दुनिया भर में वैश्विक तापमान में इजाफा हो रहा है। इसको लेकर वैज्ञानिक और विशेषज्ञ लगातार चिंता जताते रहे हैं। इसके पीछे सबसे बड़ी वजह उपभोक्तावाद की वजह से पनप रहा बढ़ता प्रदूषण है। कोई देश इसके लिए जिम्मेदार नहीं है, कमोवेश सब देशों में प्रदूषण बड़ी वजह बना हुआ है, लेकिन विकसित देश अपनी जिम्मेदारियों को ठीक से नहीं निभाकर छोटे देशों पर दादागिरी दिखाते हैं। क्षेत्र विशेष की जलवायु भी बदल रही है। इसका मतलब है किसी स्थान के औसत मौसम का लम्बे समय के लिए बदल जाना। यह बदलाव आतंरिक या बाहरी कारणों से आ सकता है। बाहरी कारणों में प्रमुख हैं सौर ऊर्जा विकिरण में बदलाव, ज्वालामुखी फटना आदि। इसके अलावा इंसानी गतिविधियां जैसे जीवाश्म ईंधनों का जलना, बड़े पैमाने पर पेड़ों को काटना आदि। इस सब से ग्रीन हाउस प्रभाव में बढ़ोतरी भी हो रही है।
विश्व का तापमान अगर औद्योगिक क्रांति शुरू होने से पहले के स्तर से चार डिग्री अधिक पर पहुंचता है तो अंटार्कटिक में बर्फ की परत के एक तिहाई हिस्से के टूटकर समुद्र में बहने की आशंका है। जियोफिजिकल रिसर्च लेटर्स पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन में पाया गया है कि अंटार्कटिक में बर्फ की परत के 34 फीसद हिस्से के ढहने का खतरा है।
वैज्ञानिकों ने कहा कि अंटार्कटिक प्रायद्वीप पर बची बर्फ की सबसे बड़ी परत लार्सन सी बर्फ की उन चार परतों में से एक है जिसके जलवायु परिवर्तन की चपेट में आने का खतरा है। ब्रिटेन में रीडिंग यूनिवर्सिटी की इला गिलबर्ट ने कहा, ‘बर्फ की परतें जमीन पर ग्लेशियरों के बहकर समुद्र में गिरने और समुद्र स्तर बढ़ाने से रोकने के लिए महत्त्वपूर्ण अवरोधक है।’ गिलबर्ट ने कहा, ‘जब ये ढहती हैं तो ऐसा लगता है जैसे किसी बोतल से बड़ा ढक्कन हटाया गया हो। ऐसा होने पर ग्लेशियरों क काफी पानी समुद्र में बह जाता है।’शोधकर्ताओं ने कहा कि अगर तापमान चार डिग्री के बजाय दो डिग्री सेल्सियस तक बढ़ता है तो इस क्षेत्र पर खतरा आधा हो जाएगा।
उन्होंने कहा कि जब बर्फ पिघलकर इन परतों की सतह पर एकत्रित होती है, उससे इन परतों में दरार आ जाती है और फिर ये टूट जाती हैं। इस आधार पर बढ़ते तापमान और जलवायु परिवर्तन से अंटार्कटिक में बर्फ की चादर पिघलने का खतरा बढ़ गया है। वैज्ञानिकों ने कहा कि अंटार्कटिक प्रायद्वीप पर बची बर्फ की सबसे बड़ी चादर लार्सन सी बर्फ की उन चार चादरों में से एक है जिसके जलवायु परिवर्तन की चपेट में आने का खतरा सबसे ज्यादा है। और यह आने वाले समय में सबसे बड़ा संकट होगा।
बहरहाल वैश्विक तापमान में इजाफे का खतरा भविष्य के लिए गंभीर चुनौती बन रहा है। अभी हम इसको नहीं रोके तो कभी नहीं रोक पाएंगे। हमें अपनी आदतों और सोच में बदलाव लानी होगी।
Sanjay Dubey is Graduated from the University of Allahabad and Post Graduated from SHUATS in Mass Communication. He has served long in Print as well as Digital Media. He is a Researcher, Academician, and very passionate about Content and Features Writing on National, International, and Social Issues. Currently, he is working as a Digital Journalist in Jansatta.com (The Indian Express Group) at Noida in India. Sanjay is the Director of the Center for Media Analysis and Research Group (CMARG) and also a Convenor for the Apni Lekhan Mandali.