आजाद बांग्लादेश का वह खूनी किस्सा जब शेख हसीना के पूरे कुनबे का हुआ कत्ल

बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना वाजेद (Sheikh Hasina Wazed) ने कहा है कि भारत उनके लिए सबसे करीबी दोस्त है जिसने उनके मुल्क को आजाद करने में अहम भूमिका निभाई। वह कहती हैं कि भारत उनके लिए सबसे भरोसेमंद दोस्त है। 1975 में जब ढाका में उनके परिवार की हत्या कर दी गई थी, तब भारत ही था, जिसने उन्हें अपने देश में सुरक्षित ले आया और दिल्ली के पंडारा रोड स्थित एक घर में हाई सिक्योरिटी के बीच रखा।

बांग्लादेश की आजादी के सबसे बड़े नायक और देश के पहले राष्ट्रपति बंगबन्धु शेख मुजीबुर्रहमान (Sheikh Mujibur Rahman) की बेटी शेख हसीना वाजेद 1975 में देश में हुए तख्तापलट में अपने माता-पिता भाई समेत पूरे परिवार को खो दिया था। यह किसी भी कठोर से कठोर दिल को भी झकझोर देने वाली बड़ी घटना थी, जिसमें उनके परिवार और रिश्तेदार समेत 18 लोगों की नृशंस हत्या कर दी गई। यह कुछ वैसा ही था, जैसा मध्ययुगीन शाही राजघरानों में ताजोतख्त के लिए राजमहलों की चहारदीवारी के भीतर खूनखराबा का दौर चलता था। वह स्वयं इसलिए बच पाई थीं, क्योंकि वह घटना से कुछ दिन पहले ही जर्मनी में अपने पति के पास चली गई थीं।

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Memoir of Bangbandhu Sheikh Mujibur Rahman: 25 मार्च 1971 को देर रात करीब एक बजे के आसपास ढाका के 32 धनमंडी स्थित इसी आवास पर शेख मुजीबुर्रहमान और उनके परिवार के अन्य सदस्यों की नृशंस हत्या की गई थी। (Photo- Social Medai)

अब जब वह दिल्ली यात्रा पर हैं तो बांग्लादेश अवामी लीग की 74 वर्षीय इस नेता ने हिंदुस्तान से जुड़ी अपनी भावनाओं, अपने जज्बातों को सामने आने से खुद को रोक नहीं सकी। न्यूज एजेंसी एएनआई से बात करते हुए प्रधानमंत्री शेख हसीना वाजेद ने हिंदुस्तान और बांग्लादेश के बीच रिश्ते के तमाम अहम मुद्दों पर अपनी राय रखने के अलावा खास तौर पर उस घटना को याद किया, जो 47 साल पहले 1975 को घटी थी और जिसमें उन्होंने अपने परिवार को खो दिया था।

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Story of Bangbandhu: रावलपिंडी जेल पाकिस्तान छूटने के बाद लंदन गए शेख मुजीबुर्रमान दो दिन बाद ढाका लौट आए। इस यात्रा के दौरान वे कुछ घंटे के लिए दिल्ली में रुके और प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से मुलाकात की। (फोटो- PIB)

25 मार्च 1971 में पिता मुजीबुर्रहमान को पाकिस्तानी सेना ने गिरफ्तार कर लिया था

25 मार्च 1971 को देर रात करीब एक बजे के आसपास ढाका के 32 धनमंडी स्थित शेख मुजीबुर्रहमान के घर पर पाकिस्तानी सेना के कुछ आदमी हथियारों के साथ पहुंचे और गेट पर चौकसी के लिए खड़े सुरक्षा गार्ड की गोली मारकर हत्या कर दी। घर के ऊपरी हिस्से के कमरे में सो रहे शेख मुजीबुर्रहमान की नींद गोलीबारी की आवाज सुनकर अचानक खुल गई और वे जैसे ही नीचे पहुंचे सैनिकों ने उन्हें जबरन घसीट कर जीप में बैठा लिया और कैंट एरिया के आदमजी कॉलेज ले गए।

