उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि आंदोलन करना आपका अधिकार है, लेकिन रास्ता नहीं बंद कर सकते हैं। (Photo- ANI)
लोकतंत्र में समर्थन और विरोध आम बात होती है। और जनहित में विरोध के लिए आवाजें उठाना भी अच्छी बात है, लेकिन अपनी मांग के लिए लंबे समय तक सड़क बंद रखने से सिर्फ और सिर्फ जनता की परेशानी बढ़ाई जाती है, किसी समस्या का निदान नहीं होता है। इसको लेकर उच्चतम न्यायालय ने गुरुवार को किसान संगठनों से जवाब मांगा है।
: खास बातें :
नोएडा निवासी मोनिका अग्रवाल की एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने दिया आदेशयाचिका में किसानों के विरोध के कारण सड़क की नाकेबंदी से दैनिक आवागमन में देरी की शिकायत की गई थी
शीर्ष अदालत ने नोएडा निवासी मोनिका अग्रवाल की एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश दिया। याचिका में किसानों के विरोध के कारण सड़क की नाकेबंदी से दैनिक आवागमन में देरी की शिकायत की गई थी।
उच्चतम न्यायालय ने गुरुवार को कहा कि किसानों को विरोध करने का अधिकार है और तीन कृषि कानूनों के खिलाफ कानूनी चुनौती लंबित होने पर भी वह इसके खिलाफ नहीं हैं, लेकिन वे “अनिश्चितकाल के लिए” सड़कों को अवरुद्ध नहीं कर सकते। किसान संघों ने आरोप लगाया कि पुलिस सड़कों को अवरुद्ध करने के लिए जिम्मेदार है। केंद्र ने दावा किया कि विरोध के पीछे एक परोक्ष उद्देश्य है।
न्यायमूर्ति एस एस कौल और न्यायमूर्ति एम एम सुंदरेश की पीठ ने कहा कि कानूनी रूप से चुनौती लंबित है फिर भी न्यायालय विरोध के अधिकार के खिलाफ नहीं है लेकिन अंततः इसका कोई समाधान निकालना होगा। पीठ ने कहा, “किसानों को विरोध प्रदर्शन करने का अधिकार है लेकिन वे अनिश्चितकाल के लिए सड़क अवरुद्ध नहीं कर सकते। आप जिस तरीके से चाहें विरोध कर सकते हैं लेकिन सड़कों को इस तरह अवरुद्ध नहीं कर सकते। लोगों को सड़कों पर जाने का अधिकार है और वे इसे अवरुद्ध नहीं कर सकते।”
शीर्ष अदालत ने किसान यूनियनों से इस मुद्दे पर तीन सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया और मामले को सात दिसंबर को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध कर दिया। पीठ ने कहा कि उसके पहले के निर्देश के अनुसरण में केवल चार प्रतिवादी उसके सामने पेश हुए हैं।
राकेश टिकैत के नेतृत्व में दिल्ली- उत्तर प्रदेश की सीमा पर नवंबर 2020 से धरना दे रहे भारतीय किसान यूनियन (बीकेयू) और इसके समर्थकों ने गुरुवार को कहा कि प्रदर्शन स्थल पर अवरोधक दिल्ली पुलिस ने लगाए हैं न कि किसानों ने। बीकेयू के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत ने कहा कि गाजीपुर में प्रदर्शनकारियों ने राष्ट्रीय राजधानी की ओर जाने वाली एक सर्विस लेन को खाली कर दिया है, लेकिन दिल्ली पुलिस के अवरोधक अब भी वहां लगे हुए हैं।
टिकैत ने संवाददाताओं से कहा, “प्रदर्शनकारियों ने अपने टेंट हटा लिए हैं लेकिन सरकार और दिल्ली पुलिस की तरफ से लगाए गए अवरोधक अब भी वहां मौजूद हैं। अन्यथा सड़क खुली है। अगर आप देखें वहां केवल पुलिस द्वारा लगाए गए अवरोधक ही पाएंगे।”
बीकेयू के मीडिया प्रभारी धर्मेंद्र मलिक ने कहा, “टेंट एवं अन्य सामान हटाकर हमने दिखाया है कि दिल्ली जाने वाली सड़कों को किसानों ने जाम नहीं किया है।” उन्होंने कहा, “प्रदर्शन जारी रहेगा।” दिल्ली के सिंघू, टीकरी और गाजीपुर बार्डर पर नवंबर 2020 से किसान तीन कृषि कानूनों को वापस लेने और फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य बरकरार रखने की मांग करते हुए आंदोलन कर रहे हैं।
