वत्सल श्रीवास्तव
पिछले साल यानी 2020 के मध्य में अमेरिका ने ब्रिटेन की एस्ट्राजेनिका कम्पनी के साथ 1.2 बिलियन डॉलर की डील की, जिसमे यह कहा गया कि यदि एस्ट्राजेनिका वैक्सीन को सुरक्षापूर्वक बना लेता है तो 300 मिलियन डोजेज अमेरिका लेगा। ऐसी ही एक डील यूके ने एस्ट्राजेनिका के साथ 90 मिलियन डोजेज की थी। इसके अलावा कई अन्य देश जैसे कनाडा और आस्ट्रेलिया ने भी एक नहीं कई-कई कंपनियों के साथ पहले ही समझौता कर लिया। यदि एक वैक्सीन काम ना करें तो दूसरी वैक्सीन का ऑप्शन उपलब्ध रहे।
जनवरी 2021 तक फाइजर की 96% वैक्सीन और मॉडर्ना की 100% वैक्सीन इन अमीर देशों ने पहले ही खरीद ली। इसके पीछे का तर्क वही था कि भविष्य में एक वैक्सीन काम ना आए तो दूसरे का ऑप्शन इनके पास तैयार रहे। इन देशों काे पता था कि ऐसी डील में काफी पैसे जरूर जाएंगे, लेकिन कुछ अनहोनी या आपदा जैसी स्थिति आने पर उनके नागरिक सुरक्षित रहेंगे। मार्च 2021 तक कनाडा के पास इतनी वैक्सीन आ चुकी हैं कि वह अपने नागरिकों को 5 बार वैक्सीनेट कर सकता है। यूनाइटेड किंगडम चार, न्यूजीलैंड तीन, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका तथा यूरोपीय यूनियन अपने नागरिकों का दो-दो बार वैक्सीनेशन कर सकते हैं।
अब जरा उन देशों के बारे में सोचिए जो विकासशील हैं। अफ्रीका के देश इथोपिया, युगांडा, बोत्सवाना, कीनिया, मॉरीशस, तंजानिया, जांबिया जैसे देशों में जब महामारी फैलती है, तो वे अपने नागरिकों को वैक्सीनेट कैसे करवाएं। अमीर देश इन छोटे अफ्रीकी देशों के लोगों पर वैक्सीन का ट्रायल करते रहे हैं, लेकिन जब इनके पास वैक्सीन सफलतापूर्वक पहुंचने की बात आती है तो ये हमेशा पिछड़ जाते हैं। इनके नसीब में असमानता ही है।
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भारत और साउथ अफ्रीका ट्रिप्स एग्रीमेंट में बदलाव के लिए यूएन का दरवाजा खटखटा चुके हैं। ट्रिप्स एग्रीमेंट ऐसा एग्रीमेंट है जो कि देशों द्वारा सफलतापूर्वक बनाए गए वैक्सीन या अन्य चीज को सुरक्षित रखने का प्रयास करता है। देश उन पर कॉपीराइट या पेटेंट लगा देते हैं, ताकि अन्य कोई देश उसी तरीके का निर्माण ना कर सके, लेकिन महामारी के इस दौर में यह भी सोचना होगा कि इस वैक्सीन की पहुंच विकसित, विकासशील तथा अल्प विकासशील सभी देशों तक हो, ताकि सभी लोगों की जान बचाई जा सके।
क्या है ट्रिप्स
ट्रिप्स (TRIPs) यानी Trade-Related Aspects of Intellectual Property Rights) विश्व व्यापार संगठन (World Trade Organisation) द्वारा बनाई गई अन्तरराष्ट्रीय संधि है, जिसमें बौद्धिक सम्पत्ति के अधिकारों के न्यूनतम मानकों को तय किया गया है। यह विश्व व्यापार संगठन के समय किए गए कई समझौतों में से एक है।
Sanjay Dubey is Graduated from the University of Allahabad and Post Graduated from SHUATS in Mass Communication. He has served long in Print as well as Digital Media. He is a Researcher, Academician, and very passionate about Content and Features Writing on National, International, and Social Issues. Currently, he is working as a Digital Journalist in Jansatta.com (The Indian Express Group) at Noida in India. Sanjay is the Director of the Center for Media Analysis and Research Group (CMARG) and also a Convenor for the Apni Lekhan Mandali.