Sharad-Ajit Pawar Reunion: महाराष्ट्र की राजनीति एक बार फिर हलचल में है। पवार परिवार की रणनीति, महायुति-महा विकास अघाड़ी की खेमेबंदी और आगामी स्थानीय निकाय चुनाव—इन सभी ने राज्य की सियासी तस्वीर को जटिल और दिलचस्प बना दिया है। बीते एक साल में दो बार शरद पवार की ओर से पार्टी विलय के संकेतों ने राजनीतिक हलकों में नई चर्चाओं को जन्म दिया है। इसको लेकर कई तरह की अटकलें लगाई जा रही हैं। सच क्या है यह तो शरद पवार ही बता सकते है।
Sharad-Ajit Pawar Reunion: लोकसभा में सफलता, विधानसभा में शिकस्त
2024 के लोकसभा चुनावों में शरद पवार के नेतृत्व वाली एनसीपी (SP) ने शानदार प्रदर्शन करते हुए 10 में से 8 सीटों पर जीत दर्ज की थी। लेकिन यह जीत लंबे समय तक टिक नहीं पाई। छह महीने बाद हुए विधानसभा चुनाव में पवार की पार्टी ने 82 सीटों पर चुनाव लड़ा, लेकिन महज 10 सीटों पर सिमट कर रह गई। यह गिरावट उनके राजनीतिक कद और प्रभाव पर सीधा असर डालने वाली थी।
Sharad-Ajit Pawar Reunion: 2025 में फिर उठा विलय का मुद्दा
मई 2025 में शरद पवार ने एक बार फिर विलय की संभावना जताई, लेकिन इस बार संकेत अपनी ही पार्टी और अजित पवार की अगुवाई वाले एनसीपी गुट के बीच संभावित एकीकरण को लेकर थे। हालांकि उन्होंने साफ किया कि इस पर अंतिम फैसला उनकी बेटी और पार्टी की कार्यकारी अध्यक्ष सुप्रिया सुले लेंगी। यह बयान स्थानीय निकाय चुनावों से ठीक पहले आया, जिससे इसके राजनीतिक निहितार्थ और गहरे हो गए।
लोकल बॉडी चुनावों से पहले सियासी संतुलन
राज्य में स्थानीय निकाय चुनावों की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। इस बार दो बड़े गठजोड़ मैदान में हैं—सत्तारूढ़ महायुति और विपक्षी महा विकास अघाड़ी (एमवीए)। दोनों गठबंधनों में तीन-तीन पार्टियां हैं। हालांकि, नगर निगमों, जिला परिषदों और पंचायत समितियों जैसे चुनावों में ये पार्टियां अक्सर स्वतंत्र रूप से लड़ती हैं, जिससे अंदरूनी खींचतान और अवसरवादिता उजागर होती है।
एक और ‘विलय’ की सियासत?
विलय की राजनीति कोई नई बात नहीं है। पहले शिवसेना और मनसे जैसे ठाकरे बंधुओं के बीच ‘एकता’ की चर्चा चली थी। अब शरद और अजित पवार की संभावित नजदीकी से नई हलचल मची है। एक सार्वजनिक मंच पर दोनों को एक साथ देख शिवसेना नेता संजय राउत ने टिप्पणी भी की, जो इस घटनाक्रम को और रोचक बना देती है।
पवार की ‘चाल’ और पार्टी के भीतर की बेचैनी
शरद पवार के राजनीतिक कदम यूं ही नहीं उठते। वे सोच-समझकर बयान देते हैं, जो अक्सर दूरगामी संकेत लिए होते हैं। इस बार भी ऐसा ही हुआ है। अजित पवार और सुप्रिया सुले दोनों ने अभी तक इस मुद्दे पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है। लेकिन पार्टी के भीतर हलचल जरूर है। पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने मीडिया को बताया कि पार्टी का एक बड़ा तबका, जो लंबे समय से सत्ता से बाहर है, अब अजित पवार के नेतृत्व को विकल्प के रूप में देख रहा है।
जमीन पर मजबूत बीजेपी और पवार की रणनीति
बीजेपी राज्य में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी है। 132 सीटें जीतकर उसने यह दिखा दिया कि विरोधी खेमों में बंटी क्षेत्रीय ताकतों के लिए उसके खिलाफ लड़ना आसान नहीं होगा। शरद पवार जानते हैं कि अजित पवार का सामना करना और जमीनी स्तर पर पार्टी को संगठित रखना अब उनके लिए बेहद कठिन हो चुका है। यही वजह है कि वे विलय जैसे विकल्पों को परख रहे हैं, ताकि संगठन को टूटने से बचाया जा सके।
फडणवीस का ऐलान और महायुति की रणनीति
मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने स्पष्ट किया है कि बीजेपी अपने सहयोगियों—शिवसेना और अजित पवार की एनसीपी—के साथ मिलकर स्थानीय निकाय चुनाव लड़ेगी। उनका यह बयान संकेत देता है कि महायुति के भीतर फिलहाल एकजुटता बनी हुई है, लेकिन कांग्रेस, एनसीपी (SP) और एमवीए के बाकी घटक दलों की स्थिति में असमंजस साफ नजर आ रहा है।

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