गोवर्धन दास बिन्नाणी
बीकानेर
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आम जनता को बैंकिंग प्रक्रिया में कई बार बड़ी दिक्कतों से गुजरना पड़ता है। बहुत से नियम ऐसे हैं, जो इतने जटिल हैं कि आम लोग उसे समझ ही नहीं पाते हैं। इस पर अक्सर आवाजें उठाई जाती हैं, लेकिन रिजर्व बैंक समेत कोई भी बैंक उसमें सुधार करता नहीं दिखता है।
हम सभी लोग पर्सनल लोन बैंकों से लेते हैं, चाहे वह मकान के लिए हो या फिर वाहन वगैरह के लिए, लेकिन बैंक जब हमें किसी भी प्रकार का लोन देता है, तो हमसे उस पर ब्याज लेता है, लेकिन एक रुपए भी खर्च नहीं करता है। जैसे ही आप लोन का आवेदन करते हैं, बैंक आपको जो प्रक्रिया बताता है उस प्रक्रिया को पूरा करने में दो तीन तरह के खर्चे होते हैं। उस संतुष्ट होने के बाद ही आपको लोन देगा।
हालांकि यह उचित है कि बैंक बैंक अपना खर्च आपसे ले, नहीं तो लोन के लिए अनावश्यक आवेदनों को रोकना मुश्किल होगा। लोन दे देने के बाद उन खर्चों में से बैंक कुछ भी आपको वापस नहीं देगा। सच यह है कि हमें लोन की जरूरत होती है तो बैंक को भी ब्याज की आय की जरूरत होती है।
आपको लोन लिए जैसे ही दो साल हो जाएंगे, उसके बाद बैंक बिना आपकी सहमति आपके खाते से कुछ रकम बतौर निरीक्षण शुल्क काट लेगा, जबकि अचल संपत्ति के भौतिक निपटान की संभावना रहती ही नहीं है और रेहन सही ढंग से किए जाने के बाद उसमें किसी भी प्रकार की छेड़छाड़ की भी आशंका नहीं रहती है।
इसके अलावा अचल संपत्ति के बाजार मूल्य का बीमा कराए बिना तो बैंक लोन देता ही नहीं है। इनके बाद भी निरीक्षण आवश्यक है तो यह शुल्क बैंक स्वयं वहन करे। वे हमसे ब्याज कमा रहे हैं।
आम तौर पर किसी भी तरह का निरीक्षण होता ही नहीं है। कोई निरीक्षण करने आएगा तो पहले ग्राहक को सूचना देगा यानी समय लेकर आएगा और इसके बाद रिपोर्ट पर मालिक का हस्ताक्षर भी लेगा। यदि बिना बताए निरीक्षण करता है तो जरूरत पड़ने पर उसका वीडियो दिखाएगा। जबकि ऐसा कुछ भी नहीं होता है, सिर्फ अपनी आय का एक जरिया बना लिया गया है।
बैंक का दायित्व है कि हर साल ब्याज और मूलधन का हस्ताक्षरित प्रमाण और पूरे वर्ष का उसका विवरण ग्राहक को भेजे। आयकर में इसकी जरूरत पड़ती है। जबकि हालत यह है कि इसे पाने के लिए बैंकों के चक्कर लगाने पड़ते हैं। लोकल ब्रांच को छोड़कर दूसरे ब्रांच से मांगने पर वे साफ मना कर देते हैं। अगर देंगे भी तो पूरे वर्ष के लोन खाता का विवरण दे देंगे, लेकिन ब्याज और मूलधन का प्रमाण तो लोकल ब्रांच से ही लेने के लिए कहेंगे।
हाल ही में एक विख्यात कॉर्पोरेट विश्लेषक ने भी इस पर चिंता जताई थी। जब वे परेशान हो सकते है तो आम लोगों की स्थिति समझी जा सकती है। आज के समय भी आम जनता और वरिष्ठ नागरिक नगद लेन-देन ही पसंद करते हैं। उसका मुख्य कारण एक तो इंटरनेट की समस्या व दूसरा महत्वपूर्ण बैंक खर्चे हैं।
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उदाहरण के तौर पर यदि विद्यालय में फीस देनी हो तो नेट बैंकिंग के माध्यम से देने पर जो भी खर्च शुल्क अदा करने वाले के एकाउंट से बैंक वाले स्वतः ही काट लेते हैं, वह अखरता है। जबकि हकीकत यह है कि बैंक और विद्यालय दोनों के खर्चों में बचत होती है। क्योंकि इसके लिए न तो बैंक किसी अतिरिक्त कर्मचारी को ड्यूटी पर लगाता है और न ही अलग से काउंटर बनाता है। विद्यालय काे भी बिना किसी अतिरिक्त मेहनत करने या रजिस्टर बनाने के काम हो जाता है। इससे साफ है कि बैंक ग्राहकों से बिना काम का पैसा वसूलता है।
अभिभावक इस मुद्दे पर कोई विरोध इसलिए नहीं कर पाते हैं कि कहीं उनके बच्चों को स्कूल वाले बेवजह परेशान न करें। अच्छा होगा कि इन मुद्दों पर सरकार आम जनता के हित में ध्यान दे और बैंकिंग सिस्टम में सुधार लाए।
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