देश की राजनीतिक दशा अब किस करवट घूम रही है, यह बता पाना मुश्किल होता जा रहा है। राजनेताओं की विश्वनीयता संदिग्ध हो गई है, तो वहीं देश के युवाओं का भरोसा भी टूट रहा है। लोकतंत्र के पहरुओं का आकर्षण टूट रहा है तो समाज के एक वर्ग में अपने भविष्य को लेकर खलबली भी मची हुई है। यह खलबली अनायास नहीं है, इसके पीछे भी तर्क की एक लंबी बहस है। दुनिया में सबसे बड़े प्रजातंत्र के हम स्वयंभू हिमायती हैं और उस प्रजातंत्र में रोज टूटतीं व्यवस्था के साक्षी भी हैं। इससे हम अपनी ही व्यवस्था के खंडन-मंडन में लगे हैं।
पांच राज्यों में चुनाव चल रहा है। इसमें प्रतिभाग करने वाले सभी दल एक-दूसरे की कमियों और खामियों को जनता के सामने लाने के लिए जिस तरह गालियाें और अपशब्दों का प्रयोग कर रहे हैं और आचार संहिता का धड़ल्ले से उल्लंघन कर रहे हैं, वह नई पीढ़ी को प्रजातंत्र की सर्वश्रेष्ठता को स्वीकारने में हिचक होने का माहौल उपलब्ध कराने जैसा है। सत्ता हथियाने के लिए साम, दाम, दंड और भेद का खुलकर उपयोग विपक्ष को पराजित करने के लिए नहीं, बल्कि खुद को अपराजेय साबित करने के लिए दूसरों को दहशत में डालने में किया जा रहा है। इतिहास में विद्रूपताओं की जैसी घटनाएं अतीत के पन्नों पर दर्ज हैं, अब वे आज के हालात देखकर शायद सामान्य लगती है।
वोट के लिए हत्या करना, कानून को तोड़ना, वैधानिक परंपरा को भुला देना आदि ऐसी बातें हैं, जो हमें यह समझाती हैं कि कुछ भी स्थायी नहीं है। संविधान की मर्यादा तभी तक है, जब तक हम उसके विरुद्ध नहीं जा रहे हैं, लेकिन जहां भी हमें लाभ दिखेगा, वहां हम उस मर्यादा को भुलाने में देर नहीं लगाते हैं।
इसे रोजाना देखा जा सकता है। रोजाना अनुभव किया जा सकता है। रोजाना सुना जा सकता है। लेकिन हम फिर भी खुद को इस बात का श्रेय देते हैं कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के हम पहरुए हैं। यह हमारी सोच है या सर्व स्वीकार्य कथन है, पता नहीं है।
Sanjay Dubey is Graduated from the University of Allahabad and Post Graduated from SHUATS in Mass Communication. He has served long in Print as well as Digital Media. He is a Researcher, Academician, and very passionate about Content and Features Writing on National, International, and Social Issues. Currently, he is working as a Digital Journalist in Jansatta.com (The Indian Express Group) at Noida in India. Sanjay is the Director of the Center for Media Analysis and Research Group (CMARG) and also a Convenor for the Apni Lekhan Mandali.