Mulayam Singh Yadav Passes Away News story in Hindi: डॉ. राम मनोहर लोहिया और जयप्रकाश नारायण जैसे समाजवादी और क्रांतिकारी नेताओं की पौधशाला से निकले मुलायम सिंह यादव का कद जितना छोटा था, सियासत की बगिया में उनकी पहचान उतनी ही बड़ी थी। मुलायम सिंह यादव मूलत: राजनीतिज्ञ नहीं थे, लेकिन उनका गंवई अंदाज और विरोध के जिद्दी स्वर ने उन्हें राजनेता बना दिया। पहले अखाड़े में पहलवानी के माध्यम से विरोधियों को चित करके और फिर शिक्षक के रूप में सामने वाले पर प्रभाव जमाकर वह हमेशा सबकी नजरों में रहे। जहां भी रहे अपना अंदाज नहीं बदला, उनकी यही सोच और मनोदशा भीड़ में उनको विशिष्ट बनाती रही।
समाजवादी पार्टी के संस्थापक और उत्तर प्रदेश के तीन बार मुख्यमंत्री रहे मुलायम सिंह यादव 1970 के दशक के बाद तीव्र सामाजिक और राजनीतिक उथल-पुथल के दौर में उत्तर प्रदेश की राजनीति में उभरे। उस दौरान अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) ने तब यूपी में राजनीतिक प्रभुत्व हासिल करना शुरू कर दिया था, जिससे उच्च जाति के नेताओं के वर्चस्व वाली कांग्रेस पार्टी को दरकिनार कर दिया गया था। भारतीय जनता पार्टी (BJP) के आक्रामक राम जन्मभूमि मंदिर अभियान के मद्देनजर भारत के सबसे अधिक आबादी वाले राज्य यूपी में तब तीव्र सांप्रदायिक ध्रुवीकरण देखा जा रहा था।
एक राजनेता के रूप में मुलायम के तमाम फैसलों पर सवाल उठते रहे हैं। कई फैसलों ने उन्हें समाज के एक वर्ग का विरोधी भी बना दिया। राम मंदिर आंदोलन में 1990 के अंत में कारसेवकों पर गोली चलवाने और कई निहत्थे कारसेवकों की जान लेने जैसे मुद्दों पर आज भी देश-दुनिया के बहुत लोगों के दिलों में उनके प्रति नफरत कायम है, लेकिन बावजूद इसके उनकी सियासी समझ और दृष्टि देश की कई बड़ी घटनाओं को आकार देती रही।
आज जब चीन के साथ भारत का विवाद गहरा गया है, तब लोगों को मुलायम सिंह यादव की वह बात शिद्दत से याद आ रही है, जिसमें उन्होंने कहा था कि हमारा सबसे बड़ा दुश्मन पाकिस्तान नहीं, चीन है। हालांकि उस समय इसे इतनी गंभीरता से नहीं लिया गया था, लेकिन आज वह बात सच साबित हो रही है। यादव ने भारत पाकिस्तान और बांग्लादेश का एक परिसंघ बनाए जाने की भी वकालत की थी। बेहद जुझारू नेता माने जाने वाले मुलायम सिंह यादव ने वर्ष 1975 में तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार द्वारा देश में आपातकाल घोषित किए जाने का भी कड़ा विरोध किया था।
खास बातें :
1990 के अंत में राम मंदिर आंदोलन के दौरान कारसेवकों पर गोली चलवाने और कई निहत्थे कारसेवकों की जान लेने जैसे मुद्दों पर आज भी देश-दुनिया के बहुत लोगों के दिलों में उनके प्रति नफरत कायम है
समाजवादी आंदोलन के बेहद जुझारू नेता माने जाने वाले मुलायम सिंह यादव ने वर्ष 1975 में तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार द्वारा देश में आपातकाल घोषित किए जाने का कड़ा विरोध किया था।
