Operation Sindoor: भारत ने आतंकवाद के खिलाफ एकजुटता और दृढ़ता का जो संदेश ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के माध्यम से दिया, अब उसी संदेश को वैश्विक स्तर तक पहुंचाने की तैयारी शुरू हो गई है। इस रणनीतिक पहल के तहत भारत सरकार एक सर्वदलीय संसदीय प्रतिनिधिमंडल को दुनिया के प्रमुख देशों में भेजने की योजना बना रही है, ताकि यह दिखाया जा सके कि आतंकवाद के मुद्दे पर भारत न केवल अपने भीतर एकमत है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय से भी समर्थन चाहता है।
Operation Sindoor: क्यों खास है यह पहल?
यह पहली बार नहीं है जब भारत ने आतंकी हमलों के बाद कूटनीतिक स्तर पर व्यापक अभियान चलाने का फैसला किया हो। 1994 और 2008 में भी, आतंकवादी घटनाओं के बाद भारत ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सक्रिय प्रयास किए थे ताकि पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद को बेनकाब किया जा सके। इस बार फर्क यह है कि भारत, ऑपरेशन सिंदूर के तहत की गई जवाबी कार्रवाई के बाद अपनी स्थिति को और भी प्रभावशाली तरीके से प्रस्तुत करना चाहता है।
कौन होंगे इस मिशन के चेहरे?
इस अभियान के तहत सरकार उन नेताओं को शामिल करना चाहती है जिनकी साख अंतरराष्ट्रीय मंच पर है। जिन नामों पर चर्चा हो रही है उनमें कांग्रेस के वरिष्ठ नेता शशि थरूर और सलमान खुर्शीद, टीएमसी के सुदीप बंद्योपाध्याय, एनसीपी (एसपी) की सुप्रिया सुले, एआईएमआईएम के असदुद्दीन ओवैसी, डीएमके की कनिमोझी और बीजेपी के बीजे पांडा शामिल हैं। ये नेता विभिन्न राजनीतिक विचारधाराओं का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिससे यह संकेत भी दिया जा सकेगा कि भारत में आतंकवाद के मसले पर कोई मतभेद नहीं है।
खुर्शीद जैसे नेता, जो खुद विदेश मंत्री रह चुके हैं, इस प्रतिनिधिमंडल को विश्व मंच पर भरोसेमंद आवाज़ देंगे। वहीं, थरूर जैसे नेता, जो विदेश मामलों की संसदीय समिति के अध्यक्ष हैं, इस मुहिम को रणनीतिक धार देंगे।
यूरोप और खाड़ी देश प्राथमिक लक्ष्य
सूत्रों के मुताबिक, इन प्रतिनिधिमंडलों को पहले यूरोपीय देशों और खाड़ी देशों में भेजा जाएगा। इन क्षेत्रों में भारत के रणनीतिक साझेदार हैं और इनका वैश्विक मंचों पर प्रभाव भी है। यहां जाकर यह टीम भारत की सुरक्षा चिंताओं, पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद और ऑपरेशन सिंदूर में की गई कार्रवाई की जानकारी साझा करेगी।
संदेश स्पष्ट: हमला पहले हुआ, जवाब बाद में
इस पूरी मुहिम का मकसद यह बताना है कि भारत ने पहले हमला नहीं किया, बल्कि जवाबी कार्रवाई की। ऑपरेशन सिंदूर के तहत जिस तरह नौ आतंकी ठिकानों को निशाना बनाया गया, वह दिखाता है कि भारत अब चुप रहने वाला नहीं है। लेकिन इसके साथ ही यह भी संदेश दिया जाएगा कि भारत युद्ध नहीं चाहता, बल्कि अपने नागरिकों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है।
सर्वदलीय एकता का प्रतीक
इस पहल का एक बड़ा उद्देश्य यह भी है कि भारत के अंदर की राजनीतिक एकजुटता को दुनिया के सामने रखा जाए। अक्सर यह देखा गया है कि विदेशों में भारत के खिलाफ चलाए जाने वाले दुष्प्रचार अभियान में घरेलू असहमति को मुद्दा बनाया जाता है। ऐसे में सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल यह दिखाने में सक्षम होगा कि आतंकवाद के मुद्दे पर भारत में कोई मतभेद नहीं है।
यह वही रणनीति है जिसे अतीत में नरसिम्हा राव सरकार ने अपनाया था, जब जिनेवा में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग में पाकिस्तान के प्रस्ताव के खिलाफ अटल बिहारी वाजपेयी की अगुवाई में एक सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल भेजा गया था और भारत की स्थिति को मजबूती से रखा गया था।
विपक्ष भी हो रहा है शामिल
जानकारी के अनुसार, संसद मामलों के मंत्री किरेन रिजिजू ने व्यक्तिगत रूप से कई विपक्षी सांसदों को फोन कर इस मुहिम में शामिल होने का आमंत्रण दिया है। यह एक ऐसा प्रयास है जो राजनीतिक सीमाओं से ऊपर उठकर किया जा रहा है। सलमान खुर्शीद ने भी यह स्पष्ट किया है कि उन्हें इस बारे में सूचना मिली है और अब अंतिम निर्णय पार्टी करेगी।
घरेलू राजनीति में भी मायने
यह कदम ऐसे समय उठाया गया है जब देश में राजनीतिक माहौल गर्म है। विपक्ष सरकार से सवाल कर रहा है कि सिर्फ एनडीए शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों को ही ऑपरेशन सिंदूर की जानकारी क्यों दी गई। वहीं दूसरी ओर, भाजपा तिरंगा रैलियों के जरिए राष्ट्रवाद का संदेश दे रही है, जबकि कांग्रेस ने भी जय हिंद यात्राएं निकालने का ऐलान किया है।
इसलिए यह कूटनीतिक अभियान सिर्फ विदेशों के लिए नहीं, बल्कि घरेलू राजनीति में भी एक संदेश देने वाला कदम है — कि देश की सुरक्षा और आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में भारत पूरी तरह एकजुट है।
‘ऑपरेशन सिंदूर’ न केवल एक सैन्य कार्रवाई है, बल्कि यह भारत की कूटनीतिक और राजनीतिक एकता का भी प्रतीक बनता जा रहा है। सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल के माध्यम से भारत एक ऐसा संदेश देने की कोशिश कर रहा है, जो आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक समर्थन को मजबूती दे और पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अलग-थलग कर सके। इस बार की रणनीति में निर्णायकता और समन्वय दोनों झलक रहे हैं, जो भारत की बदलती कूटनीतिक शैली को रेखांकित करता है।

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