सुप्रीम कोर्ट में शपथ लेने के बाद चारों महिला न्यायाधीश और प्रधान न्यायाधीश एन वी रमण (Photo Source: NDTV.COM)
देश में महिलाओं को बराबरी का अधिकार मिलने की बातें हमेशा से कही जा रही है। सरकार से लेकर संवैधानिक संस्थाओं तक में इसको लेकर आवाजें उठाई जाती रही हैं, लेकिन बराबरी का अधिकार अभी तक नहीं मिल सका। संसद जैसी जगह में भी महिलाओं की संख्या कुछ फीसदी तक ही ही। सरकार के कैबिनेट में भी पुरुषों के बराबर महिलाएं नहीं हैं। अब जब उच्चतम न्यायालय में चार महिला न्यायाधीशों की नियुक्ति हुई तो प्रधान न्यायाधीश ने भी माना कि बड़ी मुश्किल से कुछ महिला न्यायाधीशों को यहां जगह मिल पाई है।
न्यायपालिका में महिलाओं के कम प्रतिनिधित्व पर चिंता जताते हुए प्रधान न्यायाधीश एन वी रमण ने कहा कि उच्चतम न्यायालय ने ‘बड़ी कठिनाई’ के साथ अपनी पीठ में महिलाओं की महज 11 प्रतिशत नुमाइंदगी प्राप्त की है। शीर्ष अदालत में इस समय 33 न्यायाधीशों में चार महिला न्यायाधीश हैं।
वकालत के पेशे में अधिकतर महिला अधिवक्ताओं के संघर्ष को उजागर करते हुए प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि स्वतंत्रता के 75 साल बाद भी हर स्तर पर महिलाओं के कम से कम 50 प्रतिशत प्रतिनिधित्व की अपेक्षा होती है।
बार काउंसिल ऑफ इंडिया द्वारा न्यायमूर्ति रमण को सम्मानित करने के लिए आयोजित समारोह में उन्होंने कहा, “आजादी के 75 साल बाद भी अपेक्षा होती है कि हर स्तर पर महिलाओं का कम से कम 50 प्रतिशत प्रतिनिधित्व हो, लेकिन मैं यहां बताना चाहूंगा कि हमने बहुत मुश्किल से उच्चतम न्यायालय की पीठ में महिलाओं के महज 11 प्रतिशत प्रतिनिधित्व को प्राप्त किया है।”
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उन्होंने कहा कि कुछ राज्य आरक्षण नीति की वजह से उच्च प्रतिनिधित्व की बात कर सकते हैं लेकिन वास्तविकता यह है कि वकालत के पेशे में अब भी महिलाओं का स्वागत किया जाना है।
न्यायालय में इस समय चार महिला न्यायाधीश- न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी, न्यायमूर्ति हिमा कोहली, न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना और न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी हैं। शीर्ष अदालत में 31 अगस्त को तब इतिहास बना जब पहली बार तीन महिलाओं समेत नौ न्यायाधीशों ने एक साथ पद की शपथ ली। न्यायमूर्ति नागरत्ना सितंबर 2027 में प्रधान न्यायाधीश बनने वाली पहली महिला न्यायाधीश हो सकती हैं।
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