तालिबान के अधिग्रहण के बाद से अफगानिस्तान में इस हाल में जी रहे हैं आम लोग। (Photo Source: Hoshan Hashimi : AFP)
अफगानिस्तान में स्थितियां दिन पर दिन बिगड़ती जा रही हैं। इससे वहां के लोगों के लिए अब खाने के लाले पड़ गए हैं। अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने अगर तत्काल कुछ ठोस कदम नहीं उठाया तो वहां अगले कुछ हफ्तों में व्यापक भुखमरी के हालात पैदा हो जाएंगे।
व्यापार ठप होने और बेरोजगारी की वजह से ऐसा लग रहा है कि लाखों लोग बिना खाना के मर जाएंगे। दुनिया में सबसे ज्यादा नारकीय हालत में रहने को अफगानी विवश हो रहे हैं। वहां की तालिबान सरकार ने लोगों को मरने के लिए छोड़ दिया है।
: खास बातें :
दुनियाभर के देश अफगानी जनता की मदद करना चाहते हैं, लेकिन वे तालिबान सरकार के बजाए सीधे जनता तक अपना सामान पहुंचाना चाहते हैंनए तालिबान शासन ने अफगानी लोगों को मताधिकार से वंचित कर रखा है, उनके मौलिक मानवाधिकारों को गंभीर रूप से प्रतिबंधित कर दिया है
इन सबके बीच तालिबान के हाथों अफगानिस्तान सरकार के पतन के बाद दुनिया के सामने कुछ सीमित विकल्प ही बचे हैं। हाल ही में अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने देश में तेजी से बढ़ रहे मानवीय आपातकाल के बारे में चेतावनी दी है और सर्दियों से पहले लाखों अफगानों तक सहायता पहुंचाने का आह्वान किया है।
इस बीच, नए तालिबान शासन ने व्यवस्थित रूप से अफगान के लोगों को मताधिकार से वंचित कर दिया है और उनके मौलिक मानवाधिकारों को गंभीर रूप से प्रतिबंधित कर दिया है। विशेष रूप से महिलाओं और लड़कियों की शिक्षा से जुड़े अधिकार। फिलहाल तो तत्काल मानवीय जरूरतों की ओर पर्याप्त तवज्जो न दिए जाने से देश की अकाल पड़ने की आशंका है।
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संयुक्त राष्ट्र संघ का अनुमान है कि देश की लगभग आधी आबादी – या लगभग दो करोड़ तीस लाख लोग – आने वाले महीनों में भोजन से वंचित होने वाले हैं। वर्ष के अंत तक पांच वर्ष से कम आयु के 32 लाख बच्चों के कुपोषण से पीड़ित होने की आशंका है। हालांकि, देश की दीर्घकालिक जरूरतों को इन अधिक तीव्र चिंताओं से इतनी आसानी से अलग नहीं किया जा सकता है।
ऐसे में अंतरराष्ट्रीय समुदाय को तालिबान को प्रोत्साहित किए बिना या उसके भयावह मानवाधिकार रिकॉर्ड की उपेक्षा किए बिना वहां की जनता को मानवीय आपातकाल से बचाने का एक तरीका खोजना चाहिए।
जातीय भेदभाव और लैंगिक रंगभेद के खतरे वास्तविक हैं – और अफगानिस्तान की नागरिक आबादी के भविष्य के लिए उतने ही हानिकारक होंगे।
फिलहाल जो चल रहा है, उससे ऐसा नहीं लगता है कि कहीं कोई मदद के आसार हों। दुनियाभर के नेता चाहते हैं कि बिना तालिबान से जुड़े वहां की जनता तक मदद पहुंचाई जाए, लेकिन इस पर तालिबान के राजी होना नामुमकिन दिख रहा है।
आश्चर्य की बात यह है कि चीन और पाकिस्तान जैसे देश, जो अफगानिस्तान में तालिबान सरकार के समर्थन में हैं, वे भी कुछ नहीं कर रहे हैं।
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