जोड़-तोड़ की राजनीति में माहिर माने जाने वाले मुलायम सिंह यादव समय-समय पर अनेक पार्टियों से जुड़े। इनमें राम मनोहर लोहिया की संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी और चरण सिंह के भारतीय क्रांति दल, भारतीय लोक दल और समाजवादी जनता पार्टी भी शामिल हैं। उसके बाद वर्ष 1992 में उन्होंने समाजवादी पार्टी का गठन किया। यादव ने उत्तर प्रदेश में अपनी सरकार बनाने या बचाने के लिए जरूरत पड़ने पर बहुजन समाज पार्टी (BSP), कांग्रेस (Congress) और भारतीय जनता पार्टी (BJP) से भी समझौते किये।
समकालीन नेताओं में हमेशा बीस रहे खांटी समाजवादी नेता
अपने समकालीन नेताओं में वह हमेशा औरों से आगे रहे। दूसरों से उनकी तुलना करने पर वह हमेशा बीस ही ठहरते थे। समाजवाद और जेपी आंदोलन की पाठशाला से मुलायम सिंह यादव और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव दोनों नेता निकले थे, दोनों नेता ग्रामीण पृष्ठभूमि के थे, दोनों नेता अपने-अपने राज्य के मुख्यमंत्री बने और बाद में केंद्रीय मंत्री बने, लेकिन सियासी मैदान में जो सम्मान मुलायम सिंह यादव को मिला, वह लालू प्रसाद यादव नहीं पा सके।
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लालू प्रसाद भ्रष्टाचार के आरोप में वर्षों जेल में रहे, उन पर अपराधियों को संरक्षण देने का आरोप लगा, उनके शासनकाल को बिहार में “जंगलराज” कहा गया। इसके विपरीत मुलायम सिंह यादव का विरोध केवल सियासी रहा। न तो वह कभी भ्रष्टाचार को लेकर जेल भेजे गये और न ही उनके शासन को “जंगलराज” की संज्ञा दी गई। विपक्ष के तमाम नेता उनके जीवनपर्यंत समर्थक रहे। अगर 1990 के मंदिर आंदोलन की घटना को छोड़ दें तो उन पर कोई बड़ा आरोप आज तक नहीं है।
मंचीय भाषणों में पीड़ितों की गंभीर पहचान बने समाजवादी नेताजी
और तो और लालू के अपने मंचीय भाषणों और बैठकों में अक्सर गंवई ठिठोरापन और भीड़ का मनोरंजन करने वाला अंदाज दिखाने के चलते कई बार मसखरा, जोकर आदि कहा गया तथा गंभीरता नहीं दिखाने के कारण बहुत बार आलोचना भी हुई , जबकि मुलायम सिंह यादव हमेशा मंच पर गंभीरता से बोलते थे और भीड़ का मनोरंजन करने के बजाए वह हमेशा किसानों, गरीबों, पीड़ितों, बेरोजगारों और महिलाओं के मुद्दे पर जोरदार अंदाज में अपनी बात रखते थे।
संसद में विपक्ष में बैठकर विपक्ष के खिलाफ जाने का दिखाया साहस
नरेंद्र मोदी का पहला कार्यकाल जब खत्म होने वाला था और देश का सारा विपक्ष उनके खिलाफ आवाज उठा रहा था, तब संसद में उन्हीं विपक्षी नेताओं के बीच बैठकर उनके सामने ही मोदी के दोबारा प्रधानमंत्री बनने की कामना करने की हिमाकत दिखाकर मुलायम सिंह यादव ने साबित कर दिया था कि वह न केवल निर्भीक हैं, बल्कि आज़ाद भी हैं। उन्होंने यह बयान तब दिया जब भाजपा को उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी का मुख्य प्रतिद्वंदी दल माना जा रहा था। आज जब वह इस दुनिया में नहीं रहे तो देश के शीर्ष नेता तमाम मतभेदों के बाद भी उनके प्रति अपनी सद्भावना जता रहे हैं और श्रद्धांजलि अर्पित कर रहे हैं।
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