Water Revolution: जल योद्धा उमाशंकर पांडे का 3 दशक का संघर्ष: बांदा की धरती पर जल क्रांति का शानदार युग!

Water Revolution: पेयजल संकट आज एक बड़ी वैश्विक समस्या बन चुका है, जो न केवल विकासशील देशों बल्कि विकसित देशों को भी प्रभावित कर रहा है। भारत में, जल की कमी एक गंभीर चुनौती है, और यह स्थिति उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र में विशेष रूप से चिंता का विषय रही है। कभी वीरता के लिए प्रसिद्ध इस क्षेत्र ने हाल के दशकों में प्यास, भूख, सूखा और गरीबी का सामना किया है। लेकिन अब इस क्षेत्र की तस्वीर बदल रही है।

बांदा जिले को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा “जल संपन्न जिला” के राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। यह पुरस्कार केवल एक मान्यता नहीं है, बल्कि उन प्रयासों की पुष्टि है जो इस क्षेत्र ने जल संकट से निपटने के लिए किए हैं।

Water Revolution: जल संरक्षण के क्षेत्र में पेश की मिसाल

लेकिन सवाल यह है कि बांदा ने यह सफलता कैसे प्राप्त की? इस सवाल का जवाब है जल योद्धा उमाशंकर पांडे। उन्होंने बिना किसी सरकारी सहायता और बिना किसी प्रचार के जल संरक्षण के क्षेत्र में एक मिसाल पेश की है। उनकी प्रेरणा से क्षेत्र की जनता जागरूक हुई है और उन्होंने जल संरक्षण को एक जन आंदोलन का रूप दिया है। पांडे का मानना है कि जब मानव समाज एकजुट होता है, तो वह किसी भी चुनौती का सामना कर सकता है। उन्होंने अपने अभियान को इस तरह से आगे बढ़ाया कि उन्होंने स्थानीय किसानों को अपनी परंपरागत विधियों का उपयोग करने के लिए प्रेरित किया, जिससे वे वर्षा के पानी को रोकने में सफल रहे।

Water Revolution: “मन की बात” कार्यक्रम में पीएम मोदी ने भी किया था जिक्र

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी बांदा के जल संरक्षण प्रयासों की सराहना की है। उन्होंने अपने “मन की बात” कार्यक्रम में कई बार बांदा का जिक्र किया और जनभागीदारी को आवश्यक बताया। मोदी जी का मानना है कि जब लोग खुद आगे बढ़कर काम करते हैं, तब ही बड़े स्तर पर बदलाव संभव हैं। इस दिशा में बांदा में राज्य, समाज और सरकार के संयुक्त प्रयासों से जल संरक्षण का एक उत्कृष्ट मॉडल विकसित किया गया है।

पिछले दस वर्षों में, विभिन्न सरकारी योजनाओं के तहत बुंदेलखंड में 10,000 से अधिक तालाबों का निर्माण किया गया है, जिसे “खेत तालाब योजना” कहा जाता है। इस योजना के अंतर्गत, पुरखों की विधि “खेत पर मेड़, मेड़ पर पेड़” को अपनाते हुए, 1,00,000 से अधिक किसानों ने अपने खेतों में वर्षा का पानी रोकने का प्रयास किया है। इसके सकारात्मक परिणाम देखने को मिले हैं; बांदा मंडल ने उत्तर प्रदेश में गेहूं उत्पादन में रिकॉर्ड स्थापित किया है, और बासमती धान की पैदावार में भी महत्वपूर्ण वृद्धि हुई है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि जल संरक्षण न केवल आवश्यक है, बल्कि फायदेमंद भी है।

इस दिशा में सरकारी पहल भी महत्वपूर्ण रही है। प्रधानमंत्री मोदी ने केंद्रीय जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत को बांदा भेजा, जहां जल जीवन मिशन की खटान योजना की शुरुआत की गई। यह योजना एशिया की सबसे बड़ी परियोजनाओं में से एक मानी जाती है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जल संकट का सामुदायिक समाधान खोजने के निर्देश दिए हैं। इन प्रयासों के फलस्वरूप, बांदा जिले में भूजल स्तर में सुधार हुआ है और पलायन की समस्या में भी कमी आई है।

उमाशंकर पांडे की मेहनत और लगन ने उन्हें “जल योद्धा” का खिताब दिलाया। उन्होंने अपनी मेहनत से समाज को जल संरक्षण के प्रति जागरूक किया और बिना किसी सरकारी सहायता के इस दिशा में काम किया। उनके नारे “खेत पर मेड़ और मेड़ पर पेड़” ने पूरे बुंदेलखंड में एक नई जागरूकता फैलाई है। इसके कारण, उन्होंने न केवल अपने क्षेत्र के लोगों को प्रेरित किया, बल्कि अन्य जिलों के लोगों के लिए भी एक प्रेरणास्रोत बने।

बांदा के जल संरक्षण के प्रयासों ने एक नई दिशा दिखाई है। यहां की जनता अब जल संकट को चुनौती देने के लिए एकजुट हो रही है, और यह साबित कर रही है कि जब समुदाय एकजुट होता है, तो असंभव भी संभव हो जाता है। अभी भी पूरी सफलता प्राप्त नहीं हुई है, लेकिन बांदा की यह जल क्रांति एक उम्मीद की किरण है, जो अन्य जिलों के लिए भी प्रेरणा का स्रोत बन सकती है।

प्रधानमंत्री मोदी ने बुंदेलखंड की धरती पर चुनाव के दौरान जल संकट के समाधान के लिए जल शक्ति मंत्रालय की स्थापना का संकल्प व्यक्त किया था। बाद में, इसी बुंदेलखंड के झांसी में उन्होंने इस मंत्रालय की स्थापना की घोषणा भी की। यह दर्शाता है कि पानी के प्रति उनकी गहरी सोच और ध्यान है।

अगर उमाशंकर पांडे जैसे जल योद्धा और इसी तरह के प्रयास जारी रहे, तो निश्चित रूप से बांदा जिले का भविष्य उज्जवल होगा। पानी की इस जंग में समुदाय के सहयोग से जो परिवर्तन आए हैं, वे न केवल बांदा के लिए, बल्कि पूरे देश के लिए एक महत्वपूर्ण उदाहरण बन सकते हैं। इस प्रकार, जल संरक्षण की दिशा में उठाए गए कदम पूरे भारत में जल संकट के समाधान के लिए एक नई उम्मीद का संचार करते हैं।

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