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Climate Reality Tour: जलवायु युद्ध की दस्तक- क्लाइमेट की TikTok घड़ी: आउट होने वाला है टाइम

Climate Reality Tour: 5 अप्रैल 2025 को दिल्ली के एरोसिटी स्थित Holiday Inn में आयोजित क्लाइमेट रियलिटी टूर ने वैश्विक जलवायु संकट पर ध्यान केंद्रित किया। इस आयोजन में अमेरिका के पूर्व उपराष्ट्रपति और नोबेल पुरस्कार विजेता अल गोर ने वर्चुअल माध्यम से भाग लिया और युवाओं को जलवायु परिवर्तन के खिलाफ ‘फ्रंटलाइन सोल्जर’ बनने का आह्वान किया।

Climate Reality Tour: जलवायु संकट अब भविष्य नहीं, वर्तमान की हकीकत

जलवायु परिवर्तन अब कोई दूर की आशंका नहीं रह गई है। बदलता मौसम, बेमौसम बारिश, भीषण गर्मी, और अचानक आने वाली बाढ़ जैसी घटनाएं अब सामान्य होती जा रही हैं। इस संकट को लेकर वैश्विक मंचों पर आवाज़ें तेज़ हो रही हैं, और हाल ही में 5 अप्रैल को दिल्ली के एरोसिटी स्थित Holiday Inn में आयोजित क्लाइमेट रियलिटी टूर इसका ताजा उदाहरण है। इस आयोजन में अमेरिका के पूर्व उपराष्ट्रपति और नोबेल पुरस्कार विजेता अल गोर ने स्पष्ट शब्दों में चेताया कि अगर अभी भी हमने इस दिशा में ठोस कदम नहीं उठाए, तो हमारी अगली पीढ़ी को इसका गंभीर खामियाज़ा भुगतना होगा। अल गोर ने खासतौर पर युवाओं को संबोधित करते हुए उन्हें इस जलवायु युद्ध का ‘फ़्रंटलाइन सोल्जर’ बनने का आह्वान किया।

प्रशिक्षण: भाषण से परे, कार्रवाई की ओर

यह कार्यक्रम केवल भाषणों तक सीमित नहीं था। इसमें प्रतिभागियों को जलवायु परिवर्तन के वैज्ञानिक पहलुओं, समाधान, और व्यक्तिगत व सामाजिक स्तर पर योगदान के तरीकों पर व्यावहारिक प्रशिक्षण दिया गया। कार्यशालाओं और प्रस्तुतियों के माध्यम से, प्रतिभागियों को यह सिखाया गया कि वे अपने समुदायों में कैसे प्रभावी परिवर्तन ला सकते हैं।

क्लाइमेट रियलिटी प्रोजेक्ट और TERI की भूमिका

क्लाइमेट रियलिटी प्रोजेक्ट की स्थापना 2006 में अल गोर द्वारा की गई थी, जिसका उद्देश्य जलवायु परिवर्तन के प्रति वैश्विक चेतना बढ़ाना है। भारत में इसकी शाखा, क्लाइमेट प्रोजेक्ट फाउंडेशन, मार्च 2008 में TERI (The Energy and Resources Institute) की मदद से स्थापित की गई थी। TERI एक प्रमुख शोध संस्थान है जो ऊर्जा, पर्यावरण और सतत विकास के क्षेत्र में काम करता है। 2009 में इसे एक ट्रस्ट के रूप में मुंबई में पंजीकृत किया गया और तब से यह भारत और दक्षिण एशिया में जलवायु शिक्षा और नेतृत्व को सशक्त बनाने में जुटा है।

COP30: एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर

2025 में ब्राज़ील के अमेज़न क्षेत्र स्थित शहर बेलेम में COP30 (Conference of Parties) का आयोजन होगा। यह सम्मेलन संयुक्त राष्ट्र के अंतर्गत होने वाली सबसे महत्वपूर्ण जलवायु बैठक मानी जाती है, जिसमें दुनिया के सभी देश जलवायु परिवर्तन पर चर्चा करने, अपनी प्रगति की समीक्षा करने, और भविष्य के लिए ठोस कदम तय करने के लिए इकट्ठा होते हैं। COP30 में एक बार फिर से यह सवाल ज़ोर से उठेगा — क्या हम अब भी तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने का लक्ष्य हासिल कर सकते हैं?

