कलह के बीच शेर बहादुर देउबा फिर बने नेपाल के पीएम

नेपाल के पीएम के रूप में शपथ लेने के बाद मीडिया से बात करते शेर बहादुर देउबा। (फोटो- पीटीआई)

नेपाल में राजनीतिक कलह के बीच उच्चतम न्यायालय के दखल के बाद नेपाली कांग्रेस के अध्यक्ष शेर बहादुर देउबा मंगलवार को आधिकारिक तौर पर पांचवीं बार देश के प्रधानमंत्री बने। राजधानी काठमांडू स्थित राष्ट्रपति दफ्तर ‘शीतल निवास’ में आयोजित शपथ ग्रहण समारोह में राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी ने 75 वर्षीय वरिष्ठ राजनीतिक नेता को पद एवं गोपनीयता की शपथ दिलाई।

नियुक्ति पत्र को लेकर हुए विवाद की वजह से शपथ ग्रहण समारोह रात करीब सवा आठ बजे आयोजित हुआ जिसे शुरू में शाम छह बजे (भारतीय समयानुसार पौने छह बजे) आयोजित होना था। उनके नियुक्त पत्र को लेकर विवाद पैदा हो गया था, जिस वजह से शपथ ग्रहण समारोह दो घंटे देरी से आयोजित हुआ। नेपाली कांग्रेस ने राष्ट्रपति के दफ्तर के उस बयान पर आपत्ति जताई जिसमें उस संवैधानिक प्रावधान का उल्लेख नहीं था जिसके तहत देउबा को प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया है।

उच्चतम न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश चोलेंद्र शमशेर राणा की अगुवाई वाली पांच सदस्यीय संवैधानिक पीठ ने अपने आदेश में कहा था कि देउबा को संविधान के अनुच्छेद 76(5) के तहत प्रधानमंत्री नियुक्त किया जाना चाहिए। अनुच्छेद 76 (5) के अनुसार, प्रतिनिधि सभा का कोई भी सदस्य जो यह आधार प्रस्तुत करता है कि वह सदन में विश्वास मत हासिल कर सकता है, उसे प्रधानमंत्री के रूप में नियुक्त किया जाता है। देउबा द्वारा एक नए नियुक्ति नोटिस पर जोर देने पर, राष्ट्रपति भंडारी ने उनकी शर्त पर सहमत होते हुए उन्हें संविधान के अनुच्छेद 76 (5) के तहत प्रधानमंत्री नियुक्त किया और अंतिम समय की अड़चन को दूर किया।

देउबा की नियुक्ति ने केपी शर्मा ओली के प्रधानमंत्री के रूप में साढ़े तीन साल के कार्यकाल पर विराम लगा दिया। ओली ने शपथ ग्रहण समारोह में हिस्सा नहीं लिया। देउबा की छोटी कैबिनेट के हिस्से के तौर पर चार नए मंत्रियों ने भी शपथ ली है जिनमें नेपाली कांग्रेस (नेकां) और सीपीएन-माओइस्ट सेंटर के दो-दो सदस्य शामिल हैं।

नेकां के बालकृष्ण खंड और ज्ञानेंद्र बहादुर कार्की ने क्रमश: गृह मंत्री और कानून तथा संसदीय कार्य के मंत्री के रूप में शपथ ली है। माओइस्ट सेंटर से पम्फा भुषाल और जनार्दन शर्मा को क्रमश: ऊर्जा मंत्री और वित्त मंत्री नियुक्त किया गया है।

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इस मौके पर प्रधान न्यायाधीश राणा, सीपीएन-माओइस्ट सेंटर के अध्यक्ष पुष्प कमल दहल ”प्रचंड” और सीपीएन-यूएमएल के वरिष्ठ नेता माधव कुमार नेपाल भी मौजूद थे।

यह पांचवीं बार है जब देउबा ने नेपाल के प्रधानमंत्री के तौर पर सत्ता में वापसी की है। इससे पूर्व देउबा चार बार- पहली दफा सितंबर 1995- मार्च 1997, दूसरी बार जुलाई 2001- अक्टूबर 2002, तीसरी बार जून 2004- फरवरी 2005 और चौथी बार जून 2017- फरवरी 2018 तक- प्रधानमंत्री रह चुके हैं।

इससे पहले 69 वर्षीय ओली ने शीर्ष अदालत पर विपक्षी पार्टियों के पक्ष में ‘जानबूझकर’ फैसला पारित करने का आरोप लगाया। ओली ने दावा किया कि अधिकांश लोग अब भी उनका समर्थन करते हैं लेकिन वह शीर्ष अदालत के आदेश को लागू करने के लिए पद छोड़ रहे हैं। उन्होंने कहा कि सरकार सफल रही क्योंकि वह देश भर में विकास कार्यों में तेजी लाई और कोविड -19 संकट को नियंत्रित करने के प्रयास किए।

उन्होंने कहा कि वह चाहेंगे कि देश में जल्द से जल्द आम चुनाव हों और उम्मीद जताई कि उनकी कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (यूनिफाइड मार्क्सिस्ट-लेनिनिस्ट) फिर से विजेता होगी। उन्होंने अपने पार्टी के चुनाव चिन्ह ‘सूरज’ का हवाला देते हुए कहा कि सूरज कुछ वक्त के लिए बादलों में छुप सकता है लेकिन यह फिर से निकलेगा।

संवैधानिक प्रावधान के तहत प्रधानमंत्री नियुक्त होने के बाद देउबा को 275 सदस्यीय प्रतिनिधि सभा में 30 दिनों के अंदर सदन में विश्वास मत हासिल करना होगा।

उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को प्रधानमंत्री ओली के 21 मई के संसद की प्रतिनिधि सभा को भंग करने के फैसले को रद्द कर दिया था और देउबा को प्रधानमंत्री नियुक्त करने का आदेश दिया था। प्रधान न्यायाधीश चोलेंद्र शमशेर राणा के नेतृत्व वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने कहा था कि प्रधानमंत्री के पद पर ओली का दावा असंवैधानिक है।

इस बीच नेपाल के अटॉर्नी जनरल रमेश बादल ने मंगलवार को इस्तीफा दे दिया। बादल ने नेपाल सरकार के कानूनी सलाहकार के तौर पर प्रतिनिधि सभा को बहाल करने के खिलाफ दलीलें दी थी जिस पर उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को इसको बहाल करने के लिए अंतरिम आदेश जारी किया।

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