पृथ्वी का आकार गोल है, लिहाजा आप कहीं से भी चलेंगे लौटकर फिर वहीं पहुंचेंगे। यह एक सामान्य धारणा है। कभी-कभी यह व्यवहार में भी दिख जाता है। कट्टरता और व्यावहारिकता दो अलग-अलग ध्रुव है, जो साथ-साथ कभी नहीं हो सकते हैं। ऐसे में रविवार को गाजियाबाद में संघ प्रमुख मोहन भागवत का यह वक्तव्य काफी महत्वपूर्ण है कि “सभी भारतीयों का डीएनए एक है, चाहे वे किसी भी धर्म के हों। भारत जैसे लोकतंत्र में हिंदू या मुस्लिम किसी एक धर्म का प्रभुत्व कभी नहीं हो सकता।” इस सोच पर आगे भी काम होना चाहिए। सचमुच अगर यह समन्वय व्यवहार में आ जाए तो समाज विभेद और विवाद का बड़ा मुद्दा हमेशा के लिए हल हो जाए, लेकिन ऐसा होगा, इसकी संभावना दूर-दूर तक नहीं दिख रही है।
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सरसंघचालक भागवत जी का यह विचार एकदम सही है कि सभी भारतीयों का डीएनए एक है, लेकिन उसके आगे की बात यह है कि जैसे जन्म के समय सभी बच्चे आम तौर पर एक तरह के होते हैं, वे बेहद अबोध, निर्दोष, निरपेक्ष और न किसी से लगाव न ही किसी अलगाव के भाव वाले होते हैं। समय के साथ जैसे-जैसे बच्चे अपने शिशु काल से बालपन और बालपन से किशोर और फिर युवावस्था में पहुंचते हैं, उनका वह निरपेक्ष भाव कब का खत्म हो चुका होता है। वह उत्परिवर्तित (Mutant) होकर नए रूप में बदलता जाता है। इससे समाज में तमाम तरह के धर्म, जाति, वर्ग-संप्रदाय को लेकर विभेद पैदा होते हैं।
यही विभेद को दूर करने की जरूरत है, जो हो नहीं पा रहा है। इसको कोरोना वायरस से भी समझ सकते हैं। जैसे कोरोना वायरस भी उत्परिवर्तित होकर नए स्वरूप में आ रहा है। पहली लहर से दूसरी लहर और अब आशंका है कि तीसरी लहर में इसका तीसरा स्वरूप आ रहा है। इससे बचने के लिए हम इसकी चेन को तोड़ने में जुटे हैं। सोशल डिस्टेंस बना रहे हैं। क्या सामाजिक भेदभाव की चेन को भी तोड़ने और उत्परिवर्तन से बचाने की आज जरूरत नहीं है? क्या इसके लिए भी ऐसे सोशल डिस्टेंसिग की जरूरत नहीं है? डीएनए के स्तर में तो सब एक हैं, लेकिन उत्परिवर्तन के बाद सब अलग हो गए। विवाद की जड़ वहीं है। इसके लिए प्रेरक बनते हैं कुछ अलगाववादी तत्व और कुछ ऐसे शक्तियां जिनका कोई डीएनए ही नहीं है। ये लोग दोनों पक्षों में हैं। जिस दिन उनका खात्मा होगा, उसी दिन से हिंदू और मुसलमान का विवाद हमेशा के लिए खत्म हो जाएगा।
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हालांकि संघ प्रमुख ने अपना भाषण शुरू करने से पहले ही यह साफ कर दिया था कि वह न तो कोई छवि बनाने के लिए कार्यक्रम में शामिल हुए हैं और न ही वोट बैंक की राजनीति के लिए ही आए हैं। कहा, “हिंदु मुस्लिम एकता भ्रामक है, क्योंकि वे अलग नहीं बल्कि एक हैं। पूजा करने के तरीके को लेकर लोगों के बीच भेदभाव नहीं किया जा सकता।” उन्होंने कहा, “अगर कोई हिंदू कहता है कि यहां मुसलमानों को नहीं रहना चाहिए तो वह व्यक्ति हिंदू नहीं है। गाय एक पवित्र जीव है लेकिन जो लोग इसके लिए दूसरों को मार रहे हैं वो हिंदुत्व के खिलाफ जा रहे हैं, क़ानून को बिना पक्षपात के उनके खिलाफ अपना काम करना चाहिए।”
दरअसल सभी भारतीयों का डीएनए एक तो है, लेकिन बाद में उसमें उत्परिवर्तन हो जाता है। शायद इसी को समझाने के लिए मोहन भागवत ने आगे यह कहा, “एकता का आधार राष्ट्रवाद और पूर्वजों की महिमा होनी चाहिए। हम लोकतांत्रिक देश में रहते हैं। यहां केवल भारतीयों का प्रभुत्व हो सकता है, हिंदू या मुसलमानों का प्रभुत्व नहीं।” जिस दिन सब भारतीय हो जाएंगे, उस दिन से हमारे झगड़े खत्म हो जाएंगे।
Sanjay Dubey is Graduated from the University of Allahabad and Post Graduated from SHUATS in Mass Communication. He has served long in Print as well as Digital Media. He is a Researcher, Academician, and very passionate about Content and Features Writing on National, International, and Social Issues. Currently, he is working as a Digital Journalist in Jansatta.com (The Indian Express Group) at Noida in India. Sanjay is the Director of the Center for Media Analysis and Research Group (CMARG) and also a Convenor for the Apni Lekhan Mandali.