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गांव के वैज्ञानिक, विदेश के प्रोफेसर डॉ. रविकांत पाठक

कुछ लोगों की संकल्प शक्ति मजबूत होती है तो कुछ लोगों को अपनी सोच को साकार करने तक नींद नहीं आती है। कुछ लोग स्वप्न देखते हैं तो कुछ लोग उसे सच में कर दिखाते हैं। गांव से शहर की दूरी कुछ लोगों को बहुत मायने रखती है तो कुछ अन्य लोगों को दूरी का पता ही नहीं चलता है। वरिष्ठ वैज्ञानिक और स्वीडन में प्रोफेसर डॉ. रविकांत पाठक का काम कुछ इसी तरह का है। उनकी सोच और कार्य से दुनिया चकित है। वह वैज्ञानिक हैं, विदेशों में रहते हैं लेकिन काम पिछड़े और बंजर जमीन पर करते हैं। उन्होंने उस भूमि पर हरियाली ला दी, जहां पानी नहीं था। जहां सूखा था, वहां उनके प्रयास से पपीता, मुसम्मी, केला, आम, आंवला, अमरूद, अनार जैसे फल बागों में पेड़ों पर लद गए हैं।

यूपी के बुंदेलखंड क्षेत्र के हमीरपुर जिले के छेड़ी बसायक गांव में जन्म लेने वाले डॉ. रविकांत पाठक न केवल एक वैज्ञानिक प्रतिभासंपन्न मेधावी उच्चशिक्षित प्रोफेसर हैं, बल्कि सोच और विचारों से सादगी, सहृदय, कोमल तथा देशकाल, परंपरा के प्रति अनुराग रखने वाले ग्राम्यभक्त भी हैं।

व्यवहार में ऐसे दुर्लभ गुणों वाले लोग काफी कम मिलते हैं। अगर ऐसा न होता तो गांव से निकलकर आईआईटी मुंबई तक पहुंचकर और फिर वहां से विदेश के हांगकांग, अमेरिका, स्वीडन तक अपनी शैक्षिक और बौद्धिक यात्रा के पड़ाव के दौरान विशुद्ध बंजर भूमि पर आकर जैविक खेती करने की बात सोचना भी असंभव जैसा लग सकता था, परन्तु डॉ. रविकांत पाठक ने इसे कर दिखाया।

उन्होंने जैविक खेती को अपना माध्यम बनाया और कुछ हद तक रेगिस्तान जैसे क्षेत्र को खेतिहर भूमि में बदल दिया। वह परिवर्तन की बात करते हैं तथा जल संरक्षण, पर्यावरण सुरक्षा, प्रदूषण मुक्त गांव, वनग्राम और संस्कारवान शिक्षा जैसे मुद्दों पर काम करते हैं।

खास बात यह है कि आज वह आर्थिक रूप से भले ही संपन्न हो गए हों, लेकिन अपने आरंभिक दिनों में वह काफी विपन्न स्थिति में जीवन गुजारे हैं। संसाधनों के अभाव में वह अपनी स्कूल फीस तक चुका पाने के लिए सक्षम नहीं थे, लेकिन मेहनत, श्रम और लक्ष्य के प्रति उनका समर्पण कहीं से भी कम नहीं था।

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इसी वजह से वह एक गांव से उठकर सीधे आईआईटी मुंबई और फिर विदेशों तक का सफर करने में सफल हुए। वर्तमान में वह गोथेनबर्ग विश्वविद्यालय स्वीडन में वरिष्ठ वैज्ञानिक और प्रोफेसर हैं। इसके अलावा वह समाज परिवर्तक, पर्यावरणविद और भारत उदय मिशन तथा सीड फाउंडेशन अमेरिका के संस्थापक हैं।

उन्होंने स्थिरता नवाचार और ज्ञान केंद्र के रूप में सफलतापूर्वक ग्रामीण अक्षय विकास के स्ववित्तपोषित पर्यावरणीय व्यवस्था युक्त कई परिसर गांवों में स्थापित किए हैं। ये परिसर आसपास के गांवों के लिए समग्र अक्षय विकास के प्रकाशस्तंभ है।

डॉ. रविकांत पाठक के अक्षय विकास के मॉडल में जैविक कृषि के साथ अन्य घटक जैसे खाद्य प्रसंस्करण, पैकेजिंग और विपणन आउटलेट, गौशाला, आहार वन, आरोग्य इकाई और गुरुकुल शामिल है। गुरुकुल छात्रों के आंतरिक विकास व उनमें राष्ट्रीय चरित्र व नेतृत्व गढ़ने के पाठ्यक्रम के साथ समग्र शिक्षा का एक आवासीय विद्यालय है।

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