यूपी के बुंदेलखंड में पानी का संकट हमेशा से रहा है। यहां पर पानी नहीं होने की वजह से खेती-किसानी कमजोर रही और फिर बेरोजगारी के चलते युवाओं का दूसरे शहरों की ओर पलायन भी होता रहा है। लेकिन 25 साल पहले कुछ लोगों के संकल्प से शुरू किया गया पराक्रम का नतीजा यह है कि आज बुंदेलखंड में सूखी जमीनों पर जगह-जगह तालाब बन गए हैं, खेतों में हरियाली है और बाहर गए युवा अब घरों की ओर लौट रहे हैं।
यह सब जखनी जल संरक्षण विधि यानी खेत पर मेड़, मेड़ पर पेड़ विधि से हुआ। अब केंद्र और राज्य की सरकारों तथा सरकारी एजेंसियों ने भी इसको न केवल स्वीकारा है, बल्कि दूसरी जगह के लोगों को भी इस विधि को अपनाने की सलाह दी है।
इसमें किसी भी तरह के शिक्षण-प्रशिक्षण की आवश्यकता नहीं है। कोई भी किसान इसे अपने खेतों में कर सकता है। इस विधि से पुराने जमाने से किसान अपने खेतों में वर्षा जल को रोकते आ रहे हैं। यह हमारे पुरखों की प्राचीनतम जल संरक्षण विधि है, जो अब जखनी के नाम से देश-प्रदेश में जानी जाती है। जखनी के किसानों ने बगैर सरकार की सहायता के परंपरागत तरीके से समुदाय के आधार पर अपने गांव को जल संपन्न किया है। बेरोजगारी दूर की, युवाओं का पलायन रोका। यह अपने आप में मिसाल है।
ऐसे प्रयोग को उत्तर प्रदेश की 58000 ग्राम पंचायतों में लागू किया जाना चाहिए। योजना में मनरेगा के माध्यम से किसानों के खेतों में मेड़बंदी हो, मेड़ों पर पेड़ लगे, जिसे जल संकट के समाधान के साथ पर्यावरण भी शुद्ध होगा। किसानों को अतिरिक्त आय होगी। भारत सरकार राज्य सरकारें ग्राम पंचायत के माध्यम से वर्षा जल को रोकने के लिए मेड़बंदी के प्रयोग को मान्यता दे रही है।
जखनी के जल संरक्षण प्रयोग को सोशल मीडिया, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, प्रिंट मीडिया, भारत सरकार, नीति आयोग, जल शक्ति मंत्रालय ने सराहा है। जखनी की पहचान देश के पहले जल ग्राम के रूप में है। इसी गांव के किसानों ने जल ग्राम मेड़बंदी यज्ञ अभियान को पूरे बुंदेलखंड में किसानों के साथ मिलकर आगे बढ़ाया है।
भारत सरकार के जल शक्ति मंत्रालय और नीति आयोग ने भी जल संरक्षण के जखनी मॉडल को सराहा तथा खेत में मेड़ और मेड़ पर पेड़ को उपयुक्त तरीका बताया।
इसे देश के हजारों किसानों ने स्वीकार किया है। मेड़बंदी से बुंदेलखंड के किसानों ने वर्षा जल को रोका है। खाद्यान्न उत्पादन बढ़ा है, भूजल स्तर ऊपर आया है। खुद माइनर इरीगेशन डिपार्टमेंट ने ऐसी रिपोर्ट दी है।
जखनी के किसान पिछले 25 वर्षों से जलयोद्धा उमा शंकर पांडे के नेतृत्व में समुदाय के आधार पर खेत पर मेड़ मेड़ पर पेड़ जल संरक्षण अभियान चला रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 25 सितंबर को अपने मन की बात में इसका उल्लेख किया था। नीति आयोग ने भी इस परंपरागत जल संरक्षण मॉडल को उपयुक्त माना।
बुंदेलखंड के बांदा जिले के जखनी गांव के लोगों ने अपना भरोसा जगाया। अपनी परंपरागत खेती-किसानी का सहारा लिया और बिना किसी सरकारी सहायता, संसाधन के गांव के बच्चे, बुजुर्ग, जवान स्त्री-पुरुष सभी ने गांव के जल देव को जगाया।
दृढ़ संकल्पित उमाशंकर पांडे के नेतृत्व मे सारा गांव ने अपने लिए नहीं, अपने गांव के लिए, अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिए सामुदायिक आधार पर फावडे़, कस्सी, डलिया, टोकरा लेकर उमड़ पड़ा और परंपरागत तरीके से, बिना किसी आधुनिक मशीनी तकनीकी के पानी रोकने का बंदोबस्त किया।
सबको एक ही चिंता कि पानी बनाया नहीं जा सकता, उगाया नहीं जा सकता लेकिन प्रकृति द्वारा दिए पानी को रोककर पानी की फसल को बोया जा सकता है, संरक्षण से पानी बचाया जा सकता है। पूरे गांव ने खेतों की मेड़बंदी की और पानी की फसल बोने का पुरखों का मन्त्र खेत पर मेड़, मेड़ पर पेड़ सिद्ध किया।
The Center for Media Analysis and Research Group (CMARG) is a center aimed at conducting in-depth studies and research on socio-political, national-international, environmental issues. It provides readers with in-depth knowledge of burning issues and encourages them to think deeply about them. On this platform, we will also give opportunities to the budding, bright and talented students to research and explore new avenues.
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