यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री और राजस्थान के पूर्व राज्यपाल कल्याण सिंह। (फोटो सोर्स- टाइम्स ऑफ इंडिया)
यूपी की राजनीति से केंद्र की राजनीति की दिशा तय होती है। यानी यहां जिस पार्टी की सरकार होगी, उसका केंद्र सरकार में प्रभाव जरूर पड़ता है। भारत के केंद्रीय शासन में दक्षिण के बजाए उत्तर का वर्चस्व हमेशा से रहा है। यूपी के मुद्दे भी केंद्र के मुद्दे बनते हैं। लोकसभा के आम चुनाव में भी वही मुद्दे हावी रहते हैं, जो यूपी और उत्तर भारत के दूसरे प्रांतों में छाए रहते हैं।
अयोध्या में राम मंदिर आंदोलन शुरू से एक बड़ा मुद्दा रहा है। इसके साथ ही संप्रदाय के आधार पर मतभेद भी शुरू से नेताओं के लिए चुनावी जीत-हार का फार्मूला रहा है। ऐसे में राम मंदिर आंदोलन के बड़े नायकों में यूपी के पूर्व सीएम कल्याण सिंह की बड़ी भूमिका रही है। उन्होंने आंदोलन को न केवल दृढ़ता और मजबूती के साथ नेतृत्व किया बल्कि मंदिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त करने के लिए हर वह काम किया, जो ऐसा करने के लिए आवश्यक था। वह हमेशा निडर रहे हैं, साहस के साथ चुनौतियों का सामना करने में कभी पीछे नहीं रहे। तर्कों के साथ अपनी बात रखते थे और सभी के साथ समान भाव से मिलते थे।
भगवान राम के प्रति उनकी जबर्दस्त आस्था थी। इसका सबसे बड़ा प्रमाण यह था कि कारसेवकों पर गोली चलवाने के बजाय उन्होंने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना स्वीकार किया था। 1991 में पहली बार भाजपा को सत्ता तक पहुंचाने के बाद कल्याण सिंह शपथ ग्रहण समारोह के बाद सीधे अयोध्या पहुंचे थे। वहां उन्होंने संकल्प लिया था कि ‘कसम राम की खाते हैं, मंदिर यहीं बनाएंगे।’
6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में विवादित ढांचा गिराया गया था। इस मामले पर जब उनसे सवाल पूछे जाने लगे तो उन्होंने अपने अंदाज में कहा था कि ‘कोई अफसोस नहीं है।’ राम मंदिर को लेकर जब सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया तो कल्याण सिंह ने बयान जारी करते हुए कहा था कि अब विश्वास है कि मंदिर बनने जा रहा है, मैं चैन-शांति से मृत्यु का वरण कर सकता हूं। उन्होंने कहा था कि मेरी इच्छा है कि मेरे जीवनकाल में भव्य मंदिर पूरा हो जाए। हालांकि यह नहीं हो सका।
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भारतीय राजनीति में नरेंद्र मोदी से पहले कल्याण सिंह को ही हिंदू हृदय सम्राट की उपाधि मिली थी। सिंह ने भारतीय जनता पार्टी के लिए ‘राम’ नाम के जिस बीज को बोया था, उसे नरेंद्र मोदी ने विशाल वृक्ष में तब्दील कर दिया। उनके तेवरों का ही परिणाम था कि बीजेपी के प्रति लोगों की आस्था बढ़ती चली गई। भारतीय जनता पार्टी के हिंदुत्व चेहरे को लेकर पार्टी के सर्वोच्च नेताओं में उनकी गिनती होने लगी और 1991 में वह प्रदेश के मुखिया बन गए।
आज जब वह नहीं रहे तब राम भक्तों और अयोध्या आंदोलन से जुड़े हर उस व्यक्ति को उनकी कमी महसूस हो रही है। जिन लोगों ने राम मंदिर आंदोलन को देखा है, उन्हें यह अच्छी तरह समझ है कि कल्याण सिंह क्या रहे हैं। उनका जाना उन्हें हमेशा सताता रहेगा। उनकी यादें हमेशा आएंगी। कल्याण सिंह नहीं रहे, लेकिन मानव कल्याण का उनका कार्य कई पीढ़ियों तक लोगों के मन-मस्तिष्क में अमिट बना रहेगा।
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