जीवाश्म ईंधन सब्सिडी: प्रगति में बाधा

COP30 से पहले एक और बड़ी चिंता यह है कि G20 देशों द्वारा जीवाश्म ईंधन क्षेत्र को दी जाने वाली सब्सिडी। अकेले 2023 में यह राशि 620 अरब डॉलर के आंकड़े को पार कर गई — यानी दुनिया का वह पैसा जो सार्वजनिक विकास, शिक्षा, स्वास्थ्य या स्वच्छ ऊर्जा में लगाया जा सकता था, वह उन कंपनियों को चला गया जो पर्यावरण को नष्ट कर रही हैं। विडंबना यह है कि वही कंपनियां हर साल अरबों डॉलर का मुनाफा कमाती हैं, जबकि आम लोग जलवायु आपदाओं की असली कीमत चुका रहे हैं — कभी बाढ़ में घर खोकर, कभी सूखे में फसल गंवाकर।

स्वच्छ ऊर्जा: एक उज्ज्वल भविष्य की ओर

लेकिन सभी खबरें नकारात्मक नहीं हैं। एक सकारात्मक संकेत यह है कि आज के समय में स्वच्छ ऊर्जा जैसे सौर और पवन ऊर्जा, कई देशों में सबसे सस्ती बिजली का स्रोत बन चुके हैं। तकनीक और निवेश की मदद से हम एक ऐसे भविष्य की ओर बढ़ सकते हैं जहां हमें अपनी ज़रूरत की ऊर्जा तो मिले, लेकिन पर्यावरण का विनाश किए बिना। अब सरकारों को चाहिए कि वे इस बदलाव को समर्थन दें, और स्वच्छ ऊर्जा क्षेत्र को प्राथमिकता में लाएं।

भारत में क्लाइमेट रियलिटी प्रोजेक्ट की पहलें

भारत में क्लाइमेट रियलिटी प्रोजेक्ट के अंतर्गत ग्रीन कैंपस कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं, जिसमें शैक्षणिक संस्थानों को एक सतत भविष्य की ओर ले जाने के लिए मार्गदर्शन दिया जाता है। इसके अलावा वृक्षारोपण, जल संचयन, ऊर्जा संरक्षण, और युवा नेतृत्व निर्माण जैसे कार्यक्रमों से यह संगठन आने वाले कल के लिए ज़रूरी बुनियाद रख रहा है।

अब कार्रवाई का समय है

जलवायु परिवर्तन के प्रभाव अब हमारे जीवन के हर पहलू में महसूस किए जा रहे हैं — खेती, स्वास्थ्य, जल स्रोत, और यहां तक कि अर्थव्यवस्था तक। भारत जैसे देश जहां आबादी विशाल है और संसाधन सीमित, वहां इस संकट का असर और भी घातक हो सकता है। जल संकट इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। अनियमित बारिश, सूखती नदियां, घटते जलाशय, और गहराते भूजल स्तर — ये सब संकेत हैं कि हमें अब और इंतज़ार नहीं करना चाहिए।

हम सदियों से सुनते आए हैं कि “जल ही जीवन है”, लेकिन अब वक्त आ गया है कि इसे केवल मुहावरा नहीं, बल्कि नीति का आधार बनाया जाए। जलवायु न्याय सिर्फ एक वैश्विक संकल्प नहीं, बल्कि एक सामाजिक जिम्मेदारी भी है। हमें मिलकर यह तय करना होगा कि हम केवल शिकायत नहीं करेंगे, बल्कि समाधान का हिस्सा बनेंगे।

अल गोर का यह संदेश बेहद सीधा और स्पष्ट है — “हम सभी के पास अब भी मौका है, लेकिन वह मौका स्थायी नहीं है। अगर हमने अभी नहीं किया, तो आने वाली पीढ़ियों को हमारे फैसलों का बोझ उठाना पड़ेगा।”

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