दुनिया को मुट्ठी में बांध लेने की चीन की हिमाकत

✍️वत्सल श्रीवास्तव

चीन का हिंद महासागर क्षेत्र और दक्षिण एशिया क्षेत्र में प्रभाव लगातार बढ़ रहा है। साधारण शब्दों में समझें तो चीन हर देश में अपनी मिलिट्री और राजनीतिक क्षमता बढ़ाने में लगा है। वर्ष 2004 में आई स्ट्रिंग आफ पर्ल्स परिकल्पना से इसकी संभावना बहुत तेज हो गई थी। स्ट्रिंग आफ पर्ल्स का अर्थ है कि चीन हिंद महासागर में अपनी मिलिट्री और अपनी कमर्शियल फैसिलिटी में तेजी से इजाफा कर रहा है। ये फैसिलिटी हॉर्न ऑफ अफ्रीका (इथोपिया, इरिट्रिया, जिबूती, सोमालिया) से लेकर पूरे दक्षिण एशिया तक फैली है।

पूर्वी अफ्रीका में सबसे महत्वपूर्ण देश है ‘जिबूती’, जहां पर चीन ने सन 2017 से अपना सैन्य अड्डा बनाकर रखा है। जिबूती का अपना महत्व वैसे ही बढ़ जाता है, क्योंकि यह गल्फ ऑफ एडन (अदन की खाड़ी) को लाल सागर से अलग करता है। यही लाल सागर आगे जाकर स्विस कैनाल (स्वेज नहर) से जुड़ता है। इसी तरह सोमालिया क्षेत्र में काफी तस्करी होने के कारण यहां पर अमेरिका, फ्रांस और जापान ने भी अपने मिलिट्री बेस बनाए हैं।

सेंटर फॉर स्ट्रैटेजिक एंड इंटरनेशनल स्टडीज (CSIS) की रिपोर्ट के मुताबिक अफ्रीका में 46 सी पोर्ट (बंदरगाह) है, जहां पर चीन का जुड़ाव है। तकरीबन छह सी पोर्ट ऐसे हैं जहां पर चीन के मिलिट्री बेस को देखा गया है। इसके अलावा सूडान का ‘सूडान बंदरगाह’ और इरिट्रिया का मसाबा बंदरगाह निर्माण चीन कर रहा है। इसके साथ साथ केन्या का मुंबासा और लमाओ बंदरगाह तथा तंजानिया का दर ए सलाम, मरहबी और मतवारा बंदरगाहों के निर्माण में चीन का योगदान है। इसके अलावा हिंद महासागर स्थित स्ट्रेट आफ हॉरमुज (हॉरमुज जलडमरूमध्य) का व्यापार में काफी महत्वपूर्ण स्थान है जो पर्शियन गल्फ (फारस की खाड़ी) में स्थित है। यहां स्थित अरब देश ओमान में चीन काफी इन्वेस्टमेंट कर रहा है।

ओमान की ‘दुगाम बंदरगाह’ पर चीन ने 10 मिलियन डॉलर इन्वेस्टमेंट का एग्रीमेंट (समझौता) भी किया है। इसके अलावा यमन में भी चीन का प्रभाव बढ़ रहा है, जहां पर चीन ने 3 गैस पाइपलाइन और दो बंदरगाहों के निर्माण में समझौता किया है। अरब देशों में स्थित ईरान जिस पर अमेरिका ने 2018 से न्यूक्लियर पर प्रतिबंध लगाया है, वहां चीन ने अगले 25 सालों में 400 मिलियन डॉलर इन्वेस्टमेंट का एग्रीमेंट किया है। एक तरफ जहां अमेरिका की छवि मध्य एशिया में कम होती जा रही है, वहीं दूसरी तरफ मध्य एशिया में चीन अपना प्रभाव बढ़ाता जा रहा है और खुद को एक लीडर के तौर पर देख रहा है। भारत के पड़ोसी पाकिस्तान से चीन के रिश्ते काफी अच्छे हैं। चीन ने पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह को 40 वर्षों के लिए अपने पास ले लिया है।

ग्वादर बंदरगाह का अपना महत्व इसलिए बढ़ जाता है, क्योंकि यह चीन के बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव'(BRI) के सबसे महत्वपूर्ण भाग चीन पाकिस्तान इकोनामिक कॉरिडोर (CPEC) के अंतर्गत आता है। यह रोड पाकिस्तान के ग्वादर से चीन के ‘शिनजियांग प्रांत’ तक जाएगा। यह भारत के गिलगित बालटिस्तान’ से गुजरेगा, जिसे पाकिस्तान ने अनधिकृत तरीके से कब्जाया हुआ है। इसके अलावा चीन मालदीव के फेदो फिनोलो, कुनावासी तथा माले द्वीप में वर्षों से सक्रिय रहा है।

