काबुल स्थित अफगानिस्तान के राष्ट्रपति भवन में दर्जनों लड़ाकों के साथ तालिबानी कमांडर। (Photo source: Al-Jazeera/screenshot)
जिसका भय था, अंतत: वही हुआ। अफगानिस्तान में फिर से तालिबान का कब्जा हो गया। अवाम को अल्लाह भरोसे छोड़ राष्ट्रपति अशरफ गनी देश छोड़कर चले गए हैं। वर्षों से विदेशी सैनिकों के साए में महफूज महसूस कर रहे स्थानीय लोग अब फिर से उस क्रूर माहौल में रहने के भय से बेचैन हैं, जिसकाे वह खत्म मान चुके थे। तमाम विदेशी नागरिक, राजनयिक, पेशेवर और अन्य लोग अफगानिस्तान से अपने देश रवाना हो गए हैं। कुछ अफगानी भी विदेश चले गए हैं। जो अफगानी बाहर जाने में सक्षम नहीं हैं और अपने ही देश में जमे हुए हैं, वे तालिबानी क्रूरता के फिर से शुरू होने के भय से कांप रहे हैं।
इस पूरे हालात पर अफगान राष्ट्रीय सुलह परिषद के प्रमुख अब्दुल्ला अब्दुल्ला ने कहा, “अफगानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति अफगानिस्तान को इस मुश्किल स्थिति में छोड़कर देश से चले गए हैं। अल्लाह उन्हें जवाबदेह ठहराएं।” अफगानिस्तान में लगभग दो दशकों में सुरक्षा बलों को तैयार करने के लिए अमेरिका और नाटो द्वारा अरबों डॉलर खर्च किए जाने के बावजूद तालिबान ने आश्चर्यजनक रूप से एक सप्ताह में लगभग पूरे अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया। कुछ ही दिन पहले, एक अमेरिकी सैन्य आकलन ने अनुमान लगाया था कि राजधानी के तालिबान के दबाव में आने में एक महीना लगेगा।
काबुल का तालिबान के नियंत्रण में जाना अमेरिका के सबसे लंबे युद्ध के अंतिम अध्याय का प्रतीक है, जो 11 सितंबर, 2001 को अलकायदा प्रमुख ओसामा बिन लादेन के षड्यंत्र वाले आतंकवादी हमलों के बाद शुरू हुआ था। ओसामा को तब तालिबान सरकार द्वारा आश्रय दिया गया था। एक अमेरिकी नेतृत्व वाले आक्रमण ने तालिबान को सत्ता से उखाड़ फेंका। हालांकि इराक युद्ध के चलते अमेरिका का इस युद्ध से ध्यान भंग हो गया।
अमेरिका वर्षों से, युद्ध से बाहर निकलने को प्रयासरत है। अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के नेतृत्व में वाशिंगटन ने फरवरी 2020 में तालिबान के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए, जो विद्रोहियों के खिलाफ प्रत्यक्ष सैन्य कार्रवाई को सीमित करता है। इसने तालिबान को अपनी ताकत जुटाने और प्रमुख क्षेत्रों पर कब्जा करने के लिए तेजी से आगे बढ़ने की अनुमति दी। वहीं राष्ट्रपति जो बाइडन ने इस महीने के अंत तक अफगानिस्तान से सभी अमेरिकी सैनिकों की वापसी की अपनी योजना की घोषणा की।
रविवार को, तालिबान लड़ाके काबुल के बाहरी इलाके में घुस गए, लेकिन शुरू में शहर के बाहर रहे। एक अफगान अधिकारी ने अपना नाम गुप्त रखने की शर्त पर कहा कि इस बीच, राजधानी में तालिबान वार्ताकारों ने सत्ता के हस्तांतरण पर चर्चा की। अधिकारी ने बंद दरवाजे के पीछे हुई बातचीत के विवरण पर चर्चा की और उन्हें “तनावपूर्ण” बताया।
READ: पड़ोस में फिर आतंक की सुबह, तालिबान के हुए कई शहर
READ ALSO: तालिबान के सिर उठाने से पाकिस्तान भी खौफजदा
सरकारी पक्ष के वार्ताकारों में पूर्व राष्ट्रपति हामिद करज़ई, हिज़्ब-ए-इस्लामी के नेता गुलबुद्दीन हेकमतयार और अब्दुल्ला शामिल थे, जो गनी के मुखर आलोचक रहे हैं। करज़ई खुद पोस्ट किये गए एक ऑनलाइन वीडियो में दिखाई दिए, जिसमें उनकी तीन छोटी बेटियां भी थीं। उन्होंने कहा कि वह काबुल में हैं।
उन्होंने कहा, “हम तालिबान नेतृत्व के साथ अफगानिस्तान के मुद्दे को शांति से सुलझाने की कोशिश कर रहे हैं।” इस बीच ऊपर से गुजर रहे एक हेलीकॉप्टर की आवाज सुनी गई। अफगानिस्तान के कार्यवाहक रक्षा मंत्री, बिस्मिल्लाह खान मोहम्मदी ने देश छोड़कर जाने वाले राष्ट्रपति की आलोचना करने से खुद को रोक नहीं सके। उन्होंने ट्विटर पर लिखा, “उन्होंने पीछे से हमारे हाथ बांध दिए और देश बेच दिया।”
The Center for Media Analysis and Research Group (CMARG) is a center aimed at conducting in-depth studies and research on socio-political, national-international, environmental issues. It provides readers with in-depth knowledge of burning issues and encourages them to think deeply about them. On this platform, we will also give opportunities to the budding, bright and talented students to research and explore new avenues.