अफगानिस्तान के मारवारा जिले में अपने हथियारों के साथ तालिबान लड़ाकों का एक समूह। (Photo Source: Washington Post-Lorenzo Tugnoli)
अफगानिस्तान में तालिबान के कब्जे के बाद पूरी दुनिया में आतंक का दोबारा सिर उठाने की बातें होने लगी हैं। तालिबान एक आतंकी संगठन है, जिसका अपना कायदा-कानून है। वह लोकतंत्र और आधुनिक राजनीतिक व्यवस्था को दरकिनार कर कथित रूप से कट्टर इस्लामिक व्यवस्था को मानता है। हालांकि उसको अभी तक किसी भी देश ने मान्यता नहीं दी है, और न ही कहीं से उसके राजनीतिक संपर्क ही स्थापित हो पाए हैं, लेकिन फिर भी वह अफगानिस्तान की सत्ता की बागडोर अपने हाथों में लेकर विश्व बिरादरी से खुद को एक राष्ट्र के रूप में मान्यता देने की बात कर रहा है।
उसका पिछला इतिहास खूनखराबे से भरा हुआ है, लेकिन वह खुद को गैरआतंकी बताता है। अमेरिका और नाटो सेनाओं से लंबे समय तक मुकाबला करने के बाद वह अब फिर से जबरन सत्ता पर काबिज हो गया है। लूटपाट और मारकाट के अलावा तालिबान ने कभी कोई ऐसा उद्योग नहीं चलाया, जिससे उसकी आय होती हो, तब यह सवाल उठता है कि वह कहां से पैसा लाता है। माना जाता है कि वह लंबे समय से अफीम, हेरोइन जैसी नशीली दवाओं का अवैध क़ारोबार करता रहा है। अफ़ग़ानिस्तान दुनिया का सबसे बड़ा अफ़ीम और हेरोइन उत्पादक देश है। अफ़ीम से ही हेरोइन तैयार की जाती है। एक अनुमान के अनुसार, अफ़ग़ानिस्तान से हर साल 1.5 से तीन अरब डॉलर की अफ़ीम दूसरे देशों में भेजी जाती है।
बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक तालिबान किसानों से अफ़ीम की खेती कराता रहा है और उनसे इस पर 10 फ़ीसदी का कर वसूलता है। इसके अलावा, हेरोइन बनाने वाली प्रयोगशालाओं से भी वह कर वसूलता है। इन सबसे तालिबान को हर साल 10 से 40 करोड़ डॉलर (7,500 से 3,000 करोड़ रुपए) के बीच की आय होने का अंदाज़ा लगाया जाता है।
2018 में अमेरिकी कमांडर जनरल जॉन निकोलसन ने एक रिपोर्ट में कहा था कि तालिबान को उसकी आय का 60 फ़ीसदी हिस्सा अवैध ड्रग के धंधे से आता है। हालांकि उनके इस अनुमान को कई जानकार बहुत ज़्यादा बताकर ख़ारिज़ करते हैं। तालिबान की आय केवल अफ़ीम की खेती और उसकी बिक्री से नहीं आती। इसका प्रमाण 2018 में अफ़ग़ान कारोबारियों के नाम लिखा एक खुला ख़त है, जिसमें तालिबान ने उनसे तेल, निर्माण सामग्रियों सहित कई उत्पादों पर कर चुकाने को कहा था।
असल में जिन इलाक़ों में तालिबान का प्रभाव रहा है, वहां उसने लोगों से कई तरह के कर वसूले हैं। पिछले दो दशकों में पश्चिमी देशों का अच्छा-ख़ासा धन भी, न चाहते हुए तालिबान की जेब में गया है। सबसे पहले, पिछले दो दशकों में दुनिया के कई देशों की मदद से देश में सड़क, स्कूल, अस्पताल आदि बनाए गए, लेकिन तालिबान ने इन सभी परियोजनाओं से पैसे वसूल किए।
यह भी अनुमान है कि पश्चिमी देशों को सामान की सप्लाई करने वाले ट्रकों से तालिबान ने हर साल करोड़ों डॉलर बनाए हैं। उसने इसके अलावा, अफ़ग़ान सरकार द्वारा आम जनता को दी जा रही सेवाओं से भी खूब कमाई की है। अफ़ग़ानिस्तान की बिजली कंपनी के अध्यक्ष ने साल 2018 में बीबीसी को बताया था कि बिजली का इस्तेमाल करने वालों से तालिबान वसूली करता है। उनका अनुमान था कि इससे उसे हर साल 20 लाख डॉलर की आय होती है।
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तालिबान जब किसी इलाक़े को अपने कब्ज़े में लेता है, तो वहां से उसे पैसे के साथ काफी सामान, गाड़ियां, हथियार आदि प्राप्त होते हैं। लगातार लड़ाई में जुटे रहने वाले संगठन के लिए आय का यह स्रोत भी महत्वपूर्ण होता है। खनिजों और कीमती पत्थरों के मामले में अफ़ग़ानिस्तान काफी अमीर है। दशकों से देश में लड़ाई होते रहने से अभी इनका पर्याप्त दोहन नहीं हो सका है। पूर्व अफ़ग़ान अधिकारियों के अनुसार, अभी देश का खनन उद्योग एक अरब डॉलर के आसपास का है।
देश का ज्यादातर खनन छोटे स्तर का है और अधिकांश अवैध ढंग से हो रहा है। तालिबान ने इस पर अपना नियंत्रण करते हुए वैध और अवैध सभी तरह के खनन से ख़ासी कमाई की। 2014 में यूएन की एक रिपोर्ट में बताया गया था कि तालिबान ने हेलमंद प्रांत में 25 से 30 अवैध खनन परियोजनाओं से हर साल एक करोड़ रुपये से ज्यादा कमाए थे।
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