Read: सीने पर खंजर जैसी लगती है अश्वेत फ्लायड की कहानी

Also Read: अरब मुल्क की नियति बन गया है खूनखराबा

मोहम्मद यामीन के राष्ट्रपति रहते हुए मालदीव का झुकाव चीन की तरफ ज्यादा हो गया था, लेकिन मोहम्मद अब्दुल्लाह सालेह के आने के बाद मालदीव में चीन की पकड़ कमजोर हुई है। श्रीलंका में राजपक्षे सरकार के आने के बाद श्रीलंका चीन की ऋण जाल में पूरी तरह फंस चुका है। चीन श्रीलंका के हंबनटोटा बंदरगाह को 99 वर्षों की लीज पर ले चुका है। इसके अलावा अभी हाल ही में श्रीलंका ने अपनी संसद में एक नया नियम पारित किया है, जिससे श्रीलंका के कोलंबो बंदरगाह पर चीन एक स्पेशल इकोनामिक जोन का निर्माण करेगा। साथ ही श्रीलंका भारत के नजदीक स्थित अपने दो द्वीपों पर चीन से दो न्यूक्लियर प्लांटों पर काम करवा रहा है। बांग्लादेश में भी चीन ने 2017 में एक समझौते पर हस्ताक्षर किया, जिसमें चीन ने बांग्लादेश में 3 न्यूक्लियर गैस फील्ड को खरीद लिया।

चीन बांग्लादेश में 220 मीटर लंबी गैस पाइपलाइन बनाने में मदद कर रहा है। बांग्लादेश के मोंगला बंदरगाह और चटगांव बंदरगाह को विकसित करने का एग्रीमेंट भी कर लिया है। साथ ही साथ चीन बांग्लादेश के तीस्ता नदी के मुद्दे को संभालने में मदद करेगा, जो कि काफी समय से बांग्लादेश और भारत के लिए समस्या बना है। इसमें 85% पैसे चीन लगा रहा है। इसके अलावा चीन बांग्लादेश में ढाका और चटगांव के बीच एक रेलवे का निर्माण कर रहा है।

म्यांमार में भी चीन कोको आईलैंड मे अलेक्जेंडर चैनल के पास एक मिलिट्री बेस बना रहा है। यह भारत के अंडमान के उत्तर में है। इसके अलावा नेपाल ने भी भारत से ज्यादा चीन पर भरोसा जताया है, क्योंकि चीन ने तिब्बत के ल्हासा से नेपाल के काठमांडू और लुंबिनी तक रेलवे लाइन बिछाने का समझौता किया है। लुंबिनी रेलवे लाइन भारत के सबसे ज्यादा है।

चीन को काउंटर करने के लिए भारत की भी रणनीति तैयार हो रही है। इसमें प्रमुख है द नेकलेस ऑफ डायमंड स्ट्रेटजी पॉलिसी। सन 2018 में इंडोनेशिया की मलक्का स्ट्रेट (मलक्का जलडमरूमध्य) स्थित शबांग बंदरगाह में भी भारत को मिलिट्री बेस की अनुमति मिल गई थी। भारत म्यांमार में कालादन परियोजना में मदद कर रहा है। चीन के हार्न ऑफ अफ्रीका, पर्शियन गल्फ और ग्वादर बंदरगाह के बदले भारत ने ओमान के दुगम बंदरगाह पर अपनी एयर फोर्स और मिलिट्री बेस के लिए 2018 में ही अपनी पहुंच बना ली है। मालदीव और सेशेल्स में भी भारत अपना मिलिट्री बेस तैयार कर रहा है। इसके साथ-साथ ईरान में चाबहार पोर्ट को भारत विकसित करने में मदद कर रहा है, लेकिन जिस हिसाब से परिस्थितियां बदल रही है, इसका फायदा भारत को कितना मिलेगा, यह तो समय बताएगा।

The Center for Media Analysis and Research Group (CMARG) is a center aimed at conducting in-depth studies and research on socio-political, national-international, environmental issues. It provides readers with in-depth knowledge of burning issues and encourages them to think deeply about them. On this platform, we will also give opportunities to the budding, bright and talented students to research and explore new avenues.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Top 13 Colleges in Northeast USA By Campus Land Area Top 13 Colleges by Size in Northeast USA- By Enrollment Top 13 Best Apps on How to Learn Japanese in Hawaii USA 13 Fastest Online Criminal Justice Degree Programs Universities of 2024 13 Best SOC 2 Compliance Training Vendors in USA 13 Top Medical Billing and Coding Online Courses & Colleges in USA 13 Unique Cyber Security Courses Online in USA 19 Lesser Known Online Bachelor’s Degree Courses in USA 13 Remarkable Polysomnography Certificate Program Colleges in USA 13 Highly-Regarded Online Graduate Programs in USA