देश में लोकतंत्र और शांति की बहाली की उम्मीद में एक दशक से भी ज्यादा वक्त से गृहयुद्ध की आग में झुलस रहे सीरिया में हिंसा का दौर थमने का नाम नहीं ले रहा है। कभी आंतरिक कट्टरता और खूनखराबा तो कभी बाहरी देशों के जंग भड़काऊ शह से देश युद्ध की आग में बुरी तरह जल रहा है। पिछले एक दशक में आलम यह है कि अब तक करीब चार लाख लोग मारे जा चुके हैं। करीब सवा दो लाख से ज्यादा लोग गायब हैं और उनका वर्षों से कुछ अता-पता नहींं है। मरने वालों में साढ़े बारह हजार से ज्यादा तो केवल बच्चे हैं। 21 लाख लोग स्थायी रूप से अपंग हो चुके हैं। शरणार्थियों के लिए संयुक्त राष्ट्र उच्चायुक्त के अनुसार 67 लाख लोग अपने ही देश में एक जगह से दूसरी जगह विस्थापित हो चुके हैं और करीब 56 लाख लोग विदेशों में जाकर बस गए हैं। यह देश की कुल आबादी के लगभग आधे लोग हैं।
इस बीच पूर्वी सीरिया में हाल ही में अमेरिकी सैनिकों पर रॉकेट हमला हुआ, जिसमें किसी के हताहत होने की खबर नहीं है। इसके एक दिन पहले ही अमेरिका ने इराक और सीरिया के बीच सीमा के निकट “ईरान समर्थित मिलिशिया समूहों द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले ठिकानों” को निशाना बनाकर हवाई हमले किए थे। ईराक की सेना ने अमेरिकी हमलों की निंदा की थी और मिलिशिया समूहों ने अमेरिका से बदला लेने की बात कही थी। पेंटागन के प्रेस सचिव जॉन किर्बी ने कहा था कि ये मिलीशिया समूह इराक में अमेरिकी बलों के खिलाफ मानवरहित यान से हमला करने के लिए इन ठिकानों का इस्तेमाल कर रहे थे। अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन के नेतृत्व वाले प्रशासन द्वारा इलाके में किया गया दूसरा हमला था।
सीरिया में चल रही जंग में कई ताकतें काम कर रही हैं, रूस और ईरान सरकार के समर्थन में हैं तो तुर्की, अमेरिका समेत पश्चिम के कई राष्ट्र और खाड़ी देश विद्रोहियों की मददगार बने हुए हैं। दूसरी तरफ ईरान और सऊदी अरब की आपस की लड़ाई भी इस आग को बढ़ावा देने में पीछे नहीं है। हर मुल्क जान रहा है कि हिंसा समस्या का अंत नहीं है, लेकिन दूसरों को इसमें झोंकने में वे पीछे नहीं रहना चाहते हैं।
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हालांकि भारी तबाही की यह तस्वीर केवल सीरिया की ही नहीं है। कमोवेश ऐसी स्थिति पूरे अरब मुल्क की है। जंग और खूनखराबा अरब मुल्क की नियति बन गई है। इसकी वजह से यह क्षेत्र हिंसा की आग में लगातार झुलस रहा है। अरब राष्ट्रवाद जातीयता और जिहाद पूरे अरब मुल्क में वर्षों से चली आ रही हिंसा की मुख्य वजह है।
खाड़ी युद्ध के समय से ही ईराक, कुवैत, लीबिया, मिस्र, बहरीन, जिबूती, लेबनान, यमन और फिलिस्तीन में संघर्ष जारी है। यह आग कब बुझेगी, यह कोई नहीं जानता, लेकिन इंसानियत की तबाही का इतिहास बनता जा रहा है।
Sanjay Dubey is Graduated from the University of Allahabad and Post Graduated from SHUATS in Mass Communication. He has served long in Print as well as Digital Media. He is a Researcher, Academician, and very passionate about Content and Features Writing on National, International, and Social Issues. Currently, he is working as a Digital Journalist in Jansatta.com (The Indian Express Group) at Noida in India. Sanjay is the Director of the Center for Media Analysis and Research Group (CMARG) and also a Convenor for the Apni Lekhan Mandali.