Jaishankar-Amir Khan Muttaqi-Talk: भारत और अफगानिस्तान के रिश्तों में एक नई सरगर्मी देखी जा रही है। हाल ही में भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर और अफगानिस्तान के कार्यकारी विदेश मंत्री आमिर ख़ान मुत्ताकी के बीच हुई फोन पर बातचीत ने राजनीतिक गलियारों में कई सवाल खड़े कर दिए हैं। क्या भारत अब तालिबान से सीधे संपर्क बढ़ा रहा है? क्या पाकिस्तान और तालिबान के रिश्तों में खटास भारत के लिए एक मौका बन सकता है?
Jaishankar-Amir Khan Muttaqi-Talk: रिश्तों में गर्मजोशी की नई शुरुआत
भारत और तालिबान के बीच बातचीत की सार्वजनिक घोषणा पहली बार सामने आई है। इस संवाद में एस जयशंकर ने पहलगाम आतंकी हमले की निंदा करने के मुत्ताक़ी के बयान की सराहना की। इसके साथ ही भारत और अफगानिस्तान के बीच पारंपरिक दोस्ती और मानवीय सहयोग को आगे बढ़ाने की मंशा जताई गई।
हालांकि भारत ने अब तक तालिबान सरकार को औपचारिक मान्यता नहीं दी है, लेकिन व्यवहारिक स्तर पर रिश्तों में बदलाव साफ दिख रहा है। यह बातचीत उस वक्त हुई है जब पाकिस्तान और तालिबान के बीच रिश्ते बेहद नाजुक मोड़ पर हैं।
Jaishankar-Amir Khan Muttaqi-Talk: पाकिस्तान-तालिबान के रिश्तों में तनाव
पिछले कुछ महीनों से पाकिस्तान और तालिबान सरकार के बीच विवाद लगातार बढ़ते जा रहे हैं। पाकिस्तान लाखों अफगान शरणार्थियों को जबरन निकाल रहा है, जिसे अफगानिस्तान मानवाधिकार और अंतरराष्ट्रीय नियमों के खिलाफ बता रहा है। इसके अलावा सीमा पर बढ़ती तनातनी और सुरक्षा बलों के बीच टकराव ने दोनों देशों के रिश्तों में खटास पैदा कर दी है।
जानकारों का मानना है कि तालिबान, पाकिस्तान के सैन्य दबाव से निकलकर एक संतुलित विदेश नीति अपनाने की कोशिश कर रहा है, जिसमें भारत जैसे देश को अहम भूमिका मिल सकती है।
अफगान विदेश मंत्री का नरम रुख
मुंबई स्थित अफगान वाणिज्य दूतावास की ओर से जारी बयान में मुत्ताकी ने भारत को एक “महत्वपूर्ण क्षेत्रीय शक्ति” बताया। उन्होंने भारत-अफगानिस्तान के ऐतिहासिक रिश्तों की सराहना करते हुए इन्हें और मजबूत करने की बात कही। साथ ही भारतीय जेलों में बंद अफगान नागरिकों की रिहाई, वीज़ा सुविधा में सहूलियत और व्यापार को लेकर सकारात्मक संकेत दिए।
भारत की ओर से भी अफगान कैदियों के मसले पर संवेदनशील रुख अपनाते हुए जल्द ध्यान देने और वीज़ा प्रक्रिया को आसान बनाने का आश्वासन दिया गया।
पहलगाम हमला और अफगानिस्तान का समर्थन
पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत ने सात मई को पाकिस्तान के कई ठिकानों पर हवाई हमले किए थे। पाकिस्तान ने जवाबी कार्रवाई में यह दावा किया कि भारत की मिसाइलें अफगान इलाके में भी गिरीं, जिसे तालिबान सरकार ने तुरंत खारिज कर दिया।
अफगान रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता ने पाकिस्तान के दावे को ‘झूठा और भ्रामक’ करार दिया। भारत ने इस समर्थन को खुले तौर पर सराहा और कहा कि अफगान जनता अपने असली मित्र और दुश्मन को पहचानती है।
तालिबान और भारत के बीच बढ़ते संपर्क
जनवरी 2025 में भारत के विदेश सचिव विक्रम मिसरी और मुत्ताकी के बीच दुबई में उच्चस्तरीय बैठक हुई थी। इसमें चाबहार पोर्ट के माध्यम से भारत-अफगान व्यापार पर चर्चा हुई थी। यह पोर्ट भारत के लिए रणनीतिक रूप से बेहद अहम है, क्योंकि इसके ज़रिए वह पाकिस्तान को बाइपास कर अफगानिस्तान और मध्य एशिया से सीधा व्यापार कर सकता है।
तालिबान की दिलचस्पी चाबहार पोर्ट में भारत के सहयोग से व्यापार बढ़ाने में दिख रही है, जो पाकिस्तान को असहज कर सकता है।
अफगान दूतावास बंद और बदले समीकरण
काबुल में सत्ता परिवर्तन के बाद दिल्ली में अफगान दूतावास का कामकाज ठप हो गया था। इसकी वजह भारत सरकार के समर्थन की कमी बताई गई थी। लेकिन इसके बावजूद मुंबई और हैदराबाद में अफगान वाणिज्य दूतावास सक्रिय रहे। जानकारों के मुताबिक इन दूतावासों का झुकाव तालिबान सरकार की ओर था और यहीं से भारत-तालिबान संपर्क की नई इबारत लिखी गई।
अब जबकि विदेश मंत्रियों के स्तर पर संवाद हुआ है, यह संकेत है कि भारत सरकार तालिबान के साथ व्यवहारिक रिश्ते बनाने के पक्ष में है, भले ही औपचारिक मान्यता अभी दूर हो।
पाकिस्तान के लिए चिंता की बात?
पाकिस्तान के कूटनीतिक हलकों में इस पूरी गतिविधि को लेकर बेचैनी है। अफगानिस्तान की तालिबान सरकार जिसे पाकिस्तान ने शुरू में भरपूर समर्थन दिया था, अब उसी तालिबान का भारत की ओर झुकाव पाकिस्तान को असहज कर रहा है।
विशेषज्ञों का मानना है कि पाकिस्तान की एकतरफा सोच और दबाव बनाने की रणनीति ने तालिबान को भारत जैसे विकल्पों की ओर देखने पर मजबूर किया है।
भारत की ‘स्ट्रैटेजिक पेसिएंस’ नीति
भारत ने तालिबान से दूरी बनाकर भी अपने हितों की रक्षा करना नहीं छोड़ा। उसने अफगानिस्तान में मानवीय सहायता, विकास परियोजनाएं और लोगों से जुड़ाव जारी रखा। अब वही ‘स्ट्रैटेजिक पेसिएंस’ काम आ रही है।
भारत ने तालिबान से संपर्क बढ़ाते हुए भी यह संकेत दिया है कि वह अफगान जनता के साथ खड़ा है, न कि किसी सत्ता विशेष के साथ। यह संतुलित रुख कूटनीतिक रूप से भारत को मजबूती देता है।
भारत और तालिबान के बीच बढ़ती बातचीत सिर्फ मानवीय सहयोग तक सीमित नहीं है, यह एक बड़ी कूटनीतिक रणनीति का हिस्सा भी है। पाकिस्तान से नाराज़ होता तालिबान और भारत से नजदीकियां बढ़ाता अफगानिस्तान एक नए दक्षिण एशियाई समीकरण का संकेत दे रहे हैं। भारत ने बिना शोर मचाए जो कूटनीतिक बुनियाद रखी थी, अब उसका असर दिखाई दे रहा है।

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