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Sucheta Kripalani: सुचेता कृपलानी ने राष्ट्र सेवा के लिए ले लिया था संतान जन्म न देने का कठोर संकल्प

Sucheta Kripalani: व्याख्यान में मौजूद मुख्य अतिथि वरिष्ठ पत्रकार, लेखक और गांधी विचार के अध्येता अरविन्द मोहन, इतिहासकार भगवान सिंह और प्रबंध न्यासी अभय प्रताप।

Sucheta Kripalani: भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में कई लोगों ने बड़ा त्याग किया, लेकिन कुछ ऐसे भी नाम हैं जिनके काम को उतनी पहचान नहीं मिली, जितनी मिलनी चाहिए थी। सुचेता कृपलानी भी उन्हीं में से एक हैं। उनके बारे में अक्सर उनके प्रशासन, संगठन और राजनीति की चर्चा होती है, लेकिन उनकी असली ताकत उनका निजी त्याग था।

नई दिल्ली के हिंदी भवन में, उनकी 51वीं पुण्यतिथि पर हुए स्मृति व्याख्यान में मुख्य वक्ता वरिष्ठ पत्रकार और गांधीवादी लेखक अरविंद मोहन ने सुचेता जी के जीवन की उन बातों को सामने रखा, जिन पर इतिहास अक्सर कम ध्यान देता है, जबकि वही बातें उन्हें सबसे अलग बनाती हैं। उन्होंने बताया कि सुचेता जी ने राष्ट्रसेवा में पूरी तरह जुड़ने के लिए शादी के समय ही संतान न होने का फैसला लिया, ताकि स्वतंत्रता आंदोलन का काम कहीं से भी प्रभावित न हो। कार्यक्रम का आयोजन आचार्य कृपलानी मेमोरियल ट्रस्ट ने किया था। कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ इतिहासकार डॉ. भगवान सिंह ने की।

Sucheta Kripalani: व्यक्तिगत जीवन को राष्ट्र के लिए समर्पित करने की परंपरा

अपने संबोधन की शुरुआत करते हुए अरविंद मोहन ने कहा कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अनेक विवाहित महिलाओं ने राष्ट्र सेवा के लिए अपने निजी जीवन में अभूतपूर्व त्याग किए। उन्होंने उदाहरण के रूप में किशन पटनायक और उनकी पत्नी वाणी, दुर्गाबाई देशमुख, तथा चंद्रप्रभा सैकिया का उल्लेख करते हुए बताया कि सुचेता कृपलानी भी इसी प्रेरक परंपरा की प्रतिनिधि थीं।
उन्होंने कहा कि सुचेता जी का अपने पति आचार्य जेबी कृपलानी से विवाह कोई सामान्य विवाह नहीं था—यह राष्ट्रकार्य को सर्वोपरि रखने वाला संकल्प था। शादी के समय ही उन्होंने यह दृढ़ निर्णय लिया कि मातृत्व के दायित्व उनके राष्ट्रसेवा के कार्य को बाधित न करें, इसलिए वे संतान पैदा नहीं करेंगी।

Sucheta Kripalani: स्वतंत्रता आंदोलन से लेकर प्रशासन तक—हर जगह अग्रणी भूमिका

अरविंद मोहन ने कहा कि सुचेता कृपलानी का व्यक्तित्व गांधीवादी मूल्यों की ठोस भूमि पर विकसित हुआ। गांधीजी हजारों महिलाओं को आंदोलन में जोड़ते थे, लेकिन नेतृत्व की जिम्मेदारी कुछ चुनिंदा महिलाओं को ही सौंपते थे, और सुचेता जी उन्हीं में शामिल थीं।

उन्होंने बताया कि सुचेता जी ने

  • कांग्रेस संगठन संचालन,

  • नोआखाली में अकेले महीनों तक शांति मिशन,

  • विभाजन काल में महिलाओं की सुरक्षा और राहत कार्य,

  • और उत्तर प्रदेश की पहली महिला मुख्यमंत्री
    जैसे महत्वपूर्ण मोर्चों पर अभूतपूर्व साहस दिखाया।

नोआखाली के संदर्भ में उन्होंने कहा कि जब महिलाओं पर जबरन धर्मांतरण और हिंसा हो रही थी, उस भयावह माहौल में सुचेता जी अकेले खड़ी रहीं और प्रभावित महिलाओं को न्याय दिलाने में निर्णायक भूमिका निभाई।

