जब से केंद्र में मोदी सरकार आई है तब से महंगाई एक बड़ा मुद्दा है। बेशक अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत के साथ संबंधों में सुधार हुआ है और भारतीय प्रधानमंत्री का नाम भी काफी बढ़ा है, लेकिन अर्थव्यवस्था के मामले में भारत की साख अच्छी नहीं मानी जा रही है। दूसरे राष्ट्रों की तुलना में भारत में महंगाई बेलगाम ही दिख रही है।
इन सबके बावजूद पिछले महीने खुदरा महंगाई दर के मोर्चे पर राहत रही और यह केंद्रीय बैंक आरबीआई के निर्धारित लक्ष्य के भीतर रही। पिछले महीने जुलाई में यह दर 5.59 फीसदी रही। आरबीआई (रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया) ने महंगाई का टारगेट 2-4 फीसदी का रखा है, लेकिन इसमें 2 फीसदी का मार्जिन भी है, यानी यह 6 फीसदी तक आरबीआई के टारगेट के भीतर ही है। सरकार ने 12 अगस्त को खुदरा महंगाई दर के आंकड़े जारी किए। जुलाई से पहले के दो महीनों में यह महंगाई दर आरबीआई के टारगेट से अधिक रही थी। खाने-पीने वाली चीजों के दाम कम होने और सप्लाई चेन की दिक्कतें कम होने से इसमें नरमी आई है।
वहीं दूसरी तरफ इंडस्ट्रियल प्रोडक्शन (आईआईपी) के आंकड़े उत्साहजनक नहीं रहे। जून के लिए जारी आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक जून 2021 में आईआईपी (इंडेक्स ऑफ इंडस्ट्रियल प्रोडक्शन) 13.6 फीसदी की दर से बढ़ा जो कि बेस इफेक्ट की वजह से अधिक है। पिछले साल जून 2020 में यह 16.6 फीसदी सिकुड़ गया था। आईआईपी अभी भी कोरोना से पहले के स्तर यानी जून 2019 के मुकाबले 5.2 फीसदी कम है। इससे इंडस्ट्रियल रिकवरी के अभी भी पटरी पर नहीं लौटने के संकेत मिल रहे हैं।
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ग्लोबल कमोडिटी प्राइस में बढ़ोतरी हो रही है और यूएस फेडरल रिजर्व ने भी इस साल के अंत तक ब्याज दरों को बढ़ाने के संकेत दिए हैं। ऐसे में इंफ्लेशन में गिरावट से आरबीआई पर दबाव कम होगा। आरबीआई महंगाई दर का अनुमान लगाकर महंगाई को इसी दायरे में रखने का अनुमान लगाता है। हालांकि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने गुरुवार को कहा कि अभी भी इकोनॉमी इस स्तर तक नहीं पहुंची है, जहां आरबीआई लिक्विडिटी सपोर्ट वापस ले सके। कीमतों में नरमी से आरबीआई पर दबाव कम हुआ है, लेकिन पिछले हफ्ते रेपो रेट को स्थिर रखते हुए इंफ्लेशन के अनुमान को बढ़ा दिया है. आरबीआई ने वित्त वर्ष 2021-22 के लिए सीपीआई इंफ्लेशन को 5.7 फीसदी पर प्रोजेक्ट किया है। अगले वित्त वर्ष 2022-23 के लिए आरबीआई ने 5.1 फीसदी की खुदरा महंगाई दर प्रोजेक्ट किया है।
कंज्यूमर नॉन-ड्यूरेबल जून में 4.5 फीसदी की दर से सिकुड़ गया। हालांकि यूज-बेस्ड कैटेगरीज की सालाना आधार पर ग्रोथ दोहरे अंकों में रही। जून 2019 के मुकाबले यह 4-62 फीसदी तक कम रहा। जून 2021 में कोरोना से पहले के स्तर के मुकाबले सबसे बुरा प्रदर्शन कैपिटल गु्डस और कंज्यूमर ड्यूरेबल्स में रही। विशेषज्ञों के मुताबिक अनलॉक प्रक्रिया के चलते जुलाई में कोल आउटपुट, इलेक्ट्रिसिटी डिमांड, जीएसटी ई-वे बिल्स जेनेरेशन, नॉन-ऑयल मर्चंडाइज एक्सपोर्ट्स और पेट्रोल कंजम्प्शन जैसे हाई फ्रीक्वेंसी इंडिकेटर्स जुलाई 2019 के मुकाबले अधिक हो चुके हैं।

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