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सियासी मल्लयुद्ध में कांग्रेसियों के दो-दो हाथ करने से पंजाब ‘हाथ’ से न निकल जाए

नवजोत सिंह सिद्धू (बाएं) और चरणजीत सिंह चन्नी (दाएं)| (पीटीआई फाइल फोटो)

अगले कुछ महीनों में यूपी, पंजाब समेत पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं। सभी दलों के नेता जी जान से अपनी रणनीतियां बनाने और रैलियां करने में जुट गए हैं। पंजाब में कांग्रेस की सरकार है। किसान आंदोलन के समय लगा कि वहां का माहौल केंद्र की मोदी सरकार के खिलाफ जा रहा है। किसान मोदी सरकार से नाराज है, लिहाजा कांग्रेस सरकार मजबूत बनी रहेगी और दोबारा सत्ता में आएगी। लेकिन ऐसा लगता है कि कांग्रेस अपने लिए अपना रास्ता खुद ही बंद करने में लगी हुई है।

जब पार्टी नेताओं को राज्य में जनता के पास जाकर उनसे उनकी समस्याओं के निदान की बात करनी चाहिए, उनके दुख-दर्द को सुनना चाहिए, अवसर का लाभ उठाना चाहिए, तब पार्टी के नेता आपस में ही दो-दो हाथ करके एक-दूसरे को सियासी तौर पर निपटने-निपटाने में लगे हुए हैं। पहले जमीन को आसमान बना देने जैसी बातें करने वाले नवजोत सिंह सिद्धू की जिद के चलते पार्टी ने अनुभवी नेता कैप्टन अमरिंदर सिंह को खोया, अब वही सिद्धू चरणजीत सिंह चन्नी को सीएम बनवाने के बाद उनकी ही नींद उड़ाने में लग गए हैं।

: खास बातें :
पंजाब विधानसभा चुनाव 2022 के पहले सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी के नेताओं में सियासी तौर पर एक-दूसरे को निपटने-निपटाने का फायदा उठाने की तरफ भाजपा और आम आदमी पार्टी की सीधी नजर है 

प्रदेश अध्यक्ष सिद्धू की खुद को सीएम का चेहरा के तौर पर घोषित करने की जिद से पार्टी में इस कदर असंतोष है कि उन्हीं के कई सहयोगी उनसे परेशान नजर आ रहे हैं 

सिद्धू के साथ दिक्कत यह है कि या तो उनकी सुनिए या फिर वह किसी की भी न सुनने देंगे। सिद्धू को उम्मीद थी कि पार्टी पंजाब चुनाव से पहले उन्हें सीएम का उम्मीदवार घोषित करके मैदान में उतरेगी, लेकिन पार्टी ने साफ कर दिया है कि वह ऐसा करने नहीं जा रही है। ऐसे में सिद्धू फिर बेचैन हो गए हैं। पार्टी के कई नेता मीडिया में बातें करते हुए कह रहे हैं कि “सिद्धू तब तक पार्टी के लिए प्रचार नहीं करेंगे जब तक कि उन्हें सीएम उम्मीदवार घोषित नहीं किया जाता है।”

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चरणजीत सिंह चन्नी सीएम बनने से पहले सिद्धू के करीबी माने जाते थे, लेकिन सिद्धू के रवैए से वे भी थक गए हैं। पार्टी के एक नेता ने कहा कि वह इस बात से स्तब्ध हैं कि वर्तमान में लड़ाई राज्य में कांग्रेस को सत्ता में बनाए रखने के लिए नहीं है, बल्कि इस बारे में है कि मुख्यमंत्री कौन बनता है।

इस बीच कैबिनेट मंत्री राणा गुरजीत सिंह ने राज्य इकाई के लिए मुसीबत और बढ़ाते हुए गुरुवार को सिद्धू को निशाने पर ले लिया। उन्होंने कहा, “मैं उन्हें चुनौती देता हूं कि मुझे पार्टी का टिकट न दें। मैं निर्दलीय के रूप में जीतकर दिखा दूंगा।” इससे अब ऐसा लग रहा है कि पार्टी के अंदर कई वर्ग बन गए हैं।

इधर, कांग्रेस पार्टी के इस खींचतान की तरफ भाजपा और आम आदमी पार्टी की सीधी नजर है। कुछ समय पहले तक पंजाब में भाजपा को किसान आंदोलन की वजह से उपजी नाराजगी सत्ता से कोसों दूर रहने की झलक दिखला रही थी, लेकिन कांग्रेस पार्टी के स्थानीय नेताओं के दंगल से भाजपा को एक और राज्य लपकने का सीधा मौका उपलब्ध करा रहा है। सोने पर सुहागा यह है कि अब किसान आंदोलन भी खत्म हो चुका है और चुनाव आते-आते वह पुराना मुद्दा हो चुका होगा। साथ ही अमरिंदर सिंह के साथ गठबंधन से उनका अनुभव और राज्य में उनकी पकड़ का भी फायदा मिलेगा।

कुछ ऐसा ही हाल आम आदमी पार्टी का है। वह राज्य की मुख्य विपक्षी पार्टी है और दिल्ली में केजरीवाल सरकार ने बिजली पानी मुफ्त देकर तथा शिक्षा और स्वास्थ्य व्यवस्था में नए कीर्तिमान गढ़कर जो छवि बनाई है, वही वादे पंजाब के लिए करके पंजाबियों के दिलों में जगह बनाने की उम्मीद के साथ दिन-रात एक किए बैठी है।

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