विभाजनकाल का संकट—36,000 महिलाओं को सुरक्षित निकालने का ऐतिहासिक कार्य

मोहन ने 1947 के दिल्ली के हालात का वर्णन करते हुए कहा कि जब सरकारी तंत्र लगभग निष्क्रिय हो चुका था, तब सुचेता कृपलानी ने निजी संसाधनों से राहत शिविरों का संचालन किया।
उन्होंने यह भी बताया कि करीब 36,000 महिलाओं को हिंसा से निकालकर सुरक्षित स्थानों पर पहुँचाने का विशाल अभियान पूरी तरह सुचेता जी की इच्छाशक्ति और निरंतर परिश्रम का परिणाम था।

मुख्यमंत्री रहते हुए भी वही सादगी, वही अनुशासन

उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनने के बावजूद सुचेता जी ने किसी भी तरह के आडंबर से दूरी बनाए रखी। वे एक सामान्य सरकारी आवास में रहीं और प्रशासनिक सुधार, अनुशासन तथा पारदर्शिता को सर्वोच्च प्राथमिकता दी। उन्होंने कहा, “जो लोग उन्हें ‘गूंगी गुड़िया’ कहकर कम आंकते थे, उनके संकल्प और निर्णय क्षमता ने बार-बार सिद्ध किया कि वह भारतीय राजनीति की सबसे सशक्त महिला नेतृत्व में से एक थीं।”

व्यक्तिगत संघर्ष: दो हृदयाघात, पर सेवा का जुनून बरकरार

मोहन ने कहा कि सुचेता जी का जीवन केवल त्याग ही नहीं, अद्भुत आत्मबल का भी उदाहरण था। दो बार हृदयाघात झेलने के बाद भी उनका सार्वजनिक जीवन के प्रति समर्पण कम नहीं हुआ।
उन्होंने यह भी कहा कि सुचेता जी उन स्वतंत्रता सेनानियों की उस परंपरा से आती हैं जहाँ राष्ट्र को परिवार से ऊपर रखने का अभ्यास जीवन का हिस्सा था।

अध्यक्षीय उद्बोधन: “त्याग याद रखे बिना कोई राष्ट्र सुरक्षित नहीं”

डॉ. भगवान सिंह ने कहा कि सुचेता कृपलानी और आचार्य कृपलानी जैसे लोग केवल व्यक्ति नहीं, बल्कि तपस्वी परंपरा के वाहक थे।
उन्होंने दोनों के विवाह का भावनात्मक प्रसंग भी याद किया—जहाँ आयु, विचार और संघर्ष से ऊपर उठकर दोनों ने एक-दूसरे की जीवन दृष्टि को स्वीकारा। उन्होंने कहा, “हम सभी उनके विचारों और मूल्यों के वास्तविक वारिस हैं। उनका त्याग याद रखना ही हमारी जिम्मेदारी है।”

ट्रस्ट का विज़न: नई पीढ़ी को स्वतंत्रता संग्राम से जोड़ना

कार्यक्रम के प्रबंध न्यासी अभय प्रताप ने बताया कि ट्रस्ट अब हर वर्ष सुचेता कृपलानी और आचार्य कृपलानी दोनों की स्मृति में प्रेरणादायक और जन-उपयोगी कार्यक्रम आयोजित करेगा ताकि नई पीढ़ी स्वतंत्रता आंदोलन से सीख ले सके।
उन्होंने कार्यक्रम संचालन भी किया और सभी अतिथियों का आभार व्यक्त किया।

सांस्कृतिक प्रस्तुति और उपस्थिति

कार्यक्रम के प्रारंभ और अंत में उभरती युवा गायिका अनुश्री मिश्रा ने भजनों के माध्यम से वातावरण को भावपूर्ण बना दिया। इस अवसर पर तिब्बती संसद के निवर्तमान डिप्टी स्पीकर आचार्य येशी फ़ुन्स्टोक, समाजवादी नेता राजवीर पवार, विश्व युवक केंद्र के अजीत राय, जगदीश सिंह, डॉ. शशि शेखर सिंह, देवेंद्र राय, डॉ. राजीव रंजन गिरि, वरिष्ठ पत्रकार उमेश चतुर्वेदी, पत्रकार अमलेश राजू, प्रेम प्रकाश, महेश भाई, संजीव कुमार, हिमांशु कवि जैसे अनेक महत्वपूर्ण शिक्षाविद, सामाजिक कार्यकर्ता, शोधकर्ता, पत्रकार आदि उपस्थित रहे। राष्ट्रगान के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ।

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