अगले दिन 26 मार्च को बांग्लादेश मुक्ति युद्ध की शुरुआत

इसके ठीक अगले दिन यानी 26 मार्च 1971 को बांग्लादेश की आजादी का ऐलान करने के साथ ही बांग्लादेश मुक्ति युद्ध की शुरुआत कर दी गई। मुजीबुर्रहमान को आदमजी कॉलेज में तीन दिन तक कैद रखा गया। बाद में उन्हें पाकिस्तान के मियांवाली जेल ले जाया गया और नौ महीने तक उन्हें एक ऐसे कमरे में रखा, जहां बेहद डरावना माहौल था। उस वक्त भारत-पाकिस्तान के बीच जंग चल रही थी।

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16 दिसंबर 1971 को नए मुल्क के जन्म के साथ हुआ जंग का अंत

16 दिसंबर 1971 को जब जंग का अंत हुआ तो भारत पाकिस्तान को करारी शिकस्त दे चुका था और उसके दो टुकड़े कर डाले थे। इस दौरान महज 13 दिनों में पाकिस्तान के 93 हजार सैनिकों ने भारतीय सेना के सामने घुटने टेक दिए। इसी जंग से पूर्वी पाकिस्तान कहे जाने वाले हिस्से का नए मुल्क ‘बांग्लादेश’ के रूप में जन्म हुआ।

इधर पाकिस्तान के राष्ट्रपति जुल्फिकार अली भुट्टो के आदेश पर शेख मुजीबुर्रमान को मियांवाली जेल से निकालकर रावलपिंडी के एक गेस्ट हाउस में पहुंचा दिया गया। बांग्लादेश आजाद हो चुका था। शेख मुजीबुर्रहमान को छोड़ दिया गया था और वे 7 जनवरी 1972 को लंदन चले गए।

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Bangladesh Mukti Diwas, Sheikh Mujibur Rahman in Dhaka: ढाका एयरपोर्ट पर पहुंचने के बाद शेख मुजीबुर्रहमान को एक खुली जीप पर उनके आवास तक ले जाया गया। इस दौरान दस लाख से ज्यादा लोग उनके साथ थे।

शेख ढाका पहुंचे तो एयरपोर्ट पर अगवानी के लिए दस लाख लोग मौजूद थे

वहां से दो दिन बाद वे ढाका के लिए रवाना हो गए। इस बीच कुछ देर के लिए वे दिल्ली में रुके। ढाका पहुंचने पर उनका शानदार स्वागत किया गया। देश में उनकी लोकप्रियता का आलम यह था कि उनकी अगवानी के लिए एयरपोर्ट पर दस लाख लोग आए थे। शेख मुजीबुर्रहमान मुल्क के पहले राष्ट्रपति बनाए गए। लेकिन यह खुशियों का यह दौर बहुत लंबा नहीं था।

तीन साल बाद 15 अगस्त 1975 की सुबह बांग्लादेश की सेना के कुछ जूनियर अफसर 32 धनमंडी स्थित शेख मुजीबुर्रहमान के घर पर पहुंचे और अचानक जोरदार गोलीबारी शुरू कर दी। गोलियों की आवाज सुनकर शेख बाहर निकलने लगे। उन्हें ऐसी किसी घटना होने का दूर-दूर तक कोई अंदेशा नहीं था। तभी एक गोली उनके बगल से गुजरी। इससे वे सीढ़ी पर आगे की ओर गिर गए और लुढ़कते हुए नीचे पहुंच गए।

15 अगस्त 1975 को पूरे परिवार की क्रूरता से हत्या कर दी गई

इसके बाद सेना के अफसर पहले उनकी पत्नी बेगम मुजीब की हत्या की, फिर उनके दूसरे बेटे जमाल को मार डाला। खून पर उतारू अफसरों ने शेख मुजीब की दोनों बहुओं की भी हत्या कर दी। इतने से भी दिल को ठंडक नहीं मिली तो सबसे छोटे बेटे 10 वर्ष के रसेल मुजीब को भी गोलियों से भून डाला और फिर मुजीबुर्रहमान की हत्या कर दी। जिस वक्त शेख हसीना के परिवार का कत्लेआम किया जा रहा था, उस वक्त परिवार का एक भी सदस्य वहां रोने के लिए नहीं बचा था। उनकी बेटी शेख हसीना दो दिन पहले जर्मनी में अपने पति के पास चली गई थीं। जब लौटीं तो परिवार खो चुकी थीं।

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