किसान संघों का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे ने कहा कि विरोध का अधिकार एक मौलिक अधिकार है। उन्होंने कहा कि इसी तरह के कई मामले शीर्ष अदालत की एक अन्य पीठ के समक्ष लंबित हैं और इस मामले को भी उनके साथ संलग्न किया जाना चाहिए और उसी पीठ को इसकी भी सुनवाई करनी चाहिए।
वरिष्ठ अधिवक्ता ने आरोप लगाया कि किसानों ने नहीं बल्कि पुलिस ने सड़कों को अवरुद्ध किया है और उन्होंने उन सड़कों पर छह बार यात्रा की है। दवे ने कहा कि नाकेबंदी हटाने का सरल उपाय यह है कि पुलिस किसानों को रामलीला मैदान और जंतर-मंतर पर जाने दे।
हालांकि, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि विरोध के पीछे एक परोक्ष उद्देश्य है और “कभी-कभी यह महसूस किया जाता है कि किसानों का विरोध किसी और कारण से तो नहीं है।” सॉलिसिटर जनरल ने कहा, “पिछली बार जब वे (गणतंत्र दिवस पर) आए थे, तो यह एक गंभीर मुद्दा बन गया था।”
READ: जिद का किसान आंदोलन, हिंसक रवैया से टूट रहा लोगों का सब्र
ALSO READ: तनातनी में किसान और सरकार, दोनों पक्ष बोले- न झुकेंगे, न हटेंगे
उनकी दलील पर प्रतिक्रिया देते हुए, दवे ने कहा, हालांकि, एक स्वतंत्र जांच से पता चलेगा कि गंभीर मुद्दे को गढ़ा गया था और लोगों को जमानत दी गई थी जिन्होंने कथित तौर पर लाल किले पर चढ़कर इस देश का अपमान किया था।
मेहता की इस दलील पर कि विरोध के पीछे एक परोक्ष उद्देश्य था, दवे ने कहा कि वह किसानों की वास्तविकता पर आरोप नहीं लगा सकते। उन्होंने कहा, “हम सभी जानते हैं कि कृषि कानूनों को पारित करने का उद्देश्य कॉर्पोरेट घरानों की मदद करना है।”
पीठ ने दवे से पूछा, “क्या यह आपका तर्क है कि सड़कों पर कब्जा किया जा सकता है, या आपकी यह दलील है कि पुलिस ने सड़कों को अवरुद्ध कर दिया है।” दवे ने कहा कि दिल्ली पुलिस द्वारा अनुचित व्यवस्था के कारण सड़कों को अवरुद्ध कर दिया गया है।
दवे ने पीठ को संबोधित करते हुए कहा, “न्यायिक अनुशासन की मांग है कि इस मामले को तीन न्यायाधीशों की पीठ को स्थानांतरित किया जाए।” इस पर प्रतिक्रिया देते हुए सॉलिसिटर जनरल ने कहा, “हम इस तरह की धौंस के आगे नहीं झुकेंगे।” शीर्ष अदालत ने दवे की इस दलील पर गौर किया कि वह नहीं चाहते कि यह पीठ मामले की सुनवाई करे और मामले को सुनवाई के लिए दूसरी पीठ को भेजा जाए।
न्यायालय नोएडा की निवासी मोनिका अग्रवाल की याचिका पर सुनवाई कर रहा था जिसमें कहा गया है कि किसान आंदोलन के कारण सड़क अवरुद्ध होने से आवाजाही में मुश्किल हो रही है। शीर्ष अदालत ने 23 अगस्त को यह भी कहा था कि केंद्र और दिल्ली के पड़ोसी राज्यों को किसानों के विरोध के चलते राष्ट्रीय राजधानी की सीमाओं पर सड़कों के अवरुद्ध होने का समाधान निकालना चाहिए।
The Center for Media Analysis and Research Group (CMARG) is a center aimed at conducting in-depth studies and research on socio-political, national-international, environmental issues. It provides readers with in-depth knowledge of burning issues and encourages them to think deeply about them. On this platform, we will also give opportunities to the budding, bright and talented students to research and explore new avenues.