियों के प्रति नस्लवादी उत्पीड़न और हिंसा देखी है, जिन्हें महामारी के सामने के बाद से कोविड-19 के लिए गलत तरीके से दोषी ठहराया गया है।”
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