Sharda Sinha Death: लोक गायिका शारदा सिन्हा का मंगलवार को दिल्ली के एम्स में निधन हो गया। उनके जाने के साथ ही भारतीय संगीत जगत ने एक अनमोल रत्न खो दिया। वह मल्टीपल मायलोमा जैसी गंभीर बीमारी से जूझ रही थीं। 72 साल की उम्र में वह दुनिया से विदा हो गईं, लेकिन अपनी मधुर आवाज की अमिट छाप सबके दिलों में छोड़ गईं। उनके परिवार में उनकी बेटी वंदना और बेटा अंशुमान हैं। छठ गीतों से दुनिया को मोहित करने वाली शारदा सिन्हा का निधन छठ पर्व पर ही हुआ। वह ‘नहाय-खाय’ के दिन अंतिम सांस लीं।
Sharda Sinha Death: छठ, शादियों और विभिन्न अनुष्ठानों के लिए गाए गीत
शारदा सिन्हा को “बिहार कोकिला” के नाम से जाना जाता था। उन्होंने अपनी गायकी से बिहार की सांस्कृतिक पहचान को विश्व स्तर पर स्थापित किया। उनकी आवाज में छठ, शादियों और विभिन्न अनुष्ठानों के लिए गाए जाने वाले गीतों की एक विशेष मिठास थी। फिल्म “मैंने प्यार किया” और “गैंग्स ऑफ वासेपुर” में गाए गए उनके गीतों ने उन्हें सिर्फ लोक संगीत में नहीं, बल्कि बॉलीवुड में भी पहचान दिलाई।
दिल्ली के ILBS अस्पताल में भर्ती होने के बाद हालत में सुधार नहीं होने पर एम्स में स्थानांतरित किया गया। मंगलवार की सुबह जब उनके बेटे के पास प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का फोन आया, तब देश के प्रमुख नेता ने उनकी तबियत के बारे में जानना चाहा। यह उस स्नेह और सम्मान का प्रतीक था जो शारदा सिन्हा के प्रति था। वह एक ऐसी कलाकार थीं, जिसने अपने जीवन के हर मोड़ पर संगीत की कला को संजोया।
Sharda Sinha Death: बेगम अख्तर ने की थी उनकी गायकी की सराहना
सिन्हा का संगीत सफर 1971 में लखनऊ में एचएमवी टैलेंट हंट में माइक पकड़ने के साथ शुरू हुआ, जहां बेगम अख्तर की मौजूदगी में उनकी गायकी की सराहना की गई। द इंडियन एक्सप्रेस अखबार को दिए एक इंटरव्यू में उन्होंने बताया था कि उस समय उन्हें बेगम अख्तर ने कहा था, “अगर आप अच्छा रियाज करती रहेंगी, तो आप बहुत आगे बढ़ेंगी।” और वास्तव में उनकी मेहनत और लगन ने उन्हें 1,500 से ज्यादा गाने गाने की क्षमता दी, जिसमें विद्यापति की कविताएं और महेंद्र मिसिर जैसे लेखकों के गीत शामिल थे।
Sharda Sinha Death: शास्त्रीय संगीत की गहरी समझ से नाम कमाया
शारदा सिन्हा ने अपने करियर में विवाह और छठ गीतों से लोकप्रियता प्राप्त की, लेकिन विद्यापति जैसे शास्त्रीय गीतों से भी वे शास्त्रीय संगीत के पारखी लोगों का दिल जीतने में सफल रहीं। हालांकि उन्होंने बॉलीवुड गाने गाने में बहुत चयनात्मकता बरतीं। पंडित राम चंद्र झा और रघु झा जैसे गुरु से उन्होंने संगीत की बारीकियां सीखी, और उनके शास्त्रीय संगीत की गहरी समझ ने उन्हें लोक संगीत की दुनिया में एक अलग स्थान दिलाया। उन्होंने ग्वालियर घराने के सीताराम हरि दांडेकर से संगीत और किराना घराने की पन्ना देवी से ठुमरी दादरा भी सीखा।
सिन्हा ने उस समय अपना नाम बनाया जब विंध्यवासिनी देवी अपने स्टेज शो और आकाशवाणी पर प्रस्तुतियों के साथ बिहार के लोक संगीत परिदृश्य पर छाई हुई थीं। अपनी मेहनत और आवाज के दम पर शारदा सिन्हा ने संगीत की दुनिया में एक अलग और शीर्ष स्थान बनाया, जहां तक किसी और को पहुंचना संभव नहीं होगा।
छठी मैया @2024 को समर्पित उनकी भावपूर्ण आवाज
सिन्हा ने एक बार कहा था, “मैंने एचएमवी के साथ अपना पहला मौका पाया, और मेरे भक्ति गीतों ने मुझे प्रसिद्धि दिलाई।” उनके योगदान ने न केवल बिहार के लोक संगीत को समृद्ध किया, बल्कि भारतीय संगीत के हर क्षेत्र में उनकी आवाज़ की गूंज सुनाई दी। उनके जाने से संगीत की दुनिया में एक गहरा शून्य उत्पन्न हो गया है, जिसे कभी भरा नहीं जा सकेगा। हालांकि शारदा सिन्हा अब इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन छठ पर्व के पारंपरिक गीतों और विवाह के उनके मोहक गानों को सुनने और उनको चाहने वालों को हमेशा उनकी यादें आती रहेंगी। उनकी कमी कभी नहीं पूरी हो सकेगी।
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